हाई कोर्ट से राहत मिलने के बाद डीयू के पूर्व प्रोफेसर साईबाबा जेल से हुए रिहा
जीएन साईबाबा और उनके सह-आरोपियों को 2014 में माओवादी गुटों से जुड़े होने और भारत विरोधी गतिविधियों में शामिल होने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। आरोपियों ने सजा के खिलाफ बॉम्बे हाईकोर्ट में अपील दायर की थी, जहां से उन्हें बरी कर दिया गया।
नागपुर (आरएनआई) दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर जीएन साईबाबा आखिरकार गुरुवार को जेल से बाहर आ गए। दो दिन पहले ही बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच ने साईबाबा समेत पांच अन्य को माओवादी लिंक के एक कथित मामले में बरी कर दिया था। साथ ही उनकी उम्रकैद की सजा को रद्द करने का फैसला सुनाया था।
नागपुर केंद्रीय कारागार से रिहा होने के बाद साईबाबा ने कहा, 'मेरा स्वास्थ्य बहुत खराब है। मैं बात करने की स्थिति में नहीं हूं। पहले मुझे इलाज की जरूरत है, तब मैं कुछ बोल सकूंगा।' बता दें, पूर्व प्रोफेसर साल 2017 से जेल में बंद थे। फिलहाल वह व्हीलचेयर पर हैं।
जीएन साईबाबा और उनके सह-आरोपियों को 2014 में माओवादी गुटों से जुड़े होने और भारत विरोधी गतिविधियों में शामिल होने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। आरोपियों ने सजा के खिलाफ अपील दायर की थी। अब साईबाबा, हेम मिश्रा, महेश तिर्की, विजय तिर्की, नारायण सांगलिकर, प्रशांत राही और पांडु नरोटे (मृतक) को बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच ने बरी कर दिया।
साईबाबा, महेश तिर्की, हेम मिश्रा और प्रशांत राही को उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी। जबकि विजय तिर्की को 2017 में एक विशेष अदालत ने 10 साल जेल की सजा सुनाई थी। विजय जमानत पर बाहर था, जबकि नरोटे की पिछले साल स्वाइन फ्लू से संक्रमित होने के बाद जेल में मौत हो गई थी।
साल 2014 में नक्सलियों से संबंध मामले में साई बाबा की गिरफ्तारी हुई थी। साई बाबा फिलहाल नागपुर सेंट्रल जेल में बंद थे। गिरफ्तारी से पहले व्हीलचेयर से चलने वाले प्रोफेसर साई बाबा दिल्ली विश्वविद्यालय के राम लाल आनंद कॉलेज में अंग्रेजी पढ़ाते थे। जांच एजेंसियों के अनुसार वह छत्तीसगढ़ के अबुजमाड़ के जंगलों में छिपे हुए नक्सलियों और प्रोफेसर के बीच एक कूरियर के रूप में काम कर रहे थे।
दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर जीएन साईबाबा और अन्य को बरी करते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर खंडपीठ ने कहा कि था जब 2014 में निचली अदालत ने अभियोजन पक्ष के आरोप पत्र का संज्ञान लिया तो उस समय साईबाबा के खिलाफ यूएपीए के तहत अभियोजन चलाने की मंजूरी नहीं दी गई थी। यूएपीए के तहत वैध मंजूरी न होने के कारण निचली अदालत की कार्यवाही ‘अमान्य’ है और इसलिए निचली अदालत का आदेश रद्द किए जाने के लायक है। मामले में पहले गिरफ्तार पांच आरोपियों के खिलाफ 2014 में यूएपीए के तहत अभियोग चलाने को मंजूरी दी गई थी और साईबाबा के खिलाफ इसकी अनुमति 2015 में दी गई।
हाईकोर्ट की एक अन्य पीठ ने 14 अक्टूबर, 2022 को इस बात का संज्ञान लेते हुए साईबाबा को बरी कर दिया था कि यूएपीए के तहत वैध मंजूरी के अभाव में मुकदमे की कार्यवाही ‘अमान्य’ थी। महाराष्ट्र सरकार ने उसी दिन फैसले को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।
शीर्ष अदालत ने शुरू में आदेश पर रोक लगा दी और बाद में अप्रैल 2023 में हाईकोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया और साईबाबा द्वारा दायर अपील पर नए सिरे से सुनवाई करने का निर्देश दिया। शारीरिक असमर्थता के कारण व्हीलचेयर पर रहने वाले 54 वर्षीय साईबाबा 2014 में मामले में गिरफ्तारी के बाद से नागपुर केंद्रीय कारागार में बंद हैं।
वर्ष 2017 में, महाराष्ट्र के गढ़चिरौली जिले की एक सत्र अदालत ने कथित माओवादी संबंधों और देश के खिलाफ युद्ध छेड़ने जैसी गतिविधियों में शामिल होने के लिए साईबाबा, एक पत्रकार और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के एक छात्र सहित पांच अन्य को दोषी ठहराया था। सत्र अदालत ने उन्हें यूएपीए और भारतीय दंड संहिता के विभिन्न प्रावधानों के तहत दोषी ठहराया था।
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