स्वास्थ्य सेवा में केंद्रीय कानून को लागू न करने पर अदालत चिंतित, केंद्र-राज्यों को दिया दो महीने का समय
शीर्ष अदालत ने कहा, ‘हम केंद्र और राज्य सरकारों को निर्देश देते हैं कि दो महीनों के भीतर केंद्रीय कानून को लागू करने के लिए आवश्यक कदम उठाएं। अगर कानून को लागू करने में कोई भी विफल रहा तो दंडात्मक कार्रवाई की जाएगी।
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नई दिल्ली (आरएनआई) देश की सर्वोच्च अदालत ने स्वास्थ्य देखभाल के क्षेत्र से जुड़े व्यवसायों में वर्ष 2021 के केंद्रीय कानून को अमल में न लाने पर चिंता व्यक्त की है। इसके साथ ही शीर्ष अदालत ने सोमवार को केंद्र और राज्य सरकारों से कहा है कि 12 अक्तूबर तक कानून का अनुपालन सुनिश्चित करें। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर कानून का अनुपालन सुनिश्चित नहीं किया गया, तो दंडात्मक कार्रवाई की जाएगी।
भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जेपी पादरीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने आदेश में कहा, ‘हम केंद्र और राज्य सरकारों को निर्देश देते हैं कि दो महीनों के भीतर इस कानून को लागू करने के लिए आवश्यक कदम उठाए जाएं। इसके अलावा कानून को लागू करने के लिए स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा दो सप्ताह के भीतर राज्यों के सभी सचिवों की ऑनलाइन बैठक बुलाई जाए।’ अदालत ने यह भी कहा है कि अगर कानून के प्रावधानों को लागू करने में कोई भी विफल रहा तो दंडात्मक कार्रवाई की जाएगी।
शीर्ष अदालत ने बीते वर्ष सितंबर के महीने में केंद्र, राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को नोटिस जारी किया था। उस दौरान अदालत ने राष्ट्रीय संबद्ध और स्वास्थ्य देखभाल व्यवसाय आयोग (एनसीएएचपी) अधिनियम, 2021 को अमल में न लाने पर नाराजगी जताई थी। एनसीएएचपी अधिनियम 2021 में कुछ खास प्रावधान हैं। इनमें, स्वास्थ्य देखभाल पेशेवरों द्वारा शिक्षा और सेवाओं के मानकों के विनियमन करने का प्रावधान शामिल है। इसके अलावा संस्थानों का मूल्यांकन, केंद्रीय रजिस्टर और राज्य रजिस्टर के रखरखाव जैसे प्रावधान भी शामिल हैं।
यह कानून, सभी संबद्ध स्वास्थ्य देखभाल व्यवसायों के लिए नियामक निकायों और राज्य-स्तरीय परिषदों को गठित करने का आदेश देता है। ऐसे संबद्ध स्वास्थ्य देखभाल व्यवसाय, वर्ष 2021 तक राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग के अधीन नहीं आते थे। यह कानून, चिकित्सा प्रयोगशाला और जीवन विज्ञान, ट्रॉमा, सर्जिकल, एनस्थीसिया से जुड़े व्यवसायों और पेशेवरों पर भी लागू होता है।
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