सजा पूरी कर चुके पाकिस्तानियों की रिहाई पर सुप्रीम कोर्ट का सुनवाई से इनकार
शीर्ष अदालत ने श्री श्याम ट्यूबवेल कंपनी के मालिक पदम चंद जैन को जमानत दे दी। सुप्रीम कोर्ट ने देश की विभिन्न जेलों में बंद पाकिस्तानी कैदियों को लेकर दायर याचिका पर सुनवाई से इनकार कर दिया है।
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नई दिल्ली (आरएनआई) सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को देश की विभिन्न जेलों में बंद पाकिस्तानी कैदियों को लेकर दायर याचिका पर सुनवाई से इनकार कर दिया है। श्री श्याम ट्यूबवेल कंपनी के मालिक पदम चंद जैन को जल जीवन मिशन मामले में बड़ी राहत मिली है।
शीर्ष अदालत से श्री श्याम ट्यूबवेल कंपनी के मालिक पदम चंद जैन को बड़ी राहत मिली है। अदालत ने उन्हें जमानत दे दी। जैन को राजस्थान में जल जीवन मिशन (जेजेएम) योजना के कार्यान्वयन में कथित अनियमितताओं के लिए ईडी द्वारा गिरफ्तार किया गया था।
भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) द्वारा प्राथमिकी दर्ज किए जाने के बाद जैन को पिछले साल जून में ईडी की जांच के बाद गिरफ्तार किया गया था।
शीर्ष अदालत में दायर याचिका में सजा पूरी कर चुके 103 पाकिस्तानी कैदियों की रिहाई के लिए भारत सरकार को निर्देश देने की मांग की गई थी। इस पर अदालत ने कहा कि इस मसले पर एक याचिका कई सालों से लंबित है। अदालत पहले से ही उसपर सुनवाई कर रही है, ऐसे में इस नई अर्जी पर सुनवाई करने की इच्छुक नहीं है।
न्यायाधीश एमएम सुंदरेश की अध्यक्षता वाली पीठ ने मामले की सुनवाई करने से इनकार कर दिया। अधिवक्ता नितिन मट्टू द्वारा दायर याचिका में कहा गया था कि पाकिस्तानी कैदी, जिन्होंने अपनी सजा पूरी कर ली है या जिन्हें बरी कर दिया गया है, उन्हें जेल से रिहा किया जाना चाहिए। इसके अलावा, यह भी कहा गया कि केंद्र सरकार को विदेश मंत्रालय की वेबसाइट पर इन कैदियों की सूची उपलब्ध करानी चाहिए, ताकि भारत में बंद पाकिस्तानी नागरिकों के रिश्तेदारों का पता चल सके।
अधिवक्ता ने कहा कि उन्होंने पिछले साल 23 अप्रैल को आरटीआई के जरिए भारतीय जेलों में बंद पाकिस्तानी कैदियों की सूची मांगी थी, जिसमें यह जानकारी मिली कि 337 लोग भारतीय जेलों में बंद हैं, जिनमें से 103 पाकिस्तानी नागरिकों ने अपनी सजा पूरी कर ली है लेकिन वे अभी भी जेल में हैं। उन्होंने कहा कि उन्होंने सरकार से इन कैदियों की तत्काल रिहाई की मांग की थी, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की गई। इसलिए वह सुप्रीम कोर्ट पहुंचे। उनका कहना था कि ऐसे कैदियों की रिहाई से राज्य सरकारों पर आर्थिक बोझ कम होगा और यह उनके अधिकारों का उल्लंघन भी नहीं होगा। इसके अलावा कैदियों को उनके देश में रिहा नहीं करना भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 ए के अनुसार उनके साथ अन्याय है।
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