शिव-पार्वती विवाह का प्रसंग सुन श्रद्धालु हुए भाव विभोर
सिकंदराराऊ।
कासगंज रोड स्थित ममता गेस्ट हाउस में चल रही श्रीमद भागवत कथा में भागवत आचार्य पंडित सुभाष चंद्र दीक्षित ने शिव-पार्वती विवाह का प्रसंग सुनाया। प्रसंग सुन श्रद्धालु भाव विभोर हो गए। इस दौरान शिव-पार्वती विवाह की झांकी भी सजाई गई।
श्री दीक्षित ने शिव विवाह का वर्णन करते हुए कहा कि पर्वतराज हिमालय की घोर तपस्या के बाद माता जगदंबा प्रकट हुईं और उन्हें बेटी के रूप में उनके घर में अवतरित होने का वरदान दिया। इसके बाद माता पार्वती हिमालय के घर अवतरित हुईं। बेटी के बड़ी होने पर पर्वतराज को उसकी शादी की चिंता सताने लगी। कहा कि माता पार्वती बचपन से ही बाबा भोलेनाथ की अनन्य भक्त थीं। एक दिन पर्वतराज के घर महर्षि नारद पधारे और उन्होंने भगवान भोलेनाथ के साथ पार्वती के विवाह का संयोग बताया।
उन्होंने कहा कि नंदी पर सवार भोलेनाथ जब भूत-पिशाचों के साथ बरात लेकर पहुंचे तो उसे देखकर पर्वतराज और उनके परिजन अचंभित हो गए, लेकिन माता पार्वती ने खुशी से भोलेनाथ को पति के रूप में स्वीकार किया। शिव विवाह वर्णन करते हुए कहा कि सती के आत्मदाह, पार्वती के रूप में पुर्नजन्म और शिवजी के साथ उनके विवाह की मनोहारी कथा का बखान किया। उनहोंने बताया कि, किस तरह से भगवान शंकर का विवाह गौरव पार्वती से होता है और तमाम जीव जंतु भगवान शंकर की बारात और भगवान शंकर जी का विवाह गौरा पार्वती से किया जाता है या झांकी के माध्यम से लोगों को दिखाया गया। उन्होंने बताया कि माता पार्वती जी का विवाह भगवान शंकर से हुआ है। इन्हें पार्वती के अलावा उमा, गौरी और सती सहित अनेक नामों से जाना जाता है। माता पार्वती प्रकृति स्वरूपा कहलाती हैं। शिव पार्वती का विवाह हुआ, बाद में इनके दो पुत्र कार्तिकेय तथा गणेश हुए। कई पुराणों के अनुसार इनकी एक पुत्री भी थी। भक्त ध्रुव के चरित्र का वर्णन करते हुए बताया कि एक बार उत्तानपाद सिंहासन पर बैठे हुए थे। ध्रुव भी खेलते हुए राजमहल में पहुंच गए। उस समय उनकी अवस्था पांच वर्ष की थी। उत्तम राजा उत्तनपाद की गोदी में बैठा हुआ था। ध्रुव जी भी राजा की गोदी में चढ़ने का प्रयास करने लगे। सुरुचि को अपने सौभाग्य का इतना अभिमान था कि उसने ध्रुव को डांटा। अजामिल का प्रसंग सुनाते हुए कहा कि, एक अच्छे कर्मकांडी ब्राह्मण थे, परंतु कुसंगति के कारण बिगड़ गए और उसके बाद उन्होंने अपने पुत्र का नाम नारायण रखने के मात्र से उनकी मुक्ति हो गई। उन्होंने कहा कि अच्छे संत के या उसके नाम के स्मरण से ही आदमी की मुक्ति हो जाती है। इसलिए कभी भी कुसंगति के संपर्क में नहीं आना चाहिए।
विवाह प्रसंग के दौरान शिव-पार्वती विवाह की झांकी पर श्रद्धालुओं ने पुष्प बरसाए।विवाह प्रसंग के दौरान सुंदर भजनों की प्रस्तुति भी दी।
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