'विश्वास और साथ पर आधारित रिश्ता है विवाह, जब यह...' तलाक मामले में शीर्ष अदालत की अहम टिप्पणी
पीठ ने कहा कि मौजूदा मामले में अलगाव की अवधि और दोनों पक्षों के बीच स्पष्ट दुश्मनी से यह स्पष्ट हो जाता है कि शादी को बचाने की कोई संभावना नहीं है। पीठ ने यह भी कहा कि पति और पत्नी दो दशकों से अलग-अलग रह रहे हैं और यह तथ्य इस निष्कर्ष को और पुष्ट करता है कि अब इस विवाह की प्रासंगिकता नहीं बची है।
नई दिल्ली (आरएनआई) सुप्रीम कोर्ट ने अलग-अलग रह रहे इंजीनियर दंपती को तलाक की अनुमति देने वाले मद्रास हाईकोर्ट के आदेश को बरकरार रखते हुए कहा कि शादी एक ऐसा रिश्ता है जो आपसी विश्वास, साथ और साझा अनुभवों पर बनता है, जब ये तत्व गायब हो जाते हैं तो विवाह बंधन मात्र कानूनी औपचारिकता बन कर रह जाता है।
जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस पीबी वराले की पीठ ने कहा कि अलगाव की अवधि और पति-पत्नी के बीच तल्खी यह स्पष्ट करती है कि विवाह को बचाने की कोई अब कोई संभावना नहीं है।
पीठ ने कहा कि मौजूदा मामले में अलगाव की अवधि और दोनों पक्षों के बीच स्पष्ट दुश्मनी से यह स्पष्ट हो जाता है कि शादी को बचाने की कोई संभावना नहीं है। पीठ ने यह भी कहा कि पति और पत्नी दो दशकों से अलग-अलग रह रहे हैं और यह तथ्य इस निष्कर्ष को और पुष्ट करता है कि अब इस विवाह की प्रासंगिकता नहीं बची है।
शीर्ष अदालत ने उन महिलाओं की अपील खारिज कर दी, जिन्होंने क्रूरता के आधार पर तलाक की अनुमति देने वाले मद्रास हाईकोर्ट की मदुरै पीठ के आठ जून, 2018 के फैसले को चुनौती दी थी। पीठ ने कहा कि पति ने पर्याप्त सबूत उपलब्ध कराए हैं कि अपीलकर्ता (पत्नी) इस तरह के व्यवहार में शामिल थी, जिससे उसे भारी मानसिक और भावनात्मक पीड़ा हुई। बता दें कि दोनों ने 30 जून, 2002 को शादी की थी और दोनों से नौ जुलाई, 2003 को एक बेटी का जन्म हुआ। दोनों पक्षों के बीच कलह बच्ची के जन्म के ठीक बाद शुरू हुई, जब पत्नी प्रसव के लिए माता-पिता के घर गई और फिर लौटने से इनकार कर दिया था।
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