सब कुछ ठीक रहा तो साबित हो जाएगा कि शक्तिमान ही गंगाधर है

Feb 1, 2023 - 23:11
Feb 1, 2023 - 23:11
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सब कुछ ठीक रहा तो साबित हो जाएगा कि शक्तिमान ही गंगाधर है
सब कुछ ठीक रहा तो साबित हो जाएगा कि शक्तिमान ही गंगाधर है

गुना। देश की राजधानी और केंद्र शासित राज्य दिल्ली में गुना जिले के कुख्यात पारदी आए दिन चोरी डकैती की बड़ी वारदातों को अंजाम देते हैं। दिल्ली की काबिल पुलिस इनमें से कई अपराधों के खुलासे का दावा कर अपनी पीठ थपथपाती रही है। लेकिन बदमाशों से चोरी के माल की सौ फीसदी बरामदगी अधिकांश अपराधों में नहीं कर पाई है। शायद इसलिए कि जिसे वह शक्तिमान समझती रही वही गंगाधर है, इसी कारण अपराध बदस्तूर जारी हैं। लेकिन इस बार एक मामला फंसता हुआ नज़र आ रहा है। गंगाधर के एक शोहदे ने दिल्ली पुलिस के सामने मुंह खोल दिया है।

दरअसल, 30 अप्रैल 2022 को पारदियों ने दिल्ली में आनंद लोक इलाके के जिस बंगले में डकैती डाली थी। उसके मालिक के प्रभाव के चलते इस केस को दिल्ली पुलिस ने पुरानी परंपरा से हटकर खुद ही हैंडल किया है। ताकि असली डकैतों को पकड़कर उनसे सौ प्रतिशत माल बरामद किया जा सके। सुराग से सुराग जोड़ते हुए दिल्ली पुलिस के हाथ धरनावदा इलाके के एक रसूखदार परिवार के सदस्य की गिरेबान तक पहुंच चुके थे। दावा किया गया कि उन्होंने पारदियों द्वारा चोरी की गई ज्वैलरी में से कुछ हिस्सा खरीदा। लेकिन इस डकैती का मास्टर माइंड बचा रहा।

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार दक्षिण दिल्ली के डिफेंस कॉलोनी पुलिस स्टेशन के अंतर्गत स्थित आनंदलोक के एक बंगले में पारदी गैंग ने 4 करोड़ की डकैती की वारदात को अंजाम दिया था। विगत 30 अप्रैल, 2022 शनिवार, कृष्ण पक्ष की अमावस्या को यहां की कोठी नंबर 29 में बदमाश रात को 2 से 3 बजे के बीच दाखिल हुए। दो मंजिला इस कोठी के भूतल पर अपने कमरे में 6 वर्षीय पोती नायरा के साथ सो रहीं 68 वर्षीय रितिका शर्मा को पोती सहित बदमाशों ने हथियारों की नोंक पर बंधक बना लिया। 

फिर कमरे में रखी अलमारी को तोड़कर डकैत करीब 4 करोड़ रूपए के गहने जेवर जिनमें प्लेटिनम का हीरे जड़ा हार, सोने-चांदी के सिक्के, विदेशी घड़ियां आदि कीमती सामान शामिल हैं, चुरा कर ले गए। इस दौरान रितिका का बेटा कार्तिक और बहु ईशा शर्मा बंगले की पहली मंजिल पर सो रहे थे। बाद में जब केयर टेकर जागी तब परिवार जनों को वारदात का पता चला। 

सूत्रों के मुताबिक बदमाश चापड़ और ड्रेगर लेकर आए थे। शक है कि इनके पास पिस्तौल या कट्टा भी था। वारदात के दौरान ही बदमाशों ने घर के फ्रिज से दो कोल्ड ड्रिंक और दो एनर्जी ड्रिंक की बोतल पी थीं। पुलिस को बदमाशों द्वारा छोड़ी गईं दो टॉर्च, 1 टामी, 2 लुंगी, 1 गुलेल व खाली थैला भी मिला।

रिपोर्ट्स के अनुसार शर्मा परिवार का एक्सपोर्ट और कपड़े का बड़ा कारोबार है। गाजियाबाद में उनकी फैक्टरी है। बेटा भी कारोबार संभालता है। इस वारदात की सूचना पर दक्षिण दिल्ली के थाना डिफेंस कॉलोनी पुलिस ने एफआईआर नंबर 111/2022 पर अज्ञात आरोपियों के विरुद्ध आईपीसी की धाराओं 392, 456, 458, 120बी, 506, 34 के तहत अपराध दर्ज कर लिया।

जिस कोठी में डकैती डाली गई, उसके सामने ही कुछ दूरी पर एक और कोठी में सुप्रीम कोर्ट की रिटायर्ड जज रहती हैं। उस कोठी के बाहर पुलिस सिक्योरिटी है। लेकिन बदमाश फिर भी इलाके में वारदात को अंजाम देकर फरार हो गए। जिसे दिल्ली पुलिस ने चुनौती के रूप में लिया।

बदमाश कोठी के अंदर पीछे के हिस्से में खाली पड़ी कोठी की ओर से आए थे। इनके हाथों में टॉर्च थी। रूम में चार टार्च जली थीं। डकैती की वारदात को अंजाम देने के बाद बदमाशों ने अगस्त क्रांति मार्ग से पहले एक ऑटो को हाथ दिया। ऑटो वाला रूक गया था। लेकिन इसी दौरान पीछे से आई कमर्शियल नंबर की एक ईको वैन से सभी बदमाश भाग गए।

दिल्ली पुलिस ने तफ्तीश के दौरान घटना से पहले का एक सीसीटीवी फुटेज जांच में लिया। इसमें सात आठ संदिग्ध व्यक्ति नज़र आ रहे थे। पुलिस ने घटना स्थल से फिंगरप्रिंट भी लिए। तफ्तीश के दौरान मिले सुराग, वारदात के तरीके व सायबर इनपुट के बाद पुलिस इस नतीजे पर पहुंची कि गुना जिले के धरनावदा थाना क्षेत्र के अंतर्गत बसे पारदियों के गांव के बदमाशों ने ही इस बड़ी वारदात को अंजाम दिया है। 

इसके बाद दिल्ली पुलिस ने गुना में आमद दर्ज कराई। एमपी पुलिस के सहयोग से बदमाशों को पकड़ने के लिए एक बड़ी दबिश भी पारदी गावों में दी गई। सूत्रों के मुताबिक दिल्ली पुलिस के एक एक कदम से वाकिफ असल बदमाश अपने ठिकानों को छोड़कर पहले ही भाग चुके थे, इसलिए तब किसी भी असली बदमाश के पकड़े जाने की सूचना सामने नहीं आई। दरअसल शुरुआत में शक्तिमान बना गंगाधर दिल्ली पुलिस को गुमराह करता रहा।

तेज तर्रार महिला पुलिस उपायुक्त के नेतृत्व में दिल्ली से आई पुलिस की टीम बहुत बारीकी से मामले के असली आरोपियों का पता लगाने में जुटी रही। इसी के चलते इस केस में दिल्ली पुलिस की कार्यप्रणाली में काफी बदलाव देखने को मिला।

तमाम संसाधनों से लैस दिल्ली पुलिस की टीम को जांच के दौरान उस व्यक्ति का पता चला जिसने पारदी बदमाशों से चोरी की कुछ ज्वैलरी खरीद ली थी। इसके बाद धरनावदा इलाके में रसूख रखने वाले एक परिवार के इस सदस्य को चोरी का माल खरीदने के आरोप में गिरफ्तार किया।

यह पहला मामला था जब दिल्ली पुलिस किसी डकैती को लेकर आत्मनिर्भर और गंभीर नज़र आई। इससे पहले जब भी अन्य राज्यों की पुलिस उनके यहां हुई चोरी डकैती के सिलसिले में वांछित पारदी बदमाशों की तलाश में गुना आई है। तब उसने मीडिया को खुलासे की कहानियां कुछ भी सुनाई गई हों। लेकिन पर्दे के पीछे की असल कहानी कुछ और ही रही। जिससे पारदियों के मामले एक सिंडीकेट की तरह डील होने की चर्चा हर बार चली। लेकिन इस बार गंगाधर के एक शोहदे ने दिल्ली पुलिस को असल कहानी सुना दी है। देखना होगा कि आगे क्या होता है।

दरअसल, एमपी समेत विभिन्न राज्यों में होने वाली चोरी डकैती के अधिकांश मामलों की एफआईआर में आरोपी बदमाश अज्ञात होते हैं। जिन्हें फरियादी नहीं पहचानता। यही चीज बदमाशों के बचाव की सबसे बड़ी वजह होती है। चर्चा रही है कि पारदी बदमाशों का मास्टर माइंड पहले से ही अन्य राज्यों से आमद देने वाली पुलिस टीम के संपर्क में रहते हैं। टीम को एक होटल में रुकवा कर खातिरदारी की जाती है। फिर एक दो दिन बाद इक्का दुक्का पारदी बदमाशों और चोरी गए माल में से झुमके, अंगूठी, घड़ी, पायल या ऐसा दस पंद्रह फीसदी सामान जिसे फरियादी देखते ही आसानी से पहचान ले, को सौंपकर तथा चोरी का बाकी का माल पकड़े गए बदमाशों के फरार साथियों पर होना बताकर टीम को वापस रुखसत कर देते हैं। 

हैरान परेशान फरियादी पुलिस द्वारा पकड़ कर लाए गए आरोपियों को भले ही न पहचान पाए। लेकिन वह घर से चोरी गए उसके समान में से उसके सामने रखे गए झुमके, अंगूठी, घड़ी, पायल जैसी चीजों को पहचान कर तसल्ली कर लेता है। इस कवायद से न केवल अन्य राज्य की पुलिस टीम बिना खास मेहनत किए ही वारदात के कथित खुलासे के दवाब से मुक्त हो जाती है। बल्कि बिचौलिए भी माल हड़प कर सफलता की कहानी में खुद का किरदार तय कर अन्य राज्यों से इनाम प्रशंसा हासिल करने की जुगाड़ भिड़ा लेते हैं। 

चर्चा है कि ऐसे मामलों में बाद में लीपापोती हो जाती है। न तो कभी सौ फीसदी माल की बरामदगी होती है और न ही सभी असल बदमाश पकड़ में आते हैं। इस तरह कथित तौर पर सौंपे गए बदमाश भी कुछ दिनों बाद कोर्ट से जमानत पर आकर या आरोप से बरी होकर फिर मास्टर माइंड के इशारे पर "अंधेरी खेलने" (कृष्ण पक्ष में चोरियां करना) के अपने पुश्तैनी जरायम पेशे में लग जाते हैं। 

ये सिलसिला यूं ही चलता रहता है। इस सब में पीड़ित फरियादी ठगा सा रह जाता है। उसे चोरी गया माल मशरूका पूरा कभी नहीं मिल पाता। और कोई उसे ये भी नही बताता कि उसका बाकी का अस्सी नब्बे फीसदी माल आखिर कहां गया! हालांकि इस पूरे कॉकस को सब समझने लगे हैं लेकिन सभी किसी न किसी स्तर पर "मैनेज" हैं। बाहर के राज्यों की बात तो दूर है जिले में ही पारदियों द्वारा घटित डकैती की चर्चित वारदातों जैसे #कुम्हारी, जैतपुरा, सीए ब्रजेश अग्रवाल, खुरई के धर्मेन्द्र सेठ समेत अन्य वारदातों में भी चोरी गए माल की सौ फीसदी रिकवरी नहीं हो सकी है। 

बल्कि पुलिस कहीं इन अपराधों के सरगना तक न पहुंच जाए इसलिए तब एसपी ऑफिस के साइबर सैल के चैंबर में लगी मजबूत खिड़की की ग्रिल उखाड़ कर सीडीआर के लैपटॉप भी चोरी करा दिए गए थे। हालांकि इस चोरी के कथित आरोपी को पकड़ा गया, लेकिन उससे किसी ने ये नहीं पूछा कि शहर में लैपटॉप की तमाम दुकानें होने के बाद भी तुझ अनपढ़ को पुलिस के लैपटॉप की जरूरत क्यों पड़ी? जाहिर है लैपटॉप की जरूरत उसे नहीं बल्कि मास्टर माइंड को थी। चर्चा है कि चोरी करने वाले बदमाशों को मास्टर माइंड वारदात के दौरान मोबाइल पर जो निर्देश दे  रहा था उसका डाटा उन लैपटॉप में था। लेकिन जिले के जिम्मेदार इस खेल से मिलने वाली रबड़ी में आकंठ डूबे रहे इसलिए किसी ने कोई जहमत नहीं उठाई।

बहरहाल, इन चर्चाओं की हकीकत तभी सामने आ सकती है जब किसी उच्च स्तरीय एजेंसी को इस सिंडीकेट और पारदियों द्वारा अंजाम दी गईं बड़ी वारदातों की जांच और खुलासे का जिम्मा सौंपा जाए। जो पारदी बदमाशों के साथ साथ उन बिचौलियों और शक्तिमानों को भी इन सवालों के साथ गोपनीय जांच के दायरे में रखे कि आखिर हर बार इन्हें ही सब कुछ पता कैसे चल जाता है?  कुछ लोगों की रुचि धरनावदा थाने, झागर चौकी यहां तक कि साइबर सैल जैसे महत्वपूर्ण दफ्तर में "पपेट इंचार्ज" तैनात कराने में क्यों रहती है?

बाहर की टीम आते ही बिचौलियों को बेचैनी क्यों होने लगती है? क्या एमपी पुलिस के पास हजारों अफसरों में से इक्का दुक्का को छोड़ कर कोई भी काबिल अफसर नहीं हैं, जो पारदी बदमाशों को पकड़ सके? अक्सर करोड़ों के माल में से कौड़ियों के माल की बरामदगी ही क्यों होती है? बरामदगी से बचे माल के हिस्से किस किस तक पहुंचते हैं? लगातार करोड़ों की डकैतियां डालने के बाद भी पारदी फटेहाल और भूखे पेट क्यों रहते हैं?

कहीं ऐसा तो नहीं कि चोरी डकैती की वारदातें एक उद्योग की तरह संचालित हो रही हों! जिसमें माल खरीदने-बिकवाने, असली अपराधियों को बचाने, नकली को फंसवाने, मामले की लीपापोती करने से लेकर बाहर की पुलिस टीम को मैनेज करने तक सबके अपने अपने किरदार फिक्स हों और पारदी इस उद्योग के बदनाम शुदा मजदूर भर हों, जिन्हें आगे रखकर सफेदपोश लोग अपनी तिजोरियां भर रहे हों! और कहीं ऐसा तो नहीं कि झेला, बिचौलिया बनने वाले शक्तिमान ही गंगाधर हों!

हकीकत क्या है ये तो संबंधित जन ही जानें। फिलहाल तो एक बार फिर पुलिस की कार्यशैली और पारदियों के किस्से जनता में चर्चा का विषय बने हुए हैं। अब सबकी निगाह दिल्ली पुलिस के अगले कदम पर है।

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