सरोगेसी कानूनों में आयु सीमा की समीक्षा करेगा सुप्रीम कोर्ट, केंद्र को जवाब दाखिल करने का आदेश
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को फैसला किया कि वह 11 फरवरी को सरोगेसी कानूनों में सरोगेट माताओं और अन्य लोगों के लिए आयु सीमा पर सुनवाई करेगा।
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नई दिल्ली (आरएनआई) सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को फैसला किया कि वह 11 फरवरी को सरोगेसी कानूनों में सरोगेट माताओं (जो दूसरों के लिए बच्चे को जन्म देती हैं) और अन्य लोगों के लिए आयु सीमा पर सुनवाई करेगा। जस्टिस बी.वी.नागरत्ना और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा ने सरोगेसी विनियमन अधिनियम और सहायक प्रजनन तकनीक (विनियमन) अधिनियम, 2021 की कुछ धाराओं को चुनौती देने वाली करीब 15 याचिकाओं पर सुनवाई की। शीर्ष कोर्ट ने केंद्र सरकार से मामले पर लिखित जवाब दाखिल करने को कहा।
केंद्र की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) ऐश्वर्या भाटी पेश हुए। उन्होंने कोर्ट से कहा कि केंद्र सरकार लिखित जवाब दाखिल करेगी और सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का पालन करेगी। कोर्ट ने कहा कि इस मामले में अंतरिम आदेश पारित करने की आवश्यकता है।
2021 के सरोगेसी कानूनों में माता-पिता और सरोगेट माताओं के लिए आयु सीमा तय की गई है। कानून के मुताबिक, इच्छित माता की आयु 23 से 50 साल के बीच होनी चाहिए और इच्छित पिता की आयु 26 से 55 साल के बीच होनी चाहिए। सरोगेट मां के लिए नियम यह हैं कि वह विवाहित हो, आयु 25 से 35 के बीच हो, पहले अपना जैविक बच्चा हो और जीवन में एक बार ही सरोगेसी का काम करे। कानून में सरोगेसी को नियंत्रित करने के लिए अन्य शर्तें भी दी गई हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सरोगेट माताओं के हितों की रक्षा की आवश्यकता है। कोर्ट ने कहा कि भारत में वाणिज्यिक सरोगेसी पर पाबंदी होने के बावजूद सरोगेट माताओं का शोषण न हो, इसके लिए मजबूत प्रणाली की जरूरत है। कोर्ट ने कहा, इसके लिए एक डाटाबेस होना चाहिए, ताकि किसी महिला का बार-बार शोषण न हो। एक प्रणाली होनी चाहिए। कोई नहीं कर रहा कि यह बुरा विचार है। लेकिन इसका गलत इस्तेमाल भी हो सकता है।
कोर्ट ने कहा कि सरोगेट माताओं को मुआवजा देने के लिए वैकल्पिक तरीके भी हो सकते हैं और एक विशेष प्राधिकृत अधिकारी द्वारा भुगतान की प्रक्रिया को नियंत्रित किया जा सकता है। एएसजी भाटी ने कहा कि मौजूदा कानून केवल आत्मीय सरोगेसी की अनुमति देते हैं। यह वाणिज्यिक सरोगेसी पर पाबंदी लगाने की वजह से है।
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