हमारा गांव बसन्तीपुर की दोलजात्रा होली
प्रकाश अधिकारी
बंगालियों की होली की शुरुआत दोल पूर्णिमा से होती है । यह होली से एकदिन पूर्व होली खेली जाती है। दोलजात्रा में महिलाएं अपनी पारंपरिक परिधान लाल किनारी वाली सफेद साड़ी पहनकर, शंख-झांझ, ढोल और चाकी बजातें हुए प्रथम कलश भरण करतें हुए मंदिर की परिक्रमा करतीं हुई मंदिर में कलश स्थापित करतीं हैं । राधा-कृष्ण को अबीर, चंदन और रंगीन वस्त्रों से सजाकर, फूलमाला की पालकी में बैठाकर, डोलजात्रा निकाला जाता है। प्रभात फेरी की शक्ल में सभी नाम संकीर्तन करतें हुए प्रत्येक घर में जातें हैं और प्रत्येक घर की महिलाएं पूजा अर्चना व अबीर लगाकर राधा-कृष्ण की पूजन करतीं हैं । दिनभर पूरे गांव में, इस तरीके की प्रभातफेरी चलती है।
दोलजात्रा का यह उत्सव अधिकांश पश्चिम बंगाल, पूरी, मथुरा और वृंदावन में होती है । हमारी जन्मभूमि उत्तराखंड है और यहां लगभग 6 से 7 लाख बंगाली निवास करतें हैं । बंगालियों की सभी त्यौहार, उत्सव, धार्मिक अनुष्ठान यथावत होती है, परंतु कुछ परंपराएं अभी से विलुप्ति के कगार पर है। यदा-कदा किसी बंगीय ग्राम समाज में यह दोलजात्रा आज भी श्रद्धा, उत्साह और पारंपरिक तरीके से जीवित है । अन्य समुदायों की तरह हमें भी अपनी आत्म-गौरवशाली परंपराओं को उत्साह पूर्वक मनाना चाहिए ।
सांस्कृतिक पहचान ही हमारी धरोहर है। भले ही आज हम शैक्षिक रूप से भाषा पर अधिकार प्राप्त नहीं कर पा रहें हैं, परंतु अपनी संस्कृतिक पहचान को उन्नयन कर सकते हैं ।
आज हम सोशल मीडिया के जरिए सभी लोगों से जुड़ सकते हैं, तो हमारे एक सुखद प्रयास होना चाहिए कि सभी लोगों में हमारी संस्कृति को जानने, समझने के लिए जिज्ञासा और रुचि पैदा कर सकतें हैं ।
बंगालियों की दोलजात्रा में आस्था और आनंद का मिश्रण है, ताकि लोग इसे पूरी तरह आत्मसात कर सकें । राधाकृष्ण की पालकी के साथ-साथ पारंपरिक वाद्य यंत्र बजाते गायन-नृत्य करतें यह टोली होली मनाते हैं । इस संकीर्तन में भक्ति से सरावोर होकर आनंद की अनुभूति करते हुए दूसरों को प्रेमरस से अभिभूत कर देते है। दोलजात्रा में केवल होली ही नहीं खेली जाती वरन आस्था और बड़ों के लिए सम्मान करने की सीख भी देती है। बच्चें, बड़े बुजुर्ग, महिलाऐं सभी को अबीर-गुलाल लगाते हुए, मिठाई के तौर पर बताशे देकर मुंह मीठा कराकर बड़ों के पैर छूकर आशीर्वाद लेते हैं।
हमारे दादा जी के पीढ़ी के तत्कालीन समय में स्व. अनिल विश्वास, कैशियर स्व. शिशुवर मण्डल, स्व. भोलानाथ मण्डल, स्व. कार्तिक साना, स्व. विष्णुपद दास, स्व.ललित गोसाई आदि निकालते थे । कालांतर में यह वार्षिक परंपरा बंद हो गया था।
बसन्तीपुर में विगत 4 दशकों से, गृह-सन्यासी विकाश अधिकारी के नेतृत्व में प्रत्येक वर्ष दोलजात्रा निकाली जाती है।
जिसमें महिलाएं, पुरुष, बच्चें सभी शामिल होते हैं। नित्यानंद दास, देवाशीष शील, उत्तम अधिकारी, गोकुल मंडल, प्रेम अधिकारी, प्रकाश अधिकारी, नन्तु, अमित साना, श्रीमती कल्याणी अधिकारी, आशा, शांति, कल्याणी शील, सविता, नेहा, कल्पना, दीपाली आदि शामिल होतें हैं ।
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