'संसद में निर्विरोध प्रवेश की अनुमति क्यों दी जानी चाहिए', सुप्रीम कोर्ट ने EC व केंद्र सरकार से पूछा

सुनवाई के दौरान पीठ ने कहा कि चुनाव आयोग ने बताया है कि सिर्फ नौ ऐसे मामले हैं, जहां चुनाव निर्विरोध हुए। आयोग के वकील राकेश द्विवेदी ने कहा कि पिछले 30 वर्षों में सिर्फ एक ही ऐसा मामला रहा है, जिसमें चुनाव निर्विरोध हुआ हो।

Apr 25, 2025 - 10:10
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'संसद में निर्विरोध प्रवेश की अनुमति क्यों दी जानी चाहिए', सुप्रीम कोर्ट ने EC व केंद्र सरकार से पूछा

नई दिल्ली (आरएनआई) सुप्रीम कोर्ट ने निर्वाचन आयोग व केंद्र सरकार से पूछा कि किसी को संसद में प्रवेश की अनुमति क्यों दी जानी चाहिए जबकि उसे न्यूनतम 5 फीसदी वोट भी नहीं मिले हों। जस्टिस सूर्यकांत व जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने कहा कि संविधान में कहा गया है कि भारत बहुमत का लोकतंत्र है। इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए पीठ ने सुझाव दिया कि जहां एक से अधिक उम्मीदवार नामांकन दाखिल करते हैं और जब अन्य अंतिम समय में अपना नाम वापस ले लेते हैं तो उम्मीदवार को जीतने के लिए कम से कम 10, 15 या 25 फीसदी मतदाताओं को वोट पाना आवश्यक किया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट विधि सेंटर फॉर लीगल पॉलिसी की ओर से जन प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 53(2) को चुनौती देने वाली जनहित याचिका पर सुनवाई कर रहा था।

प्रावधान में निर्विरोध चुनावों में उम्मीदवारों के सीधे चुनाव का प्रावधान है। सुनवाई के दौरान पीठ ने कहा कि चुनाव आयोग ने बताया है कि सिर्फ नौ ऐसे मामले हैं, जहां चुनाव निर्विरोध हुए। आयोग के वकील राकेश द्विवेदी ने कहा कि पिछले 30 वर्षों में सिर्फ एक ही ऐसा मामला रहा है, जिसमें चुनाव निर्विरोध हुआ हो। याचिकाकर्ता के वकील अरविंद दातार ने दलील दी कि अरुणाचल प्रदेश में 60 उम्मीदवारों में से 10 एकल उम्मीदवार थे और उनका निर्विरोध निर्वाचन हुआ। दातार ने कहा कि एक निर्वाचन क्षेत्र में 3 या 4 लोग होते हैं और अंतिम दिन वे अपना नामांकन वापस ले लेते हैं और सिर्फ एक व्यक्ति बचता है। इस पर पीठ ने कहा कि यह एक अच्छा सुधार होगा और इससे किसी को असुविधा नहीं होगी।

पीठ ने कहा, ऐसा संभव है कि कोई संपन्न उम्मीदवार दबाव डालकर, प्रभावित करके या बहला-फुसलाकर चुनाव जीत जाए और अंत में केवल एक ही उम्मीदवार बचे। पीठ ने आयोग से कहा, अचानक, मतदाताओं को पता चलता है कि एक व्यक्ति के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं है। मतदाताओं को प्रतिक्रिया करने का मौका नहीं मिलेगा क्योंकि वह निर्विरोध निर्वाचित हो जाएगा। वर्तमान वैधानिक योजना ऐसी ही है।  नोटा  को आपने स्वीकार कर लिया है। यहां आप असहाय हैं और मतदाता भी।

पीठ ने आयोग से कहा, हमारी लोकतांत्रिक प्रणाली ने हर चुनौती का समाधान किया है, लेकिन आप इस समस्या को देखते हुए कुछ अधिनियम बना सकते हैं। आप कह सकते हैं कि हम किसी ऐसे व्यक्ति को संसद में प्रवेश क्यों दें, जिसे 5 फीसदी वोट भी नहीं मिलें। आप ऐसा इसलिए सोच सकते हैं क्योंकि आप लोगों और पूरे निर्वाचन क्षेत्र की इच्छा का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। यह सिर्फ सक्षम करने वाला प्रावधान है, जिसके बारे में आप सोच सकते हैं।

राकेश द्विवेदी ने कहा कि नोटा एक असफल विचार है। यह चुनावों पर कोई प्रभाव नहीं डाल रहा है। जीतने वाले उम्मीदवारों पर इसका कभी कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। केंद्र का प्रतिनिधित्व कर रहे अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने कहा कि वह द्विवेदी से सहमत हैं। पीठ ने कहा कि केंद्र एक छोटा विशेषज्ञ निकाय गठित कर सकता है और वे इसकी जांच कर सकते हैं। इस तर्क की कोई आवश्यकता नहीं है कि जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 53(2) को खत्म कर दिया जाना चाहिए। वे इसके तहत एक सक्षम प्रावधान जोड़ सकते हैं कि उम्मीदवार को 10 या 15 प्रतिशत वोट हासिल करने होंगे। अदालत ने केंद्र को अपना जवाब दाखिल करने के लिए समय दिया और मामले की अगली सुनवाई जुलाई में तय की।

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