संसार में हर कोई लड़ रहा महाभारत, जीवन रूपी बागडोर श्रीकृष्ण को सौंप दें, निजी होटल आयोजित श्रीमद् भागवत कथा में बोले इंद्रेशजी महाराज
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गुना (आरएनआई) सामरसिंगा परिवार द्वारा एक निजी होटल में आयोजित श्रीमद् भागवत कथा के तीसरे दिवस इंद्रेशजी महाराज ने महाभारत युद्ध का प्रसंग सुनाते हुए श्रावकों को महाभारत से जीवन जीने की कला सीखने का मार्ग बताया। उन्होंने कहा कि संसार में हर कोई महाभारत की तरह जीवन व्यतीत कर रहा है। निर्णय और आत्मचिंतन करना होगा कि इस महाभारत रूपी संसार में हम पाण्डव हैं या कौरव। यदि हमारे भीतर पाण्डवों के गुण विद्यमान हैं तो भी विजयी होने के लिए जीवन की बागडोर भगवान श्रीकृष्ण को सौंपना होगा।
इंद्रेशजी महाराज ने महाभारत के युद्ध की तुलना संसार के तमाम व्यक्तियों के जीवन से करते हुए रोचक प्रसंग सुनाए और ज्ञानवर्धक उपदेश दिए। उन्होंने बताया कि लोग जन्म से ही महाभारत लड़ रहे हैं। पृथ्वी पर जन्म लेने के उपरांत जैसे ही बुद्धिमान होने लगते हैं, व्यक्ति के जीवन में महाभारत शुरु हो जाती। महाभारत सबकी चल रही है। बस हमें यह बता लगाना है कि हमारा पक्ष कौरव हैं या पाण्डव। इंद्रेशजी ने बताया कि जिस व्यक्ति के पास युद्धिधिष्टर की तरह धर्म, भीम की तरह बल, अर्जुन की तरह प्रेम, नकुल की तरह बुद्धि और सहदेव की तरह रूपवान होने का गुण है और वह अपना जीवन श्रीकृष्ण को सौंप देता है तो वह पाण्डव है। इसके साथ ही व्यक्ति को द्रोपदी की तरह दया का भाव भी रखना होगा। व्यक्ति के जीवन में दया आवश्यक है। क्योंकि उक्त पांचों गुण कौरवों के पास भी थे। लेकिन पाण्डवों के पास द्रोपदी के रूप में दया और भगवान श्रीकृष्ण का वरदहस्त था। इसलिए वे महाभारत जीते। सद्मार्ग दिखाने के लिए भगवान श्रीकृष्ण का होना आवश्यक है। यदि श्रीकृष्ण की भक्ति नहीं है तो महाभारत में हार जाओ। श्रीकृष्ण से आशय ज्ञान के रूप में है। दया के साथ व्यक्ति के पास ज्ञान होना चाहिए।
श्री रामलला की प्रतिष्ठा में शामिल नहीं हो सके इंद्रेशजी
कथा का शुभारंभ करते हुए इंद्रेशजी महाराज ने बताया कि उन्होंने अयोध्या में भगवान श्री रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा का आमंत्रण मिला था। वह जाना चाहते थे, परंतु गुना की कथा को बीच में छोड़कर नहीं जा सकते थे। उन्होंने प्रयास किया था कि प्राण-प्रतिष्ठा में शामिल होकर वापस लौट आएंगे, लेकिन अयोध्या में निजी विमानों को उतरने की अनुमति नहीं है। महोत्सव में आरक्षित उनकी सीट खाली रह गई। ठाकुरजी की इच्छा यही है। परंतु 28 जनवरी को कथा विश्राम के बाद सबसे पहले अयोध्या पहुंचेंगे और भगवान का दर्शन करेंगे। इंद्रेशजी ने गुनावासियों को यह कहकर भावुक कर दिया कि आज के दिन भगवान रामलला महल में विराजे हैं, इसलिए यह कथा जीवन पर्यंत उन्हें याद रहेगी। यह दिन इस युग में दोबारा न आएगा।
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