शो मैन राज कपूर के 100 साल: फिल्मों की भरी-पूरी विरासत सौंपकर जाने वाला कलाकार

राज कपूर बड़े अभिनेता, निर्देशक, निर्माता थे। उनके प्रत्येक आयाम पर किताबें लिखी जा सकती हैं। वैसे बताती चलूं उन पर अब तक कई किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं और आगे भी संभावनाएं हैं। पर इन उससे भी बढ़ कर वे बड़े इंसान थे, यारों के यार थे।

Dec 14, 2024 - 09:00
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शो मैन राज कपूर के 100 साल: फिल्मों की भरी-पूरी विरासत सौंपकर जाने वाला कलाकार

नई दिल्ली (आरएनआई) सफलता का परचम लहराने के लिए कड़ी मेहनत, लगन और जुनून की आवश्यकता होती है। ऐसे ही एक मेहनती, लगनशील एवं जुनूनी, देश-विदेश में सफ़लता का झंडा बुलंद करने वाली सिने-पर्सनलिटी का शताब्दी समारोह हम मना रहे हैं। हिन्दी फ़िल्म उद्योग के एक सबसे बड़े शोमैन, राज कपूर यूं ही शोमैन नहीं बन गए।

लेब्रोटरी से लेकर सिनेमाटोग्राफ़ी तक सिनेमा से जुड़े सब क्षेत्र की जानकारी उन्हें थी। होती भी भला क्यों नहीं? सिनेमा बनाने के छोटे-बड़े सब काम उन्होंने किए। फ़र्श बुहारने से लेकर प्रॉप्स को इधर-उधर ले जाना, स्पॉटबॉय, सहायक निर्देशक, अभिनय सारे काम करते हुए वे बड़े हुए। सारी बुनियादी बातें सीखीं। निर्देशक की कुर्सी तक पहुंचे, प्रोड्यूसर बने।

राज कपूर बड़े अभिनेता, निर्देशक, प्रड्युसर थे। उनके प्रत्येक आयाम पर किताबें लिखी जा सकती हैं। वैसे बताती चलूं उन पर अब तक कई किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं और आगे भी संभावनाएं हैं। पर इन उससे भी बढ़कर वे बड़े इंसान थे, यारों के यार थे। राज कपूर शुरु से जुनूनी थे, जिद के पक्के, बतौर नायक ‘नीलकमल’ (1947) अपनी पहली फिल्म में उन्होंने शर्त रख दी। उनकी जोड़ी केलिए सुंदर और युवा अभिनेत्री होनी चाहिए। इस पठान ने एक पठान लड़की बेगम मुमताज की सिफ़ारिश की जिसे परदे पर नाम मिला मधुबाला। आगे चलकर दोनों ने कई सफ़ल फ़िल्में – ‘दो उस्ताद’, ‘दिल की रानी’, ‘अमर प्रेम’, ‘चित्तौड़ विजय’ दीं।

अभिनेता, सिने-निर्देशक, प्रड्युसर राज कपूर 14 दिसम्बर 1924 को पेशावर (आज के पाकिस्तान में) जन्में थे। उनके पिता नामी पृथ्वीराज कपूर नाटक और बाद में फ़िल्म अभिनेता थे। राजकपूर ने अपने जीवन में सबसे पहले देबकी बोस की कहानी पर उन्हीं के द्वारा पटकथा एवं निर्देशन में बनी फ़िल्म ‘इंकलाब’ (1935) में अपने पिता के साथ अभिनय किया। रायचंद बोस इस फ़िल्म के म्युजिशियन थे।

फिल्म बिहार के भूकंप की पृष्ठभूमि पर है।अभिनेता राज कपूर इसी मुकाम पर रुकने वाले नहीं थे, इस महत्वकांक्षी युवक ने पहली फ़िल्म के साथ मात्र 23 साल की उम्र में अपना आर. के. स्टूडियो स्थापित कर दिया और अगले साल 1948 में अपनी पहली फ़िल्म ‘आग’ बनाई।

फ़िल्म राज कपूर की महत्वाकांक्षा का प्रतीक है। इस भावनात्मक फ़िल्म में नायक बड़ा सपना देखता है। फ़िल्म ने नर्गिस को बेहिसाब ख्याति मिली। वे राज कपूर की नायिका बन गई। दोनों ने ‘पापी’, ‘प्यार’, ‘अंदाज’, ‘बरसात’, ‘आवारा’,“जागते रहो’, ‘श्री 420’ आदि कई फ़िल्मों में साथ काम किया।
 
भला कौन भूल सकता है, ‘स्री 420’ फ़िल्म का वह गीत जिसमें नायक-नायिका बारिश में गाते हुए जा रहे हैं और उनके पीछे तीन बच्चे चल रहे हैं। ‘मैं न रहूंगी, तुम न रहोगे, रह जाएगी निशानियां...’ सच है आज राज कपूर शारीरिक रूप से हमारे बीच नहीं हैं पर उनकी निशानियां अमिट हैं। उनके प्यार के गीत जवानियां दोहराती रहेंगी। उन्होंने एक भरी-पूरी विरासत छोड़ी है

1951 में उनकी निर्देशित-अभिनीत फ़िल्म ‘आवारा’ ने उन्हें स्थापित कर दिया। जे. जे. स्कूल ऑफ़ आर्ट्स से प्रशिक्षित एम. आर. आर्चेकर इस फ़िल्म के कला निर्देशक थे, कैमरा राधु करमाकार ने संभाला और ख्वाजा अहमद अब्बास एवं वी. पी. साठे ने इसकी कहानी लिखी। इसका ड्रीम स्किवेंस कदाचित हिन्दी फ़िल्म का

पहला ड्रीम स्विकेंस है। परदे पर जादुई प्रभाव उत्पन्न करने वाला यह दृश्यबंध लगातार 72 घंटे की दिन-रात के काम और दो बार की प्रोसेसिंग का नतीजा है। यह राज कपूर की कल्पना और उनकी टीम की सृजन शक्ति का परिणाम है।

फ़िल्म ‘आवारा’ ने पूरे दक्षिण एशिया में भारतीय सिनेमा की पहुंच बना दी थी, जिसकी गूंज आज भी सुनाई देती है। इस फ़िल्म के बिना राज कपूर पर बात नहीं हो सकती है। तीन दिन, 13 से 15 दिसम्बर 2024 तक चलने वाले उनके शताब्दी समारोह में 40 शहरों 135 सिनेमागरों में मात्र सौ रुपए में दिखाई जाने वाली 10 फ़िल्मों में ‘आवारा’ शामिल है।

दिखाई जाने वाली अन्य फ़िल्में ‘बरसात’, ‘श्री 420’, ‘जागते रहो’, ‘जिस देश में गंगा बहती है’, ‘संगम’, ‘मेरा नाम जोकर’, ‘बॉबी’ तथा ‘राम तेरी गंगा मैली’ हैं। शताब्दी समारोह सरकार, आर.के.फ़िल्म्स, फ़िल्म हेरिटेज फ़ाउंडेशन के सहयोग से आयोजित हो रहा है।

राज कपूर टीम बनाना, उसे संभाले रखना जानते थे। दोस्ती निभाने में उनका सानी नहीं था। शैलेंद्र, मुकेश, शंकर जय किशन, हसरत जयपुरी, अपने फ़ोटोग्राफ़र, कैमरामैन राधु करमाकर से उनकी आजीवन दोस्ती रही। 1949 से 1073 यानी 24 साल उनके कैमरामैन रहे राधु करमाकर ने उनके द्वारा निर्देशित चार फ़िल्मों – ‘श्री 420’, ‘मेरा नाम जोकर’, ‘सत्यं शिवं सुंदरं’ तथा ‘हिना’ के लिए फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार पाया। आर. के. फिल्म्स के बैनर तले राधु करमाकर ने अपनी एकमात्र निर्देशित फ़िल्म ‘जिस देश में गंगा बहती है बनाई थी, जिसमें राज कपूर-पद्मिनी-प्राण ने भूमिकाएं की हैं।

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