संविधान संशोधन की न्यायिक समीक्षा नहीं: जस्टिस वर्मा केस में राज्यसभा सभापति धनखड़ ने NJC का जिक्र किया
जस्टिस वर्मा मामले पर राज्यसभा के सभापति धनखड़ ने एक बार फिर NJC का जिक्र किया है। उन्होंने कहा कि देश में संविधान संशोधन की न्यायिक समीक्षा नहीं होती। जस्टिस वर्मा के मुद्दे पर चर्चा के लिए राज्यसभा सभापति जगदीप धनखड़ ने सदन के नेताओं की बैठक भी बुलाई थी। यह बैठक बेनतीजा रही। अब वे सभी दलों के नेताओं से अलग-अलग बात करेंगे।

नई दिल्ली (आरएनआई) दिल्ली हाईकोर्ट के जज जस्टिस यशवंत वर्मा मामले में न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर उठ रहे सवालों के बीच राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने फिर राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) अधिनियम का जिक्र किया है।
एनजेएसी को ऐतिहासिक बताते हुए धनखड़ ने कहा कि अगर यह लागू होता तो चीजें अलग होतीं। उन्होंने यह भी कहा कि संविधान संशोधन की न्यायिक समीक्षा का कोई प्रावधान नहीं है। धनखड़ ने मंगलवार को राज्यसभा में कहा, गरिमा को ध्यान में रखते हुए, 2015 में इस सदन ने एक कानून बनाया था।
संसद ने इसे सर्वसम्मति से पारित किया था। राष्ट्रपति ने अनुच्छेद 111 के तहत हस्ताक्षर करके इसे प्रमाणित किया था। अब हम सभी के लिए इसे दोहराने का उपयुक्त अवसर है। गौरतलब है कि कॉलेजियम प्रणाली बदलने के लिए एनजेएसी अधिनियम लाया गया था। 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने इसे असांविधानिक करार देते हुए खारिज कर दिया था।
धनखड़ ने कहा कि संविधान में संशोधन की समीक्षा या अपील का कोई सांविधानिक प्रावधान नहीं है। अगर संसद या राज्य की ओर से कोई कानून बनाया जाता है, तो न्यायिक समीक्षा की जा सकती है कि वह सांविधानिक प्रावधानों के अनुरूप है या नहीं। उन्होंने कहा कि अब देश के सामने दो स्थिति है, एक एनजेएसी है जिसे संसद ने पारित किया है, राज्य विधानसभाओं ने समर्थन दिया है और राष्ट्रपति ने हस्ताक्षर किए हैं और दूसरा न्यायिक आदेश है।
धनखड़ ने कहा, 'मैं सदस्यों से दृढ़तापूर्वक आग्रह करता हूं कि वे इस पर विचार करें कि संसद की ओर से पारित और विधानमंडलों की ओर से अनुमोदित किसी भी संस्था द्वारा कोई उल्लंघन नहीं किया जा सकता है। इस मामले में फिर से वही तंत्र अपनाना चाहिए। उन्होंने शुक्रवार को भी एनजेएसी का जिक्र किया था।'
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