विश्वकर्मा का क्या सम्बन्ध है इंद्र, यम, कुबेर और वरुण से
देवलोक की प्रसिद्ध सभाओ का निर्माण विश्वकर्मा ने किया है -
१। इन्द्र सभा : इन्द्र की सभा का नाम सुधर्मा है इसका निर्माण विश्वकर्मा भगवान द्वारा ही किया गया है और महाभारत के अनुसार इसकी डेढ़ सौ योजन लंम्बाई और सौ योजन चौड़ाई है ।
प्राचीन मानदंडों से एक योजन चार कोस और एक कोस दो मिल का होता था ।
इस सभा में रहने वालो को बुढ़ापा नहीं आता और शोक, थकान भी नहीं होती है और उन्हें लौकिक भय भी नहीं सताते है ।
दैत्य राज पुलोमा की पुत्री शची भी अपने पति इन्द्र के साथ इस सभा में विराजती है ।
विविध देवता , देवर्षि ,गंधर्व ,विधाधर , अपसराए ,सिद्ध , राजर्षि तथा राजा जिन्होंने सभा में बैठने का अधिकार पा लिया है ,इस सभा में अलंकृत होकर विराजते है और इन्द्र की उपासना करते है ।
इस सभा में दिव्य ओषधिया , श्रद्धा, मेघा , सरस्वती ,धर्म , अर्थ , मेघ, वायु , काम , प्राची दिशा , २७ अग्नि , साध्य , ब्रहस्पति , शुक्र , ग्रह , दक्षिणा , विविध यज्ञ , ओर यज्ञ के मंत्र इत्यादि विराजते है ।
यदि यज्ञ भाग में कमी आ जाए या पुण्य कम हो जाए या इन्द्र से पाप कर्म होकर उनका बल कम हो जाए तो सिहांसन से पदव्युति हो सकती है और कई असुरो ने ऐसा किया है और इन्द्र के सिंहासन पर अधिकार कर लिया ।
२। यम सभा : यम की सभा का निर्माण स्वयं विश्वकर्मा ने ही किया है और इससे ना तो शीतल माना गया है और ना ही गर्म माना गया है ।
यहां शोक , भूख , प्यास , बुढ़ापा , दीनता थकावट इत्यादि कुछ भी नहीं है।
ययाति ,नहुष , पुरु ,मांधाता ,नृग , कृति ,निमि , शिवि आदि राजा मरणोपरांत यहां उपस्थित होकर धर्मराज की कठोर उपासना करते है ।
इस सभा में अत्यंत श्रेष्ठ सत्यवादी , सन्यासी या कर्मयोगी ही प्रवेश पा सकते है ।
३। कुबेर की सभा : इस सभा का वैभव बहुत अधिक है जिसमें रत्नजड़ित सिंहासन है व अनेक स्वर्ण सिंहासन का कक्ष है ।
यक्षराज कुबेर की सभा श्वेत बादलों के शिखर जैसी आकाश में तैरती प्रतीत होती है । इस सभा के समीप चित्र रथ और अलकापुरी है । इनमें उर्वशी , रंभा , मेनका जैसी अपसराए व यक्ष , किन्नर और गंधर्व भी उपस्थिति होते है । कभी कभी भगवान शंकर भी इस सभा में आते है ।
शंख और निधिया मूर्तिमान होकर अन्य निधियों के साथ यह उपासना करती है ।
४। वरुण की सभा : यमराज की सभा और वरुण की सभा का मान एक ही जैसा है और इसे भी फल - फूल देने वाले दिव्य रत्नमय वृक्षों से युक्त माना गया है । इस सभा का निर्माण विश्वकर्मा ने समुद्र की अनंत जलराशि के अंतगर्त किया है । इस सभा में अलंकृत देवगण गंधर्व और आदित्यगण आदि वरुण देव की उपासना करते है । इसके साथ समस्त समुद्र , गंगा , नर्मदा , यमुना , सरस्वती , आदि नदियां व जलाशय , दिशाएं , पृथ्वी , पर्वत तथा समस्त जल में रहने वाले प्राणी अपना स्वरूप धारण करके वरुण की उपासना करते है ।
विश्वकर्मा ने जो अन्य निर्माण किए है उनमें यमपुरी ,वरुण पूरी , पांडव पूरी और सुदामा पूरी भी शामिल है ।
कर्ण का कुंडल , विष्णु भगवान का सुदर्शन चक्र , शंकर भगवान का कमण्डलु और यमराज का कालदंड भी विश्वकर्मा के द्वारा निर्माण किया गया है ।
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