विस्थापितों ने की वोटिंग सुविधा देने की मांग, सुप्रीम कोर्ट ने ठुकराई याचिका
मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की तीन सदस्यीय पीठ ने मणिपुर निवासी नौलक खामसुअनथांग सहित अन्य लोगों की याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि आपने अंतिम समय में याचिका दायर की है।
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नई दिल्ली (आरएनआई) सुप्रीम कोर्ट ने मणिपुर से जुड़ी एक याचिका को खारिज कर दिया है। याचिका में मांग की गई थी कि सर्वोच्च अदालत चुनाव आयोग को निर्देश दे कि वे जातीय हिंसा के कारण विस्थापित हुए 18,000 लोगों के लिए लोकसभा चुनाव में मतदान की व्यवस्था करे। जिन राज्यों में विस्थापित लोग रह रहे हैं, वहां-वहां चुनाव आयोग विशेष मतदान केंद्र स्थापित करे। बता दें, मणिपुर में दो लोकसभा सीट है, जहां दो चरणों में 19 अप्रैल और 26 अप्रैल को मतदान होना है।
मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की तीन सदस्यीय पीठ ने मणिपुर निवासी नौलक खामसुअनथांग सहित अन्य लोगों की याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि अदालत के हस्तक्षेप के कारण मणिपुर में लोकसभा चुनाव कराने में बाधाएं आ सकती हैं।आपने अंतिम समय में याचिका दायर की है। ऐसे में क्या ही किया जा सकता है। हम इस मामले में हस्तक्षेप नहीं कर सकते।
कुकी और मैतेई समूहों के नेताओं ने चुनाव आयोग के साथ भी यह मुद्दा उठाया था। जिन लोगों ने राज्य के बाहर शरण ली है, उनका कहना है कि अगर मतदान की व्यवस्था नहीं हो सकती है तो उन्हें डाक मतपत्रों के माध्यम से मतदान करने की अनुमति दी जानी चाहिए। मणिपुर के कुकी समुदाय से जुड़े दस विधायकों ने इस महीने की शुरुआत में चुनाव आयोग से कहा था कि राज्य के बाहर रह रहे विस्थापित लोगों को वहां से मतदान करने की अनुमति दी जाए, जहां वो रह रहे हैं। उधर, एक मैतेई समूह ने भी इस बारे में चुनाव आयोग को पत्र लिखकर अनुरोध किया कि राज्य के बाहर रहने वाले मणिपुर के मतदाताओं के लिए डाक मतपत्र की व्यवस्था की जाए। समूह से जुड़े लोगों ने कहा कि राज्य के बाहर रहने वाले मतदाताओं के लिए महंगी उड़ानें लेना असंभव है और सड़क यात्रा पूरी तरह से असुरक्षित है।
चुराचांदपुर जिले में एक राहत शिविर में समन्वयक कुकी लहैनीलम ने कहा कि हमारी मांग स्पष्ट है। हम कुकी समुदाय के लिए एक अलग प्रशासन चाहते हैं। वर्षों से विकास केवल घाटी में हुआ है, लेकिन हमारे क्षेत्रों में ऐसा नहीं हुआ। पिछले साल हुई हिंसा के बाद से हम एक साथ नहीं रह सकते, जिसकी कोई संभावना ही नहीं है। चुनाव को लेकर उन्होंने कहा कि दोनों दोनों पक्षों के बीच कोई आदान-प्रदान नहीं हो रहा है।
राज्य में मैतेई समुदाय के लोगों की संख्या करीब 60 प्रतिशत है। ये समुदाय इंफाल घाटी और उसके आसपास के इलाकों में बसा हुआ है। समुदाय का कहना रहा है कि राज्य में म्यांमार और बांग्लादेश के अवैध घुसपैठियों की वजह से उन्हें परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।
मौजूदा कानून के तहत उन्हें राज्य के पहाड़ी इलाकों में बसने की इजाजत नहीं है। यही वजह है कि मैतेई समुदाय ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर उन्हें जनजातीय वर्ग में शामिल करने की गुहार लगाई थी। अदालत में याचिकाकर्ता ने कहा कि 1949 में मणिपुर की रियासत के भारत संघ में विलय से पहले मैतेई समुदाय को एक जनजाति के रूप में मान्यता थी। इसी याचिका पर बीती 19 अप्रैल को हाईकोर्ट ने अपना फैसले सुनाया। इसमें कहा गया कि सरकार को मैतेई समुदाय को जनजातीय वर्ग में शामिल करने पर विचार करना चाहिए। साथ ही हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को इसके लिए चार हफ्ते का समय दिया। अब इसी फैसले के विरोध में मणिपुर में हिंसा हो रही है।
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