सुदामाजी की दीन दशा देखकर भर आईं भगवान की आंखें, सातवें दिन हुआ श्रीमद् भागवत कथा का विश्राम
सुदामाजी की दीन दशा देखकर भर आईं भगवान की आंखें, सातवें दिन हुआ श्रीमद् भागवत कथा का विश्राम, इंद्रेशजी बोले- गुना जब भी बुलाएगा, हम समय निकालकर आएंगे।
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गुना (आरएनआई) सामरसिंगा परिवार द्वारा आयोजित श्रीमद् भागवत कथा आयोजन के अंतिम दिवस इंद्रेशजी उपाध्याय ने सुदामा-श्रीकृष्ण मित्रता का भावुक और मनमोहक प्रसंग सुनाया। उन्होंने कहाकि भगवान जिसके हो जाते हैं, उसके प्रति उनका स्नेह अपार हो जाता है। सुदामाजी जब भगवान से मिलने पहुंचे तो उनकी दीन दशा देखकर श्रीकृष्ण की आंखें भर आईं। उन्होंने सुदामाजी के पैर पखारे और उसे जल को पूरे महल में जगह-जगह छिड़कने का आदेश अपनी पत्नियों को दिया। यह भगवान का सुदामाजी के प्रति प्रेम था, जिसकी पुनरावृत्ति संभव नहीं है।
गौरतलब है कि 20 जनवरी से शुरु हुई श्रीमद् भागवत कथा का 27 को विश्राम हो गया। इंद्रेशजी महाराज ने गुना प्रवास के अंतिम दिन उपस्थित श्रोताओं से भावुक संवाद किया। उन्होंने गुनावासियों और किरार परिवार के स्नेह की सराहना की और गुना में दोबारा कथा का प्राकट्य करने का आश्वासन दिया। इंद्रेशजी महाराज ने आयोजक किरार (सामरसिंगा) परिवार की प्रशंसा करते हुए कहाकि यह परिवार कभी भी, कहीं भी ठाकुरजी के उत्सव में कार्यों को विश्राम देकर देकर पहुंचता है। किरार परिवार को लालजी (भगवान श्रीकृष्ण) से प्रेम है। इंद्रेशजी उपाध्याय ने गुना के प्रति वात्सल्य व्यक्त करते हुए कहाकि जब-जब गुना बुलाएगा, वह समय निकालकर आएंगे। क्योंकि गुनावासियों, किरार परिवार को कथा और ठाकुरजी से प्रेम है। उन्होंने पुर्नगामन की स्वीकृति प्रदान करते हुए कहाकि वह जब दोबारा गुना आएंगे तो इस बार स्वच्छंद कथा करेंगे। कथा के प्रसंगों का वर्णन करते हुए इंद्रेशजी महाराज ने लोभ, लालच से ग्रसित होने की प्रवृत्ति को समझाने के लिए सत्राजीत का प्रसंग सुनाया। इंद्रेशजी ने कहाकि द्वारिका में सत्राजीत के पास जादुई मणि थी, जो प्रतिदिन सोने-चांदी और हीरे की उत्पत्ति करती थी। इस मणि पर सभी निगाहें थीं। भगवान श्रीकृष्ण ने सत्राजीत से इस मणि को द्वारिका के उत्थान के लिए मांगा, लेकिन सत्राजीत ने मना कर दिया। इसके बाद सत्राजीत का भाई मणि पहनकर जंगल जाता है, जहां उसे शेर खा जाता है और उस शेर को भालू जाता है। इसके बाद आक्षेप भगवान श्रीकृष्ण पर लगता है, जिसे मिटाने के लिए वह जंगल जाते हैं और उस भालू से युद्ध करते हैं, जिसने सत्राजीत के भाई को खाया था। अंत में वह भालू और कोई बल्कि जामवंत जी होते हैं, जिनकी पुत्री जामवती से भगवान का विवाह होता है और श्रीकृष्ण पर लगा आक्षेप हट जाता है। इसके बाद भगवान ने सुदामा-श्रीकृष्णजी की मित्रता का प्रसंग विस्तार से बताया। उन्होंने कहाकि जब भगवान से सुदामाजी की मुलाकात होती है तो वह श्रीकृष्ण की पत्नियों को आशीर्वाद देने की इच्छा व्यक्त करते हैं। परंतु जब उन्हें पता चलता है कि श्रीकृष्ण की 16108 अर्धागिनी हैं तो वह भगवान को आशीर्वाद दे देते हैं। यह देखकर श्रीकृष्ण की पत्नियां भावुक हो जाती हैं तो ठाकुरजी को सुदामाजी आशीर्वाद दे रहे हैं। इंद्रेशजी ने उपस्थित श्रोताओं को बताया कि रूप, यौवन, सम्पत्ति और कम आयु भगवान से मिलने नहीं देते हैं। यह चारों चीजें होने के बाद अगर सत्संग नहीं है तो चारों चीजें आपका विनाश कर देती हैं। अंत में भगवान उद्धव को ज्ञान देते हैं और कहते हैं कि उनका अनुभव करना हो तो श्रीमद् भागवत की शरण में आना होगा। इसी के साथ कथा ने विश्राम ले लिया।
बागेश्वर धाम परिसर में 1 मार्च से इंद्रेशजी की कथा
गुना से विदा लेते हुए इंद्रेशजी ने बताया कि आगामी कुछ माह में मध्यप्रदेश की पावन धरा पर उन्हें एक नहीं बल्कि 3 आयोजनों में शामिल होना है। प्रमुख आयोजन 1 मार्च से 7 मार्च तक बागेश्वर धाम में 151 कन्याओं का विवाह समारोह है, जिसमें इंद्रेशजी महाराज बागेश्वर धाम के पीठाधीश्वर और अपने मित्र पं. धीरेंद्रकृष्ण शास्त्री के आग्रह पर श्रीमद् भागवत कथा का वाचन करने वाले हैं। इसके अलावा विदिशा और खण्डवा जिलों में भी उनकी कथाएं आयोजन होंगी।
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