'साबरमती आश्रम से जुड़ी याचिका में भावनाएं न लाएं', सुप्रीम कोर्ट ने महात्मा गांधी के परपोते से कही यह बात
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को महात्मा गांधी के परपोते तुषार गांधी की एक याचिका खारिज कर दी। इसमें उन्होंने गुजरात हाईकोर्ट के 2022 के आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें राज्य सरकार के अहमदाबाद में साबरमती आश्रम को लगभग 1200 करोड़ रुपये की लागत से पुनर्विकास करने के फैसले को बरकरार रखा गया था। कोर्ट ने कहा कि मामले में भावनाओं को समाहित करने की जरूरत नहीं है।

नई दिल्ली (आरएनआई) याचिका में तुषार गांधी ने दावा किया कि गुजरात सरकार की प्रस्तावित परियोजना सदी पुराने आश्रम की आकृति को 1,200 करोड़ रुपये की लागत से बदल देगी। इतना ही नहीं, बल्कि इसके लोकाचार को भ्रष्ट कर देगी। उन्होंने आगे कहा कि राज्य सरकार की पुनर्निर्मित परियोजना में लगभग 40 समरूप इमारतों को संरक्षित किया जाएगा, जबकि शेष 200 को नष्ट कर दिया जाएगा या उनका पुनर्निर्माण किया जाएगा।
मामले में जस्टिस एमएम सुंदरेश और राजेश बिंदल की पीठ ने कहा कि वह याचिका में हस्तक्षेप करने के लिए इच्छुक नहीं है, क्योंकि याचिका दायर करने में दो साल से अधिक की देरी हुई है। शीर्ष अदालत ने कहा कि राज्य सरकार की ओर से यह आश्वासन दिए जाने के आधार पर कि आश्रम का मुख्य क्षेत्र प्रभावित नहीं होगा, आदेश को चुनौती देने का आधार नहीं हो सकता।
हाईकोर्ट ने 2022 में तुषार गांधी की याचिका का निपटारा कर दिया था
गुजरात हाईकोर्ट ने 2022 में तुषार गांधी की याचिका का निपटारा कर दिया था, जब सरकार ने कहा था कि आश्रम का मुख्य क्षेत्र प्रभावित नहीं होगा। गुजरात सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे महाधिवक्ता कमल त्रिवेदी ने हाईकोर्ट को बताया था कि पांच एकड़ में फैले मुख्य आश्रम परिसर को पुनर्विकास के दौरान नहीं छुआ जाएगा।
तुषार गांधी ने एक जनहित याचिका (पीआईएल) दायर कर यह निर्देश मांगा था कि पुनर्विकास 'राष्ट्रीय गांधी स्मारक निधि' (एनजीएसएन) के तत्वावधान में किया जाए। साबरमती आश्रम की स्थापना महात्मा गांधी ने 1917 में अहमदाबाद में की थी। इसे गांधी आश्रम के नाम से भी जाना जाता है।
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