वृंदावन में हुए वृक्षों के जघन्य हत्याकांड में आखिर मौन व्रत का रहस्य क्या है
(विजय कुमार गुप्ता)
मथुरा (आरएनआई) एक बार राजीव गांधी महान संत देवराहा बाबा के दर्शन करने को आने वाले थे, किंतु मात्र पेड़ की एक शाखा (डाली) न कटे इसी वजह से बाबा ने खुद ही प्रधानमंत्री राजीव गांधी का कार्यक्रम रद्द कर दिया।
घटनाक्रम के अनुसार सुरक्षा की दृष्टि से सुरक्षा अधिकारी बाबा की मचान के निकट किसी पेड़ की एक बड़ी डाली को कटवाना चाहते थे, किंतु बाबा ने साफ मना कर दिया और कहा कि यह पेड़ तो हमारा बहुत पुराना मित्र है इससे तो हम रोजाना बतियाते हैं, इसको हाथ भी न लगाना। चूंकि मामला प्रधानमंत्री की सुरक्षा से जुड़ा हुआ था, इसीलिए वे बार-बार बाबा से पेड़ की शाखा को कटवाने की गुहार लगा रहे थे।
जब वे जिद करने लगे तो बाबा झुंझला उठे और उन्होंने कहा कि चलो अब मैं तुम्हारे प्रधानमंत्री के कार्यक्रम को ही कैंसिल किये देता हूं। जैसे ही बाबा ने यह बात कही उसके कुछ ही समय बाद प्रधानमंत्री कार्यालय से रेडियो ग्राम आ गया कि प्रधानमंत्री राजीव गांधी का देवराहा बाबा आश्रम आने का कार्यक्रम फिलहाल टल गया है।
इसके कुछ दिन बाद राजीव गांधी का कार्यक्रम पुनः बना किंतु अबकी बार सुरक्षा अधिकारियों की हिम्मत उस पेड़ की डाली को कटवाने हेतु कहने तक की नहीं पड़ी। प्रधानमंत्री राजीव गांधी आऐ और देवराहा बाबा से आशीर्वाद लिया किंतु पेड़ की डाली तो दूर एक पत्ती तक को नहीं तोड़ा गया। इससे पता चलता है कि पेड़ों की महिमा क्या होती है। और पूज्य देवराहा बाबा कितनी अजब गजब की अलौकिक शक्ति के स्वामी थे।
अब सोचने की बात है कि वृंदावन जैसी पवित्र भूमि में सैकड़ो पेड़ों की रातों-रात हत्या कर डाली पेड़ ही नहीं हजारों पक्षी, मोर, सांप और न जाने कितने जीव जंतु मार डाले गये। प्रख्यात संत प्रेमानंद जी ने ठीक ही कहा है कि ये पेड़ नहीं ये तो समाधिस्थ ऋषि मुनि हैं, जो वृंदावन की पवित्र धरा पर तपस्या में लीन थे। प्रेमानंद जी का यह कथन कि जो-जो लोग इस हत्याकांड में शामिल हैं उनका वंश ही समाप्त होगा एक दम सही है।
एक और आश्चर्यजनक बात यह है कि "द ब्रज फाउंडेशन" जो कि ब्रजभूमि में हरे भरे वृक्षों व लता पताओं की हिमायत करता था, वह सैकड़ो पेड़ों के इस जघन्यतम हत्याकांड पर चुप्पी क्यों साधे हुए है? इस मौन व्रत का रहस्य क्या है? इस वीभत्स हत्याकांड को मात्र मूक दर्शक बनकर देखने वाले भी कम अपराधी नहीं हैं। चाहे वे राजनीतिक दल हों या सामाजिक संगठन। ईश्वर की अदालत के कठघरे में खड़े होकर इन्हें भी जवाब देना होगा।
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