शीर्ष कोर्ट में तत्काल सुनवाई के लिए मौखिक उल्लेख पर रोक, सीजेआई खन्ना का ईमेल या लिखित पत्र भेजने का निर्देश

सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायधिश संजीव खन्ना ने अब तत्काल लिस्टिंग और सुनवाई के लिए मौखिक उल्लेख पर रोक लगा दी है। जिसके बाद अब वकीलों को तत्काल सुनावाई के लिए ईमेल या लिखित पत्र में कारण के साथ भेजने होंगे कि आखिर उनके मामले को क्यों तुरंत सुना जाना चाहिए।

Nov 13, 2024 - 12:00
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शीर्ष कोर्ट में तत्काल सुनवाई के लिए मौखिक उल्लेख पर रोक, सीजेआई खन्ना का ईमेल या लिखित पत्र भेजने का निर्देश

नई दिल्ली (आरएनआई) सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस संजीव खन्ना ने अब मामलों की तत्काल लिस्टिंग और सुनवाई के लिए कोई मौखिक उल्लेख पर रोक लगाने का आदेश किया है। सीजेआई के इस निर्णय के बाद अब वकीलों को इसके लिए ईमेल या लिखित पत्र भेजने होंगे। मुख्य न्यायाधीश जस्टिस खन्ना ने मंगलवार को स्पष्ट किया कि अब तात्काल कार्रवाई में मौखिक प्रस्तुतियां स्वीकार नहीं होंगी। सिर्फ ईमेल या लिखित पर्ची के जरिये ही ऐसा किया जा सकेगा।

सीजेआई के इस आदेश के बाद वकील अपनी मांगों को ईमेल या लिखित आवेदन के माध्यम से भेदेंगे। जिसमें वे बताएंगे कि आखिर उनके मामले को क्यों तुरंत सुना जाना चाहिए। बता दें कि यह बदलाव पूर्व मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ द्वारा शुरू की गई प्रणाली का हिस्सा है जो मौखिक उल्लेखों को सुनते थे।

यह प्रथा बहुत समय लेती थी और अक्सर न्यायिक समय का आधा घंटा खर्च होता था, जिससे बड़े आरोपी और वरिष्ठ अधिवक्ताओं को फायदा होता था क्योंकि वे बारी से पहले ही मामलों की सुनवाई सुनिश्चित कर सकते थे।

सीजेआई के इस निर्णय के बाद इस मामले पर वकिलों की मिली-जुली प्रतिक्रियाएं सामने आने लगी है। जहां कुछ लोग इस कदम को सकारात्मक मानते हुए इसे न्यायिक समय की बचत करने वाला बताते हैं जबकि कुछ का मानना है कि अत्यंत आवश्यक मामलों में मौखिक उल्लेख की प्रथा जारी रहनी चाहिए।

जस्टिस खन्ना ने न्यायिक सुधारों के लिए नागरिको केंद्रित एजेंडा की रूपरेखा बनाई है। जिसको लेकर उन्होंने कहा कि नागरिकों को उनकी स्थिति की परवाह किए बिना न्याय तक आसान पहुंच और समान व्यवहार - सुनिश्चित करना न्यायपालिका का सांविधानिक कर्तव्य है। उन्होंने कहा कि आमतौर पर वकील दिन की कार्यवाही की शुरुआत में सीजेआई की अगुवाई वाली पीठ के समक्ष अपने मामलों का उल्लेख करते हैं, ताकि मामलों की बारी से पहले लिस्टिंग और सुनवाई की जा सके।

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