सिलीगुड़ी में पूर्व एवं पूर्वोत्तर क्षेत्रों के संयुक्‍त क्षेत्रीय राजभाषा सम्‍मेलन का आयोजन

लक्ष्मी शर्मा

Mar 8, 2024 - 19:05
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सिलीगुड़ी (आरएनआई) राजभाषा विभाग, गृह मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा आज सिलीगुड़ी में पूर्व एवं पूर्वोत्तर क्षेत्रों के संयुक्‍त क्षेत्रीय राजभाषा सम्‍मेलन का आयोजन किया गया। समारोह को संबोधित करते हुए माननीय गृह राज्‍य मंत्री श्री निशिथ प्रामाणिक ने कहा कि हिंदी ने प्रारंभ से ही विभिन्न भारतीय भाषाओं के साथ समन्वय स्थापित करते हुए ही जनमानस के मन में अपना स्थान बनाया है। यही कारण है कि आज़ादी  के आंदोलन में अनेक स्वतंत्रता सेनानियों ने हिंदी को ही संपर्क भाषा बनाकर आंदोलन को गति प्रदान की और इनमें वे लोग भी थे जिनकी अपनी मातृभाषा हिंदी नहीं थी। इसीलिए स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद हिंदी की महत्ता को देखते हुए संविधान निर्माताओं ने अनुच्छेद 343 द्वारा संघ की राजभाषा के रूप में हिंदी और देवनागरी लिपि को अपनाया। देश में जो हिंदी से इतर भाषाएं बोलने-समझने वाले भारतीय हैं, वे भी हिंदी भाषा और लिपि को अपनाने में सहजता का अनुभव करते हैं और इसीलिए हिंदी की अखिल भारतीय स्‍तर पर स्‍वीकार्यता है। तकनीक ने इस स्‍वीकार्यता और सहजता को और भी बढ़ाने का काम किया है।
उन्होंने बताया कि गृह मंत्रालय का राजभाषा विभाग भी हिंदी के प्रयोग को सूचना प्रौद्योगिकी के माध्यम से सहज बनाने की दिशा में निरंतर प्रयत्‍नशील है। राजभाषा विभाग ने स्मृति आधारित अनुवाद प्रणाली ‘कंठस्थ’ का निर्माण और विकास किया है, जिसका प्रयोग सुनिश्चित कर सरकारी कार्यालयों में अनुवाद की गति एवं गुणवत्ता में बढ़ोत्तरी हुई है। इस टूल में अब तक लगभग 1 करोड़ 44 लाख से ज्‍यादा वाक्य शामिल किए जा चुके हैं, जिसमें अब न्यूरल मशीन ट्रांसलेशन के साथ-साथ और भी अनेक नए फीचर्स जोड़े गए हैं जिससे इसकी उपयोगिता और भी ज्यादा बढ़ गई है। पिछले वर्ष पुणे में संपन्न हुए अखिल भारतीय राजभाषा सम्मेलन में इसके नए वर्जन (कंठस्थ 2.0) को ई ऑफिस से भी जोड़ दिया गया है। इसी कड़ी में राजभाषा विभाग की एक और नई पहल है ‘हिंदी शब्द सिंधु’ शब्दकोश,  जिसका लोकार्पण माननीय गृह मंत्री जी के कर कमलों से सूरत में संपन्न हुआ और जिसमें अब तक 4,50,000 से ज्‍यादा शब्दों को शामिल किया जा चुका है और उसे  विभाग द्वारा निरंतर अपडेट किया जा रहा है और नए-नए शब्दों को शामिल कर उसे समृद्ध किया जा रहा है। अमृत काल  के अवसर पर जारी इस शब्दकोश को विधि, तकनीकी, स्वास्थ्य, पत्रकारिता तथा व्यवसाय आदि क्षेत्रों से तथा विभिन्न भारतीय भाषाओं से प्रचलित शब्दों को शामिल करते हुए सुलभ संदर्भ के लिए तैयार किया जा रहा है।  निश्चित तौर पर इस तरह की उन्नत शब्दावली प्रशिक्षण, अनुवाद तथा भाषा की जानकारी की दृष्टि से महत्वपूर्ण होगी।
श्री निशिथ प्रामाणिक ने कहा कि राजभाषा कार्यान्वयन  की गति तीव्र करने के लिए मंत्रालयों में हिंदी सलाहकार समितियों की बैठकें निरंतर आयोजित की जा रही हैं। इसी प्रकार देश भर में विभिन्न शहरों में राजभाषा के प्रयोग को बढ़ाने की दृष्टि से अब तक कुल 531 नगर राजभाषा कार्यान्वयन समितियों का भी गठन किया जा चुका है। विदेशों में लंदन, सिंगापुर, फिजी, दुबई और पोर्ट लुई में भी नगर राजभाषा कार्यान्वयन समितियों का गठन किया गया है जिससे कि इन शहरों में स्थित भारत सरकार के कार्यालयों में राजभाषा हिंदी का प्रभावी क्रियान्वयन किया जा सके। उन्होंने बताया कि राजभाषा कार्यान्वयन को और मजबूत करने की दिशा में हमारी संसदीय राजभाषा समिति ने अपनी सिफारिशों के अब तक बारह खंड माननीय राष्ट्रपति जी को प्रस्तुत कर दिए हैं।
उनका कहना था कि हमारे लोकतंत्र का मूलमंत्र है -‘सर्वजन हिताय’ अर्थात सबकी भलाई। हमारे लिए यह समझना जरूरी है कि देश की जनता की सामाजिक, आर्थिक एवं सांस्‍कृतिक अपेक्षाओं को पूरा करने वाली योजनाओं व कार्यक्रमों को आखिरी सिरे तक पहुंचाना सरकारी तंत्र का अति महत्‍वपूर्ण कर्तव्‍य है और उसकी सफलता की कसौटी भी। सरकार की कल्‍याणकारी योजनाएं तभी प्रभावी मानी जाएंगी जब जनता और सरकार के बीच निरंतर संवाद, संपर्क और पारदर्शिता बनी रहे और सरकार की योजनाओं का लाभ देश के सभी नागरिकों को समान रूप से मिले। हमारा लोकतंत्र तभी फल-फूल सकता है जब हम जन-जन तक उनकी ही भाषा में उनके हित की बात पहुंचाएं I इसमें कोई संदेह नहीं कि राष्‍ट्रीय स्‍तर पर राजभाषा हिंदी इस जिम्‍मेदारी को बखूबी निभा रही है।
श्री प्रामाणिक ने कहा कि माननीय गृह मंत्री जी ने भी अपने संबोधनों में इस बात पर बार-बार जोर दिया है कि हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं की परस्‍पर कोई प्रतिद्वंद्विता नहीं है, वे सभी एक दूसरे की पूरक हैं। हिंदी का उदभव एवं विकास ही भारत की क्षेत्रीय भाषाओं के साथ-साथ हुआ है। मूलत: ये सभी भाषाएं भारत की सांस्कृतिक मिट्टी से ही उत्‍पन्‍न हुई हैं और अपनी-अपनी भूमिका का निर्वाह कर रही हैं । अत: स्‍वतंत्र चिंतन के विकास एवं भारत की अखंड एकता के लिए हिंदी एवं अन्‍य क्षेत्रीय भाषाओं के विकास को प्रोत्साहित करना होगा। 
कार्यक्रम में बोलते हुए सुश्री अंशुली आर्या ने कहा कि प्राचीन समय से ही भारतीय स्वतंत्रता संग्राम, साहित्य सहित विभिन्न क्षेत्रों में पश्चिम बंगाल का अहम योगदान रहा है।
उनका कहना था कि राजभाषा सबंधी संवैधानिक प्रावधानों का अनुपालन करने एवं सरकारी कामकाज में हिंदी के प्रयोग को बढ़ावा देने के लिए राजभाषा विभाग सतत प्रयासरत है और हिंदी दिवस एवं तृतीय अखिल भारतीय राजभाषा सम्मेलन का आयोजन भी उसी दिशा में किया जाने वाला प्रयास है। 
सुश्री आर्या ने कहा कि माननीय प्रधानमंत्री जी के आत्‍मनिर्भर भारत : स्‍थानीय के लिए मुखर हों (Self Reliant India- Be vocal for local) के अभियान को आगे बढ़ाते हुए राजभाषा विभाग द्वारा सी-डेक पुणे के सहयोग से निर्मित स्‍मृति आधारित अनुवाद टूल ‘कंठस्‍थ’ के विस्‍तृत उपयोग पर जोर दिया जा रहा है जिससे अनुवाद के क्षेत्र में समय की बचत करने के साथ-साथ एकरूपता और उत्‍कृष्‍टता भी सुनिश्चित की जा सके। हाल ही में पुणे में आयोजित हिंदी दिवस 2023 एवं तृतीय अखिल भारतीय राजभाषा सम्मेलन के विशाल आयोजन में कंठस्‍थ 2.0 तथा ई-ऑफिस के इंटीग्रेशन का लोकार्पण किया गया । आज कंठस्थ की मेमोरी मे 1 करोड़ 44 लाख से ज्यादा वाक्य शामिल किए जा चुके हैं। इस फीचर से बहुत ही शीघ्र सरकारी कार्यालयों में हिंदी में सुविधाजनक तरीके से अनुवाद कार्य करना संभव होगा।
सचिव, राजभाषा विभाग का कहना था कि माननीय प्रधानमंत्री जी के निर्देशानुसार सामाजिक और सरकारी हिंदी के अंतर को कम करना है। आज ज़रूरत इस बात की भी है कि हम हिंदी को इसके सरल रूप में अपनाकर अपने सभी सरकारी कार्य हिंदी में करने को प्राथमिकता दें।  उन्होंने बताया कि देश की अन्य भाषाओं से हिंदी को समृद्ध करने की दिशा में ‘हिन्दी शब्द सिंधु’, बृहत् शब्‍दकोश का निर्माण किया जा रहा है। इसमें विभिन्न विषयों – जनसंचार, आयुर्वेद, खेलकूद, अंतरिक्ष विज्ञान, भौतिकी, रसायन, जीवविज्ञान, वैमानिकी, कंप्यूटर, इलैक्ट्रॉनिक्स भूगर्भशास्त्र, मानविकी आदि से संबंधित शब्दावली के साथ-साथ पारंपरिक शब्दावली को भी समाहित किया जा रहा है। इस कोश में शब्‍द की प्रविष्टि के साथ-साथ उसकी व्याकरणिक कोटि, अर्थ, पर्याय, आवश्यकतानुसार प्रयोग, विलोम, मुहावरे एवं तत्संबंधी अन्य आवश्यक जानकारियाँ दी गई हैं। यह शब्‍दकोश पूर्णतया डिजिटल तथा खोजपरक (सर्चेबल) है। 3,51,000 शब्दों के साथ इसके द्वितीय संस्करण का लोकार्पण पुणे में संपन्न हुआ, जिसमें आठवीं अनुसूची में शामिल भारतीय भाषाओं के प्रचलित शब्दों को भी समाहित किया गया है। 
कार्यक्रम के आरंभ में अपने स्‍वागत संबोधन में संयुक्‍त सचिव, राजभाषा विभाग डॉ. मीनाक्षी जौली ने सभी वरिष्ठ अधिकारियों से अनुरोध किया कि सभी अपने-अपने कार्यालयों में राजभाषा संबंधी सभी कार्यकलापों में व्यक्तिगत रुचि लें और सरकार की राजभाषा नीति का समुचित कार्यान्‍वयन सुनिश्‍चित करने हेतु अपेक्षित जागरुकता लाने तथा सरकारी कामकाज में हिंदी के प्रयोग की दिशा में अनुकूल, सकारात्‍मक एवं अनुप्रेरक वातावरण तैयार करने के लिए आवश्‍यक कदम उठाएं। 
इस अवसर पर मिजोरम विश्‍वविद्यालय के कुलपति एवं नराकास मिजोरम के अध्‍यक्ष प्रोफेसर डी. सी. डेका जी, एस.बी.आई के उप महाप्रबंधक और नराकास, सिलीगुड़ी के अध्‍यक्ष श्री वीरेंद्र सिंह जी, निदेशक एवं नराकास अध्यक्ष श्री बृजेंद्र प्रताप सिंह जी, क्षेत्रीय कार्यपालक निदेशक श्रीमती निवेदिता दुबे जी भी उपस्थित रहे। 
राजभाषा विभाग, गृह मंत्रालय अपनी तिमाही पत्रिका राजभाषा भारती के माध्यम से विगत 46 वर्षों से हिंदी के संवर्धन की दिशा में कार्य कर रहा है। महिला दिवस पर होने वाले इस आयोजन में पत्रिका 'राजभाषा भारती' के अंक 166 का विमोचन किया गया। यह अंक महिला सशक्तिकरण पर आधारित है जिसमें अपने-अपने क्षेत्रों में ख्याति प्राप्त महिलाओं के साक्षात्कार तथा ज्ञानवर्धक एवं रुचिकर लेख समाहित किए गए हैं।

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