समाज प्रबोधन का पुनीत कार्य कर रही है डॉ. गोपाल चतुर्वेदी की लेखनी, 50 वर्षों से अपनी लेखनी के द्वारा कर रहे हैं ब्रज संस्कृति का प्रचार-प्रसार 

(डॉ. राधाकांत शर्मा)

Jan 18, 2024 - 15:05
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समाज प्रबोधन का पुनीत कार्य कर रही है डॉ. गोपाल चतुर्वेदी की लेखनी, 50 वर्षों से अपनी लेखनी के द्वारा कर रहे हैं ब्रज संस्कृति का प्रचार-प्रसार 

वृन्दावन (आरएनआई) नगर के वरिष्ठ साहित्यकार व आध्यात्मिक पत्रकार डॉ. गोपाल चतुर्वेदी का नाम अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ब्रज से सम्बन्धित उत्कृष्ट लेखन के लिए एक जाना-पहचाना नाम है।वह पिछले लगभग 50 वर्षों से इस क्षेत्र में पूर्ण शिद्दत के साथ जुटे हुए हैं।उन्होंने लेख, कविता, कहानी, संस्मरण, यात्रा वृत्तांत, रिपोर्ताज एवं साक्षात्कार आदि विधा में जमकर लिखा है और लिख रहे हैं। इन विधाओं में उनकी अब तक कई पुस्तकें भी प्रकाशित हो चुकी हैं: “ब्रज वैभव”,”आत्म मंथन”,”संस्मरण माला” एवं “मेरी कविताएं” आदि।इसके अलावा उनकी कई अन्य पुस्तकें प्रकाशनाधीन हैं।डॉ. गोपाल चतुर्वेदी ने वृन्दावन शोध संस्थान में केंद्र सरकार के संस्कृति मंत्रालय द्वारा संचालित “ब्रज संस्कृति विश्व कोश परियोजना” में सह संपादक के पद पर कार्य करके ब्रज संस्कृति की अविस्मरणीय सेवा की है। इसके अलावा वह स्वयं द्वारा संचालित श्रीहित परमानंद शोध संस्थान के माध्यम से ब्रज के प्रख्यात वाणीकारों के साहित्य का संरक्षण करके उसे प्रकाशित भी कर रहे हैं। उनके द्वारा लिखित ब्रज सम्बन्धी एक हजार से भी अधिक रचनाएं देश-विदेश की विभिन्न प्रतिष्ठित पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं।उनके द्वारा लिखे लेखों के अनुवाद न केवल अपने देश की अनेक भाषाओं में अपितु विश्व की विभिन्न भाषाओं में भी प्रमुखता के साथ हुए हैं।वह दूरदर्शन, आकाशवाणी, फीचर्स एजेंसियों एवं विभिन्न प्रतिष्ठित पत्र पत्रिकाओं के सूचीबद्ध लेखक हैं। उन्होंने देश की कई प्रतिष्ठित पत्र पत्रिकाओं के संपादकीय विभाग में उच्च पदों पर कार्य भी किया है।

डॉ. गोपाल चतुर्वेदी ब्रज सेवा संस्थान के संस्थापक अध्यक्ष भी हैं।इस संस्थान के द्वारा समाजसेवा के विभिन्न सेवा प्रकल्प संचालित किए जा रहे हैं।इसके अलावा वह वृन्दावन की कई अन्य समाजसेवी संस्थाओं से भी जुड़े हुए हैं।

वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. गोपाल चतुर्वेदी हिन्दी सेवी एवं स्वतंत्रता संग्राम सेनानी परिवार से संबद्ध हैं।उनके एक पितामह स्व. पंडित सिद्धगोपाल चतुर्वेदी ने राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम में बढ़-चढ़ कर भाग लिया था। साथ ही वह राजनेतिक कैदी के रूप में कई वर्षों तक विभिन्न जेलों में रहे।इस सबके चलते इनके पूरे परिवार को आए दिन ब्रिटिश हुकूमत के अत्याचारों को सहना पड़ा।डॉ. गोपाल चतुर्वेदी के दूसरे पितामह स्व. पंडित सियाराम चतुर्वेदी ने ब्रिटिश काल में राष्ट्र भाषा हिन्दी के उन्नयन हेतु अनेकानेक कार्य किए। उनके ही अथक प्रयासों से महाकवि देव की जन्म स्थली कुसमरा (मैनपुरी) में “महाकवि देव स्मारक” की स्थापना हुई।डॉ. गोपाल चतुर्वेदी के ताऊ प्रोफेसर स्व. जगत प्रकाश चतुर्वेदी व पिता स्व. वेदप्रकाश चतुर्वेदी भी हिन्दी के जाने माने साहित्यकार थे।स्व. प्रोफेसर जगत प्रकाश चतुर्वेदी काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, इलाहाबाद विश्वविद्यालय, काशी विद्यापीठ में पत्रकारिता के प्रोफेसर भी रहे थे।इसके साथ ही वे के.एम. मुंशी हिन्दी विद्यापीठ, आगरा(आगरा विश्वविद्यालय) के निदेशक एवं इलाहाबाद आकाशवाणी में प्रोड्यूसर भी रहे थे।इनकी ताई श्रीमती किरण चतुर्वेदी ने ही प्रमुख हिन्दी दैनिक "दिन - रात" का प्रकाशन प्रयागराज से प्रारम्भ किया था।जो कि बाद में इटावा से भी प्रकाशित हुआ।साथ ही वे प्रमुख हिन्दी दैनिक "नवभारत टाइम्स" से भी सम्बद्ध रहीं। डॉ. गोपाल चतुर्वेदी के एक अनुज श्री शशि शेखर दैनिक "हिन्दुस्तान" के प्रधान संपादक हैं।एक अनुज श्री अनुपम चतुर्वेदी "दैनिक जागरण" (आगरा) में उप- संपादक हैं।अत: इनको साहित्य सृजन व पत्रकारिता के संस्कार अपने पूर्वजों व परिवारी जनों से विरासत में मिले हैं।इसीलिए वह अपनी 13-14 वर्ष की अल्पायु में ही शब्दों की दुनियां में आ गए थे।

ब्रजनिष्ठ, साहित्य - संस्कृत मनीषी डॉ. गोपाल चतुर्वेदी की लेखनी समाज प्रबोधन का पुनीत कार्य कर रही है। चूंकि ब्रज उनके दिल में बसता है इसलिए वह ब्रज सम्बन्धी लेखन के आकाश हैं। उनका लेखन सउद्देश्य है, इसलिए वो प्रेरणाप्रद भी है व ऊर्जाप्रद भी है।

ब्रज की माटी की सुगन्ध उनकी भाषा शैली में स्पष्ट दृष्टि गोचर होती है।उनका साहित्य भगवान श्रीकृष्ण एवं उनके सम्बन्धित विभिन्न विषयों पर केंद्रित है।वह ब्रज के गौरव हैं और ब्रज संस्कृति की पहचान भी हैं।

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