विश्व पर्यावरण दिवस पर अदबी बज़्म की काव्य गोष्ठी
अब नज़र आता नहीं कुछ भी दुकानों के सिवा, अब न चिड़िया हैं न बादल हैं न फुलवारी है....
गुना। प्रसिद्ध काव्य संस्था अदबी बज़्म ने पर्यावरण दिवस पर गुना के प्रसिद्ध शायर, गीतकार और साहित्यकारों की मौजूदगी में एक कार्यक्रम आयोजित किया। कार्यक्रम में काव्यपाठ किया गया और प्रकृति को बचाने के लिये हर एक शख्स के अलग अलग प्रयास को सामूहिक प्रयास में बदलने की अपील की गई। कवियों और शायरों ने इस अवसर पर पर्यावरण विषय पर अपनी शानदार प्रस्तुतियां पेश कीं।
अदबी बज्म के संयोजन हरकांत अर्पित ने बताया कि विगत कार्यक्रम मे तय की गई रूपरेखा अनुसार अंतरराष्ट्रीय पर्यावरण दिवस के मौके पर गुना मॉडर्न चिल्ड्रन स्कूल में कार्यक्रम रखा गया। कार्यक्रम में वरिष्ठ साहित्यकार नूरूलहसन नूर मुख्य अतिथि के रूप में मौजूद रहे तथा अध्यक्षता बज्म के अध्यक्ष संजय खरे ने की। काव्य गोष्ठी में आरोन से मनीष श्रीवास्तव, गुना से खलील रजा, मुबारक अली मुबारक, प्रेमसिंह प्रेम, हरकांत अर्पित, शरद सक्सेना, आशीष सक्सेना और आरती ओाा लोकेश शर्मा ने अपनी रचनाएं प्रस्तुत कीं। इस अवसर पर मुख्य अतिथि नूरूल हसन नूर ने स्वयं को राजनीति से जोडते हुए कहा कि सर से चादर बदन से कबा ले गई जिंदगी हम फकीरों से क्या ले गई, मेरी शोहरत सियासत से महफूज है के इस तवायफ भी इज्जत बचा ले गई। अध्यक्ष संजय खरे ने आ सको तो आ भी जाओ कुछ मश्वरा हो जाएगा जिंदगी की मुश्किलों पर तबसिरा हो जाएगा। दोस्तों से जब मिलो खोल कर दिल को मिलो वरना एक दिन दोस्ती में दायरा हो जाएगा संयोजक हरकांत अर्पित ने मुहब्बत का संदेश देते हुए कहा कि लरजते टूटते ढहते मकां है, जमीं पे आसमां के इम्तेहां हैं आने वाली नस्लें पूछेंगी हमसे, प्यार मोहब्बत के वो मंजर कहां हैं। शरद सक्सेना ने अपनी जादुई आवाज से महफिल में समां बांधते हुए गजल गाई, अब नजर आता नहीं कुछ भी दुकानों के सिवा, अब न बादल हैं न चिडिया हैं न फुलवारी है कार्यक्रम में मॉर्डन स्कूल के डायरेक्टर्स राजेंद्र अरोरा श्वेता अरोरा का विशेष योगदान रहा। इस अवसर पर अशोक सोनी, बृजेश दुबे, पुरूषोत्तम सोनी, सुरेंद्र, लोकेश शर्मा सहित अन्य गणमान्य लोग मौजूद रहे।
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