'शादी से इनकार करना आत्महत्या के लिए उकसाने के बराबर नहीं', सुप्रीम कोर्ट का अहम आदेश
पीठ ने कहा कि 'अपीलकर्ता के खिलाफ इस तरह का कोई आरोप नहीं है कि मृतक के पास आत्महत्या के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा था।'
नई दिल्ली (आरएनआई) सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक अहम आदेश में कहा है कि शादी को अस्वीकृति करना भारतीय दंड संहिता की धारा 306 के तहत आत्महत्या के लिए उकसाने के बराबर नहीं है। जस्टिस बी वी नागरत्ना और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने एक महिला के खिलाफ आरोपपत्र को खारिज करते हुए यह टिप्पणी की। महिला पर अपने बेटे से कथित तौर पर प्यार करने वाली महिला को आत्महत्या के लिए उकसाने का आरोप था। महिला ने शादी की स्वीकृति देने से इनकार कर दिया था। आरोप है कि इससे दुखी होकर महिला ने आत्महत्या कर ली थी।
अपीलकर्ता महिला पर, अपने बेटे की आत्महत्या करने वाली महिला से शादी का विरोध करने और उसके खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी करने का आरोप था। अदालत ने कहा कि भले ही आरोपपत्र और गवाहों के बयानों सहित रिकॉर्ड पर मौजूद सभी सबूतों को सही माना जाए, लेकिन अपीलकर्ता के खिलाफ एक भी सबूत नहीं है। पीठ ने कहा, 'हमें लगता है कि अपीलकर्ता के कृत्य इतने दूरगामी और अप्रत्यक्ष हैं कि वे धारा 306, आईपीसी के तहत अपराध नहीं माने जा सकते। अपीलकर्ता के खिलाफ इस तरह का कोई आरोप नहीं है कि मृतक के पास आत्महत्या के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा था।'
अदालत ने कहा कि रिकॉर्ड से पता चलता है कि अपीलकर्ता ने अपने परिवार के साथ मिलकर मृतक पर उसके और अपने बेटे के बीच संबंध खत्म करने के लिए कोई दबाव डालने की कोशिश नहीं की। पीठ ने कहा कि 'मृतक का परिवार ही इस रिश्ते से नाखुश था, लेकिन यह आत्महत्या के लिए उकसाने के प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष आरोप के स्तर तक नहीं पहुंचता।' पीठ ने कहा कि 'मृतक से यह कहना कि अगर वह अपने प्रेमी से शादी किए बिना जिंदा नहीं रह सकती तो न रहे, ऐसी टिप्पणी भी आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं माना जाएगा।'
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