हिंदी एक भाषा ही नहीं, वरन् एक संपूर्ण संस्कृति है
शाजहांपुर। (आरएनआई) हिंदी एक भाषा ही नहीं, वरन् एक संपूर्ण संस्कृति है। भाषा मात्र विचारो का आदान-प्रदान ही नहीं करती, बल्कि विचारों को विचारधारा के रूप में जीवित रखने का कार्य भी करती है। किसी भी देश या क्षेत्र की संस्कृति का संवहन करने का कार्य भाषा द्वारा ही संभव होता है, क्योंकि भाषा संस्कृति को जनमानस में बनाए रखने का कार्य करती है। भारतवर्ष की सबसे बड़ी विशेषता विविधता में एकता है, क्योंकि यहां हर जाति ,धर्म का जन समुदाय भारतीय मूल्यों को समानता के साथ अपने अंदर बनाए हुए है। अलग-अलग जन समुदाय के साथ-साथ भारतवर्ष में कई भाषाएं भी बोली जाती हैं, जिन्हें भारतीय संविधान की स्वीकृति मिली हुई है। भारत में बोली जाने वाली भाषाओं में सबसे अधिक जन समुदाय द्वारा बोली जाने वाली भाषा हिंदी है। हिंदी सरल, सुबोध एवं सबसे वैज्ञानिक भाषा है। हिंदी भाषा भारतीय संस्कृति के मूल्यों के आलोक को सर्वदा उद्दीप्त किए हुए है। हिंदी एक ऐसी भाषा है जिसकी कई बोलियों है, जिनमें भारतीय संस्कृति की जीवंत झलक देखी जा सकती है। हिंदी की ब्रज एवं अवधी बोलियों में साहित्य का भंडार है, जो भारत की पौराणिक गाथाओं को सरलतम प्रकार से जनमानस के बीच न सिर्फ बनाए हुए है, बल्कि समाज को इन गाथाओं के माध्यम से भारतीय संस्कृति के दर्शन भी कराता है। ब्रज एवं अवधी के अतिरिक्त हिंदी की अन्य बोलियों में भी साहित्य के साथ-साथ पर्याप्त लोक साहित्य मिलता है, जो हर क्षेत्र में हर बोली का अलग-अलग है। लोक साहित्य के अंतर्गत आने वाले लोकगीत, लोक कथाएं भारतीय संस्कृति को जन सामान्य के बीच बनाए हुए हैं। विविध क्षेत्रों में गाए जाने वाले लोकगीत, जो विविध उत्सव हो एवं त्योहारों पर गाए जाते हैं , भारतीय संस्कृति का प्रमुख अंग है। हिंदी भाषी क्षेत्र का भ्रमण करने के पश्चात एवं हिंदी भाषा का अध्ययन करने के उपरांत यह पता चलता है कि हिंदी एक भाषा ही नहीं, वरन् संपूर्ण संस्कृति है।
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