हुसैन ने तीरों की बौछार में नमाज़ पढ़कर भूखे प्यासे परिवार को कुर्बान कर शांति का संदेश दिया
गुना (आरएनआई) हिजरी कैलेंडर के पहले महीने मुहर्रम के प्रथम दस दिवस बोहरा समाज में इमाम हुसेन और उनके परिवार पर ढाए जुल्मो सितम को दर्द के साथ याद कर मनाए जाते हैं। यह सिलसिला 1400 वर्षों से पूरी दुनिया मे अनवरत जारी है।
स्थानीय बोहरा मस्जिद में भी मुहर्रम की दूसरी तारीख से वाज प्रवचन का सिलसिला जारी हे। मंगलवार दसवी मुहर्रम को बोहरा समाज ने योमे आशूरा मनाया। मुम्बई से आए मुर्तजा बिन कैजार भाईसाहब ने इमाम हुसैन की शहादत पढ़ी। इमाम हुसैन और उनके पूरे परिवार जिसमे 6 महीने के छोटे बच्चे, नन्ही बच्चियां महिलाएं आदि शामिल थे। सीरिया के क्रूर शासक यजीद की सेना द्वारा 1400 वर्ष पूर्व सातवी मुहर्रम को पानी बंद कर दिया गया था। 3 दिन तक हुसैन का पूरा परिवार तथा उनके साथी भूखे प्यासे तड़पते रहे और 10 मुहर्रम को इमाम हुसैन और उनके बेटे भाइयों सहित 72 साथियों को बेरहमी से प्यासा क़त्ल कर दिया गया था।
तीन दिन से प्यासे बच्चे माँओ की गोद में दुबके
उन्होंने कहा कि अब्बास को इमाम हुसेन ने जंग की इजाजत नही दी थी। पूरा कुनबा तीन दिन की भूख और प्यास से बेहाल था। छोटे बच्चे माओं की गोद में दुबके बेठे थे। उनमे इतनी ताकत भी नही बची थी के आवाज निकल सके। इमाम हुसेन की नन्ही बच्ची सकीना ने तीन दिन की भूख और प्यास से तड़पते हुए छोटी सी मश्की पानी लाने के लिए अपने चचा अब्बास को थमाई। अब्बास ने इमाम हुसेन से पानी लाने की इजाजत मांगी थी। इजाजत मिलते ही वे पानी भरने नहर पहुचे थे जहां यजीद की फौज ने दोनों हाथ काटने के बाद उनका बेदर्दी से कत्ल कर दिया था।
बच्ची को पिता का कटा सिर थमाया
हुसैन और उनके बेटों, भाइयों, साथियों के दर्दनाक कत्लेआम के पश्चात हुसैन के परिवार की महिलाओं को कर्बला से 900 किलोमीटर दूर शाम ऊंटों पर लादकर तथा उनके एकमात्र जीवित बचे पुत्र इमाम ज़ेनुलआबेदीन को कोड़े मरते हुए पैदल ले जाया गया। वहां यज़ीद के दरबार में इमाम हुसैन की मासूम पुत्री को पिता की याद में रोता देख हुसैन का कटा सिर थमा दिया गया जिसके कारण दहशत में उस बच्ची ने वहीं दम तोड़ दिया।
ज़ुल्म का चरम और सब्र की इंतेहा
यूँ तो मुहर्रम इस्लामिक कैलेंडर में उन चार महीनों में से एक है जिन्हें हुर्मत वाला कहा जाता है और जिसमें जंग की इजाज़त नहीं है लेकिन कर्बला के दिलसोज़ हादसे ने मुहर्रम के मायने ही बदल डाले। आज जब भी मुहर्रम का नाम आता है तसव्वुर में कर्बला की तस्वीर उभर आती है। कर्बला के हादसे ने इंसानियत के दिल पर गहरे निशान छोड़े हैं। एक तरफ़ ज़ुल्म की हद थी, एक तरफ़ सब्र की इंतहा। ज़ुल्म की मिसाल तो आज भी मिल जाती है मगर सब्र की मिसाल कोई न ला सका हज़रत इमाम हुसैन का ज़िक्र सुन कर किसी भी साहिबे ईमान की आँख नम हो जाना एक फ़ितरी अमल है।
हुसैन कुर्बानी न देते तो इंसानियत मिट जाती
उन्होंने कहा कि कर्बला का असल पैग़ाम क्या है? हज़रते इमामे हुसैन ने अपनी जान की क़ुर्बानी दे कर ये पैग़ाम दिया है कि इस्लाम क़ीमती है हुसैन की जान नहीं। भाई भतीजे भांजे और बच्चों की जान का नज़राना दे कर ये पैग़ाम दिया है कि मेरे लिए घर से ज़्यादा दीन को बचाना ज़रूरी है यज़ीद नामक तानाशाह बादशाह पैगम्बर महम्मद के नवासे इमाम हुसैन पर यह दबाव डाल रहा था कि वे उसकी बादशाहत स्वीकार कर लें। यज़ीद के दुराचारी होने के कारण यदि इमाम हुसैन उसकी सत्ता स्वीकार कर लेते तो इस्लाम के सत्य, सद्मार्ग, शांति, सेवा, मानवीय संवेदना, महिला उत्थान के संदेश नष्ट हो जाते और चारो ओर यज़ीद के बर्बरता पूर्ण कार्यो के कारण हाहाकार की स्थिति निर्मित हो जाती जो तत्समय बढ़ती जा रही थी। हुसैन ने हथियार बंद दुश्मनों की फ़ौज के बीच तीरों की बरसात में नमाज़ अदा कर के ये पैग़ाम दिया कि आज के बाद नमाज़ छोड़ने की तुम्हारी बड़ी से बड़ी वजह भी इस से बहुत छोटी मालूम होगी। इमाम ने भी दीन का पैग़ाम तक़रीरों के ज़रिए नहीं बल्कि अमल के ज़रिए ही दिया है।
धर्मगुरु के प्रवचन कराची में
बोहरा समाज के धर्मगुरु सैयदना मुफद्दल सैफुद्दीन इन दिनों पाकिस्तान के कराची शहर में प्रवचन कर रहे हैं। जिसका प्रसारण पूरी दुनिया में आठवी मुहर्रम रविवार को पूरे देश के साथ गुना मस्जिद में भी किया गया। पहले दिन से ही बोहरा जमात खाने में दोनों समय के भोजन की व्यवस्था धर्मगुरु साहब की ओर से रखी गई है। कार्यक्रम का समापन मंगलवार को आशूरा पर्व के साथ हो जाएगा। इस वर्ष समस्त सेवाओं और व्यवस्थाओं का जिम्मा रियाज जमा एवं मुस्तफा जमा द्वारा बखूबी संभाला गया।
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