वैज्ञानिकों ने खोजा 12 फीसदी तक दूध उत्पादन बढ़ाने वाला मिश्रण
इस शोध परिणाम को पेटेंट कराया जा चुका है। अब भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद यानी आईसीएआर से हरी झंडी मिलने के बाद इसकी टेक्नोलॉजी किसी कंपनी को दी जाएगी। जिसकी मदद से ये मिश्रण आसानी से बाजार में लॉन्च हो पाएगा और किसान इसका लाभ उठा पाएंगे।
नई दिल्ली (आरएनआई) हिसार के केंद्रीय भैंस अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों को बड़ी सफलता मिली है। 10 साल की मेहनत के बाद संस्थान के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. अभिजीत डे ने एक ऐसा खाद्य मिश्रण तैयार किया है, जिसकी मदद से अब जुगाली पशुओं यानी गाय-भैंस, भेड़ और बकरी से निकलने वाली मीथेन गैस को 30 फीसदी कम किया जा सकता है। यही नहीं, इसकी मदद से पशुओं के दूध उत्पादन की क्षमता में भी 10 से 12 प्रतिशत की बढ़ोतरी हो जाएगी।
इस शोध परिणाम को पेटेंट कराया जा चुका है। अब भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद यानी आईसीएआर से हरी झंडी मिलने के बाद इसकी टेक्नोलॉजी किसी कंपनी को दी जाएगी। जिसकी मदद से ये मिश्रण आसानी से बाजार में लॉन्च हो पाएगा और किसान इसका लाभ उठा पाएंगे।
जुगाली करने वाले पशु मीथेन गैस छोड़ते हैं। इनमे गाय और भैंस सबसे आगे हैं। इसके बाद बकरी तीसरे और भेड़ चौथे नंबर पर है। यही वजह है कि इसे कंट्रोल करने के लिए दुनियाभर के वैज्ञानिक जुटे हुए हैं। तमाम शोध रिपोर्ट्स से पता चलता है कि कार्बन डाइऑक्साइड के बाद जलवायु परिवर्तन में मीथेन दूसरा सबसे महत्वपूर्ण ग्रीनहाउस गैस योगदानकर्ता है। मीथेन की वातावरण में गर्मी को रोकने की क्षमता कार्बन डाइऑक्साइड से भी अधिक मजबूत है। डॉ. अभिजीत के अनुसार, मीथेन एक प्रबल ग्रीनहाउस गैस है जो जुगाली करने वाले पशुओं द्वारा आहार के एंटेरिक किण्वन से उत्सर्जित होती है। 90 प्रतिशत मीथेन पशु के डकार से बाहर निकलती है।
पशुओं से मीथेन उत्सर्जन को कम करने के लिए वैज्ञानिकों ने एक खास तरह का खाद्य मिश्रण तैयार किया है। ये आहार के साथ दिन में एक बार पशुओं को देना होगा। डॉ. अभिजीत ने कहा, ‘ 10 साल से इस प्रोजेक्ट पर काम कर रहे थे। अब इसमें सफलता मिली है। इस खाद्य मिश्रण को रेस्मी नाम दिया गया है। इसे कई तरह के स्वास्थ्यवर्धक पदार्थ मिलाकर तैयार किया गया है। इसके रोजाना सेवन से जुगाली पशुओं से निकलने वाले मीथेन में 30 प्रतिशत तक कमी आ जाएगी। पशुओं का ग्रोथ रेट भी 10 प्रतिशत तक बढ़ जाएगा। पशु के खाने की क्षमता में भी 15 प्रतिशत की बढ़ोतरी होगी।
डॉ. अभिजीत बताते हैं कि जिस भी कंपनी से करार होगा, उसे टेक्नोलॉजी ट्रांसफर कर दी जाएगी। इसके बाद उस कंपनी की जिम्मेदारी होगी उसे बाजार में लॉन्च करे। बाजार में प्रोडक्ट की कीमत करीब 15 रुपये होगी। मतलब 15 रुपये प्रतिदिन पशुपालक को खर्च करना होगा। हालांकि, इस प्रोडक्ट की मदद से दूध उत्पादन में बढ़ोतरी होगी। मतलब अगर कोई पशु 10 लीटर प्रतिदिन दूध देती है तो कम से कम एक लीटर उत्पादन बढ़ जाएगा।
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