वित्त आयोग के सामने खुलकर आया बिहार का संकट- केंद्र ने अपनी जेब भरी, राज्य को नहीं दिया हक
डबल इंजन सरकार दौड़ तो रही है साथ, लेकिन ईंधन का उचित हिस्सा दूसरे इंजन को नहीं मिल रहा है। सोलहवें वित्त आयोग के सामने बिहार का यह संकट खुलकर सामने आया। क्या अपील की आखिर बिहार की नीतीश कुमार सरकार ने?

पटना (आरएनआई) सोलहवें वित्त आयोग के साथ बिहार सरकार की बैठक ने भी राज्य के विपक्षी दलों को बड़ा मुद्दा दे दिया था। यह मुद्दा पुराना है, लेकिन विपक्ष भी भूले बैठा था। राज्य की नीतीश कुमार सरकार ने वित्त आयोग से जो अपील की है, वह साफ-साफ बता रही है कि डबल इंजन सरकार के दोनों इंजन के बीच ईंधन (धन) का बंटवार सही तरीके से नहीं हो रहा है। राज्य सरकार ने साफ-साफ अपील की है कि केंद्र सरकार सेस और सरचार्ज के जरिए अपनी कमाई बढ़ा रही है, लेकिन उस राजस्व का हिस्सा राज्य को नहीं मिल रहा है। इन दोनों को विभाज्य पूल में शामिल करने की मांग के साथ सरकार ने केंद्रीय करों की शुद्ध आया के न्यूनतम 50 फीसदी को अपना हक बताया है।
सोलहवें वित्त आयोग के अध्यक्ष अरविंद पनगढ़िया के सामे राज्य सरकार ने लिखित तौर पर प्रस्ताव के साथ अपनी मांग बताई है। सरकार ने मांगों की जानकारी से पहले दावा किया है कि बिहार ने पिछले लगभग दो दशकों में उच्च आर्थिक विकास दर को बनाए रखा है तथा विभिन्न सामाजिक-आर्थिक विकास संकेतकों में उल्लेखनीय प्रगति दर्ज की है। इसके साथ ही यह भी स्वीकार किया है कि विभिन्न संकेतकों में राष्ट्रीय औसत को प्राप्त करने के लिए और प्रयास किए जाने की आवश्यकता है। इसके बाद राज्य सरकार ने इन जरूरतों के मद्देनजर अपनी मांगों की फेहरिस्त भी दी है।
राज्य सरकार ने लिखा कि बिहार के विकास को बढ़ावा देने के लिए राज्य की राजकोषीय क्षमता को बढ़ाने के लिए सोलहवें वित्त आयोग से अपेक्षा है कि वह विशेष वित्तीय प्रावधान करे। केंद्र सरकार से वित्तीय संसाधन के हस्तांतरण के लिए अधिक से अधिक फार्मूला-आधारित दृष्टिकोण अपनाए जाने की जरूरत बताते हुए लिखा गया है कि इसके अतिरिक्त सीमित राजकोषीय संसाधनों वाले राज्यों पर वित्तीय बोझ को कम करने के लिए राज्यों को अनुदान संबंधी व्यय के लिए अपने हिस्से से वित्तीय योगदान करने की आवश्यकता को नहीं रखा जाए। मतलब, केंद्र प्रायोजित योजनाओं में कमजोर राज्यों को धन लगाने के लिए न कहा जाए।
राज्य सरकार ने वित्त आयोग का ध्यान आकृष्ट कराया है कि केंद्र सरकार द्वारा 'सेस' और 'सरचार्ज के माध्यम से राजस्व संग्रह में पिछले कुछ वर्षों में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। चूंकि, यह राजस्व राज्यों के साथ साझा नहीं किया जाता है, इसलिए 'सेस' और 'सरचार्ज' से बढ़ते राजस्व संग्रह राज्य सरकारों के लिए राजस्व की हानि की तरह हैं। ऐसे में वर्तमान वित्त आयोग से अपेक्षा है कि 'सेस' और 'सरचार्ज को विभाज्य पूल में शामिल करने की अनुशंसा करे। इसके साथ यह भी मांग की गई है कि राज्यों की वित्तीय आवश्यकताओं को देखते हुए केंद्रीय करों की शुद्ध आय का कम से कम 50 प्रतिशत राज्य सरकारों के साथ साझा किया जाना चाहिए।
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