सुप्रीम कोर्ट से झारखंड सरकार को झटका, निशिकांत दुबे-अर्जुन मुंडा समेत 28 भाजपा नेताओं की राहत बरकरार
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट से एक अन्य मामले में झारखंड सरकार को झटका लगा था। कोर्ट ने भाजपा सांसदों निशिकांत दुबे और मनोज तिवारी के खिलाफ प्राथमिकी रद्द करने के उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ झारखंड की याचिका खारिज कर दी थी। एफआईआर 2022 में हवाई अड्डे से उड़ान भरने के दौरान विमानन नियमों के उल्लंघन के मामले में दर्ज की गई थी।
नई दिल्ली (आरएनआई) सुप्रीम कोर्ट से झारखंड सरकार को बड़ा झटका लगा है। कोर्ट ने राज्य सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन से जुड़े एक मामले में 28 भाजपा नेताओं की राहत बरकरार रखी है। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड सरकार की उस अपील को खारिज कर दिया, जिसमें हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती दी गई थी। आदेश में 2023 में राज्य सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के संबंध में निशिकांत दुबे, अर्जुन मुंडा और बाबूलाल मरांडी सहित 28 भाजपा नेताओं के खिलाफ दंगा मामलों को खारिज कर दिया गया था।
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट से एक अन्य मामले में झारखंड सरकार को झटका लगा था। कोर्ट ने भाजपा सांसदों निशिकांत दुबे और मनोज तिवारी के खिलाफ प्राथमिकी रद्द करने के उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ झारखंड की याचिका खारिज कर दी थी। एफआईआर 2022 में हवाई अड्डे से उड़ान भरने के दौरान विमानन नियमों के उल्लंघन के मामले में दर्ज की गई थी।
सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड सरकार की उस याचिका को खारिज कर दिया था, जिसमें भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सांसदों निशिकांत दुबे और मनोज तिवारी के खिलाफ प्राथमिकी को रद्द करने के हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती दी गई थी। इन पर 2022 में सूर्यास्त के बाद अपने विमान को देवघर हवाई अड्डे से उड़ान भरने की अनुमति देने के लिए हवाई यातायात नियंत्रण को दबाव डालने का आरोप है।
शीर्ष अदालत ने 18 दिसंबर को झारखंड उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ राज्य सरकार की अपील पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। मामला झारखंड के देवघर जिले के कुंडा थाना में दुबे और तिवारी सहित नौ लोगों के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी से संबंधित है। सांसदों ने 31 अगस्त, 2022 को कथित रूप से हवाई अड्डा सुरक्षा प्रोटोकॉल का उल्लंघन करते हुए देवघर हवाई अड्डे पर एटीसी कर्मियों पर निर्धारित समय के बाद अपने निजी विमान को उड़ान भरने की मंजूरी देने के लिए दबाव डाला था।
शीर्ष अदालत का फैसला झारखंड सरकार की एक याचिका पर आया है, जिसमें 13 मार्च, 2023 के उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती दी गई थी। उच्च न्यायालय ने इस आधार पर प्राथमिकी को रद्द कर दिया था कि विमानन (संशोधन) अधिनियम, 2020 के अनुसार, प्राथमिकी दर्ज करने से पहले लोकसभा सचिवालय से कोई पूर्व मंजूरी नहीं ली गई थी।
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