सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर पुनर्विचार याचिका दायर करेगा केंद्र, राज्य के विधेयकों को मंजूरी देने का मामला
आठ अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने राज्य की ओर से भेजे जाने वाले विधेयकों की मंजूरी को लेकर राज्यपालों और राष्ट्रपति के लिए निश्चित समयसीमा तय की है। केंद्र सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि फैसले के खिलाफ एक याचिका तैयार की जा रही है।

नई दिल्ली (आरएनआई) राज्य की ओर से भेजे जाने वाले विधेयकों की मंजूरी पर राष्ट्रपति और राज्यपाल के लिए समयसीमा तय करने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लेकर केंद्र सरकार पुनर्विचार याचिका दायर कर सकती है। इस मामले में राज्यपालों की तरफ से विधायी विधेयकों को बहुत लंबे समय तक मंजूरी न दिए जाने पर न्यायिक हस्तक्षेप की अनुमति दी गई है। साथ ही राष्ट्रपति के लिए राज्यपाल की तरफ से भेजे गए विधेयकों पर निर्णय लेने के लिए तीन महीने की समयसीमा निर्धारित की गई है।
सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि फैसले के खिलाफ एक याचिका तैयार की जा रही है, जिसमें राज्यपालों और राष्ट्रपति के लिए निश्चित समयसीमा तय की गई है। शीर्ष अदालत का यह फैसला तमिलनाडु सरकार की तरफ से नवंबर 2023 में दायर की गई याचिका के जवाब में आया है। याचिका में राज्य के राज्यपाल की ओर से राज्य विधानसभा से पारित 10 विधेयकों पर अनिश्चित काल के लिए मंजूरी रोके रखने के खिलाफ अपील की गई थी। इनमें से कुछ विधेयक तो 2020 की शुरुआत में ही पारित हो गए थे। फैसले के आधार पर तमिलनाडु सरकार ने शनिवार को 10 कानूनो को अधिसूचित कर दिया था।
सरकार के एक अन्य अधिकारी ने कहा कि पुनर्विचार इसलिए जरूरी है क्योंकि मामले में बहस के दौरान केंद्र की दलीलों को पर्याप्त मजबूती से नहीं रखा गया। अधिकारी ने कहा कि यह फैसला एक समाप्त हो चुके बिल को बहाल करने का रास्ता साफ करता है। संविधान के अनुसार, एक बार किसी विधेयक को वापस कर दिया जाता है या राष्ट्रपति की तरफ से उस पर अपनी सहमति रोक ली जाती है तो वह विधेयक समाप्त हो जाता है। इसे संशोधना या बिना संशोधन के साथ पारित कराने के लिए दोबारा विधानसभा में पेश करना होता है। 8 अप्रैल के फैसले में इस आधार पर विचार नहीं किया गया है।
अधिकारी ने आगे कहा कि फैसले में गृह मंत्रालय के 2016 के ज्ञापन का हवाला दिया गया, जिसमें यह स्पष्ट किया गया है कि राष्ट्रपति के लिए आरक्षित विधेयकों पर निर्णय के लिए तीन महीने की समयसीमा निर्धारित की गई है। अदालत की तरफ से तय की गई समयसीमा पर भी पुनर्विचार करना आवश्यक होगा। पुनर्विचार याचिका जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की पीठ के समक्ष दायर की जाएगी, जिसने यह फैसला सुनाया था।
संविधान के अनुच्छेद 201 के तहत गृह मंत्रालय राज्य विधानमंडलों की ओर से पारित विधेयक पर राष्ट्रपति के माध्यम से अंतिम निर्णय करने के लिए नोडल मंत्रालय है। इसमें किसी विधेयक पर तीन आधारों पर स्वीकृति देने से इन्कार किया जा सकता है। पहला-वह केंद्रीय कानूनों के विरोधाभासी हो, दूसरा-राष्ट्रीय या केंद्रीय नीति से अलग हो और तीसरा-वह कानूनी और सांविधानिक रूप से वैध न हो।
केरल के राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ अर्लेकर ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को न्यायपालिका का अतिक्रमण करार दिया है। अर्लेकर ने एक साक्षात्कार में कहा था कि फैसला सुनाने वाली शीर्ष अदालत की पीठ को यह मामला सांविधानिक पीठ के पास भेज देना चाहिए था। राज्यपाल के बयान पर केरल के कानून मंत्री पी राजीव ने कहा कि शीर्ष अदालत का फैसला लोकतंत्र और संघवाद के लिए जीत है। उन्होंने कहा कि इस फैसले में सभी पहलुओं की व्यापक रूप से जांच की गई है। यह संविधान के मूल सिद्धांतों को भी मजबूत करता है।
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