‘संवैधानिक परियोजना की सफलताओं-असफलताओं पर हो चर्चा’, संविधान दिवस पर कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी
आज संविधान दिवस है और देश संविधान की 75वीं सालगिरह मना रहा है। इस बीच, कांग्रेस के सांसद मनीष तिवारी ने संवैधानिक परियोजना की सफलताओं और नाकामयाबी पर चर्चा, बहस और विश्लेषण की आवश्यकता पर जोर दिया।
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नई दिल्ली (आरएनआई) आज संविधान दिवस है और देश संविधान की 75वीं सालगिरह मना रहा है। इस बीच, कांग्रेस के सांसद मनीष तिवारी ने संवैधानिक परियोजना की सफलताओं और नाकामयाबी पर चर्चा, बहस और विश्लेषण की आवश्यकता पर जोर दिया।
उन्होंने सोशल मीडिया मंच एक्स पर कहा कि भारतीय संविधान को अपनाने की 75वीं वर्षगांठ का कोई भी जश्न तब तक पूरा नहीं होगाा, जब तक लोकसभा और राज्यसभा संवैधानिक परियोजना की सफलताओं और असफलताओं पर चर्चा, बहस और विश्लेषण नहीं करती।
तिवारी ने संविधान के निर्माण के लिए की गई कोशिशों पर भी प्रकाश डाला। उन्होंने कहा, 'आधुनिक भारत के संस्थापकों ने सबसे पहले 1947 में नई आजादी की सुबह और सभी भारतीयों के लिए समानता, बंधुत्व और न्याय की नई प्रतिज्ञा की घोषणा करने के लिए इमारतों को ढहाने और खड़ा करने का कदम नहीं उठाया था। इसके बजाय उन्होंने अपने तीन सौ श्रेष्ठ लेखकों के साथ करीब तीन साल तक बैठकर समकालीन भारत की सबसे महत्वपूर्ण पुस्तक संविधान पर बहस की, विश्लेषण किया और उसे गढ़ा।'
संविधान सभा ने 26 नवंबर 1949 को संविधान को अपनाया था। बाद में इसे 26 जनवरी 1950 को लागू किया गया। सामाजिक न्याय एवं आधिकारिता मंत्रालय ने 19 नवंबर 2015 को एक अधिसूचना जारी की थी। इसमें कहा गया था कि 26 नवंबर को हर साल 'संविधान दिवस' के तौर पर मनाया जाएगा। इसका मकसद नागरिकों में संवैधानिक मूल्यों के प्रोत्साहन के तौर पर मनाया जाना है।
इस वर्ष संविधान को अपनाने के 75 साल पूरे हो गए हैं। कानून और न्याय मंत्रालय की विज्ञप्ति के अनुसार, संविधान को आकार देने में बाबा साहेब आंबेडकर के महत्वपूर्ण योगदान को उजागर करने के उद्देश्य से 'हमारा संविधान, हमारा स्वाभिमान' अभियान के तहत साल भर की गतिविधियों के साथ मील का पत्थर मनाया जाएगा। साल भर चलने वाला 'हमारा संविधान, हमारा स्वाभिमान' अभियान बीकानेर में अपने पहले क्षेत्रीय कार्यक्रम के साथ शुरू हुआ था, जिसका उद्घाटन मार्च 2024 में उस समय के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने किया था।
उन्होंने कहा कि पिछले सात दशकों में, संविधान ने भारत के शासन के मूल सिद्धांतों न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व को बनाए रखते हुए राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक परिवर्तनों के माध्यम से राष्ट्र का मार्गदर्शन किया है।
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