शिक्षक धर्मेंद्र सोनी ने आत्महत्या नहीं की बल्कि भ्रष्ट सिस्टम ने उनकी हत्या की है
गुना। कर्नल गंज निवासी 42 वर्षीय शिक्षक धर्मेंद्र सोनी ने बमौरी ब्लॉक के ग्राम सिमरोद में गमरिया डेरे स्थित स्कूल में ड्यूटी के दौरान ही बुधवार को फांसी लगाकर जान दे दी। शिक्षक सोनी विभाग में व्याप्त भयंकर भ्रष्टाचार और अवैध वसूली से इतने टूट चुके थे कि उन्होंने मर जाना ही ठीक समझा। कहा जा रहा है कि उन्हें तीन महीने से परेशान किया जा रहा था। आत्महत्या वाले दिन भी सीएसी से उनकी कहासुनी हुई थी।
फांसी का फंदा कसते समय निश्चित तौर पर शिक्षक धर्मेंद्र सोनी अपनी आंखों के सामने अपने बूढ़े माता पिता नज़र आए होंगे। उन्हें पत्नी के साथ बिताई जिंदगी और हंसते खेलते अपने दोनो बच्चों की याद भी आई होगी। कल्पना की जा सकती है कि तब वह कितनी वेदना में होंगे। उन्हें किस हद तक प्रताड़ित किया गया होगा कि उन्होंने अपने परिवार और छोटे छोटे बच्चों तक को बिलखता छोड़कर मर जाना मंजूर किया।
भले ही ये लोगों को आत्महत्या दिखाई दे। लेकिन हकीकत में ये आत्महत्या नहीं बल्कि भ्रष्ट सिस्टम द्वारा की गई हत्या है। धर्मेन्द्र सोनी ने जो सुसाइड नोट छोड़ा है उसमें लिखा है कि :-
"मुझे छतर सिंह लोधा सीएसी बमोरी तथा राजीव यादव BEO बमोरी द्वारा इतना अधिक प्रताड़ित किया जा रहा है कि जिसके कारण मैं मानसिक रूप से परेशान हो कर आत्महत्या कर रहा हूँ। छतर सिंह द्वारा बार-बार मेरे स्कूल का निरीक्षण किया जाता है। कभी स्कूल बंद का फोटो मेरे मोबाइल पर भेजकर धमकाया जाता है कि BEO साहब को भेजूंगा, डीईओ साहब को भेजूंगा। कई बार पांच सौ रुपये, एक हजार रुपये, ढाई हजार रुपये, पांच हजार रुपये तक दे चुका हूँ। इसी वजह से मैं आर्थिक रूप से और मानसिक रूप से बहुत परेशान हो चुका हूँ। निरीक्षण के दौरान यदि मैं स्कूल पर मिल जाता हूँ, तो भी परेशान किया जाता है कि बच्चों को कुछ नहीं आता। बच्चे इतना कम क्यों आते हैं, स्कूल का रिकॉर्ड सही नहीं है। खाना मीनू अनुसार नहीं बनता, जबकि खाना समूह वाले पर है। बीईओ राजीव यादव द्वारा स्कूल बंद का नोटिस बार - बार दिया जाता है। और उसके बदले हजार, ढाई हजार, पांच हजार रुपये की मांग की जाती है। मेरे परिवार में मेरे वृद्ध माता-पिता तथा मेरी पत्नी तथा दो बच्चे हैं। अब इतनी सी वेतन में बच्चों, माता-पिता, पत्नी को पालूं कि बीईओ, सीएसी को रुपये दूं। मेरी प्रशासन से इतनी ही विनती है कि मुझे आत्महत्या करने को मजबूर करने वालों को छोड़ा न जावे और मेरे वृद्ध माता-पिता तथा पत्नी और बच्चों का ध्यान रखा जावे। "
इस सुसाइड नोट में सीएसी छतरसिंह लोधा और बीईओ राजीव यादव द्वारा लगातार अवैध वसूली करने, पैसे न देने पर धमकाने और अल्पवेतन में से पैसा देने में असमर्थ होने से परेशान होकर आत्महत्या के लिए मजबूर किए जाने का स्पष्ट उल्लेख है। इधर पता चला है कि जिन लोगों तक वसूली का पैसा पहुंचता है वह सब अब मामले को हैंडल करने में लगे हैं। संभव है कि सुसाइड नोट के आधार पर जनता को देखने दिखाने एफआईआर दर्ज हो लेकिन अभियोजन की कार्यवाही मजबूत होगी इसकी कोई गारंटी नहीं है।
दरअसल, दिसंबर 2018 से मार्च 2020 के बीच 15 महीने रहे कांग्रेस के शासन काल की व्यवस्था में भ्रष्टाचार की जो नई परिपाटी और दरें लागू हुईं उसने बहुत कुछ बर्बाद कर दिया है। तब मैदानी अफसरों को सुबह खाली झोला लेकर ड्यूटी पर निकलने और शाम को झोला भरकर लाने की आदत डाल दी गई थी। रिश्वत की दरें दस गुना कर दी गई थीं।
15 महीने की सत्ता भ्रष्टाचार का कुंभ बन गई थी। जिसमें हर विभाग डुबकी ले रहा था। इसी का परिणाम था कि सत्ता हथियाने के महज तीन महीने बाद ही लोकसभा चुनाव में एमपी में कांग्रेस का सफाया हो गया और ज्योतिरादित्य सिंधिया जी जैसे कर्मठ, ईमानदार, योग्य और अपराजेय योद्धा भी परास्त हो गए। इस हार की बुनियाद में कांग्रेस के नेताओं का मगरुर और भ्रष्टाचार में आकंठ डूबकर सिस्टम को डुबो देना सबसे बड़ी वजह था। लेकिन जिस पर कभी कोई चर्चा नहीं की गई।
यह प्रदेश का दुर्भाग्य ही है कि मार्च 2020 में कांग्रेस की सरकार के अल्पायु में अवसान होने के बाद उत्पन्न भाजपा की सरकार भी इस व्यवस्था को दुरुस्त नहीं कर पाई है। नतीजा यह है कि हर सरकारी विभाग में भ्रष्टाचार चरम पर है और अब तो ये भ्रष्टाचार हत्यारा हो गया है।
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