सरेंधी में लंगोट पहनकर खेलते हैं होली, 700 सालों से चल रही यह अनोखी पंरपरा
ब्रज क्षेत्र में आने वाले आगरा के जगनेर ब्लॉक के गांव सरेंधी में 700 सालों से एक अनूठी परंपरा है। यहां के युवा लंगोट पहनकर होली खेलते हैं। ये होली यहां आयोजित होने वाले झू मेले में होती है।

आगरा (आरएनआई) रंगोत्सव को प्राचीन परंपरा के साथ मनाने की कई कहानियां प्रचलित हैं। जनपद के जगनेर ब्लॉक के गांव सरेंधी की 700 साल पुरानी परंपरा भी कुछ ऐसी ही है। होली के दिन हुरियारों के 30 गुट लंगोट बांधकर एक प्राचीन दरवाजे पर जुटते हैं। दरवाजे से निकलने के लिए एक-दूसरे पर जोर आजमाइश करते हैं। इस दौरान ग्रामीण उन पर रंग डालते हैं।
गांव के मनोज शर्मा ने बताया कि गांव बसाने वाले जागीरदार बाबा यहां अचलम सिंह को नियुक्त कर गए थे। अचलम सिंह गांव के बीच में बने अपने मंच पर दरबार लगाकर ग्रामीणों के विवाद सुलझाते थे। होली के अगले दिन पड़वा पर दरबार में झू का खास दंगल होता है। होली खेलने के बाद सभी हुरियारे स्नान कर लंगोट पहनते हैं और अपने घर के बाहर खड़े हो जाते हैं।
गांव का एक नट ढोल को कंधे पर रखकर गलियों में बजाते हुए घूमता है। लंगोट पहने खड़े हुरियारे नट के पीछे चल देते हैं। सभी एकत्रित होकर बाबा अचलम के दरबार में पहुंचते हैं। जिसके बाद हुरियारे दरबार के बीच में बने दरवाजे में दो भागों में बंटकर प्रवेश करने का प्रयास करते हैं।
इसमें करीब 2300 लोगों के 30 गुट होते हैं। इस गेट से उन्हें दो बार गुजरना पड़ता है। इस दौरान दोनों गुट एक-दूसरे को धक्का देते हैं। दंगल में जीतने के लिए एक गुट को दूसरे गुट को धक्का देते हुए उनके क्षेत्र में दो बार जाना पड़ता है। इस दौरान हुरियारों के ऊपर पानी की बौछार डाली जाती है। जिसे बाबा अचलम का आशीर्वाद समझा जाता है।
इस दंगल को देखने के लिए आसपास के क्षेत्र के हजारों लोग सरैंधी में जुटते हैं। मनोज शर्मा ने बताया कि होली के दिन ही गांव के राजा वीरेंद्र सिंह अचलम बाबा मंदिर के सामने बैठकर न्याय और गांव के विकास पर चर्चा करते हैं। यह परंपरा पिछले 700 सालों से चली आ रही है।
ग्रामीण मनोज शर्मा ने बताया कि हुरियारे जो हनुमान रूपी लंगोट बांधते हैं। उसे झू कहा जाता है। इसी वजह से इस मेले का नाम झू मेला रखा गया है।
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