विजयादशमी पर मोहन भागवत के बयान को लेकर सियायत तेज, खरगे के बाद अब कपिल सिब्बल ने की आलोचना
विजयादशमी पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ(आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत के बयान पर सियायत तेज हो गई है। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे के बाद अब पूर्व केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल ने संघ प्रमुख के बयान की आलोचना की है।
नई दिल्ली (आरएनआई) राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत के विजयादशमी भाषण को लेकर देश में सियासत तेज हो गई है। उनके बयान पर कंग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे के बाद अब राज्यसभा सांसद कपिल सिब्बल ने भी आलोचना की है। उन्होंने आरएसएस प्रमुख के बयान पर कटाक्ष करते हुए कहा कि, विजयादशमी पर मोहन भागवत का संदेश। सभी त्योहार एक साथ मनाए जाने चाहिए। सभी तरह के लोगों के बीच दोस्त होने चाहिए। भाषाएं विविध हो सकती हैं, संस्कृतियां विविध हो सकती हैं, भोजन विविध हो सकता है लेकिन दोस्ती, उन्हें एक साथ लाएगी। पूर्व केंद्रीय मंत्री ने भागवत के बयान पर सवाल पूछा कि कौन सुन रहा है? मोदी? अन्य?
संघ प्रमुख मोहन भागवत ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के स्थापना दिवस पर कहा कि स्वस्थ और सक्षम समाज के लिए पहली शर्त समाज के विभिन्न वर्गों के बीच सामाजिक सद्भाव और आपसी सद्भावना है। उन्होंने आगे कहा कि यह कार्य केवल कुछ प्रतीकात्मक कार्यक्रम आयोजित करने से नहीं बल्कि व्यक्तिगत और पारिवारिक स्तर पर सौहार्द विकसित करने की पहल करके पूरा किया जा सकता है।
राज्यसभा सांसद कपिल सिब्बल से पहले कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने मोहन भागवत के बयान की आलोचना की थी। खरगे ने कहा था कि आरएसएस "उस पार्टी का समर्थन करता है जो देश में फूट डालना चाहती है"।
संघ प्रमुख मोहन भागवत ने विजयादशमी के अवसर पर सदस्यों को संबोधित करते हुए कहा था कि भारत का राष्ट्रीय जीवन सांस्कृतिक एकता की मजबूत नींव पर टिका है और देश का सामाजिक जीवन महान मूल्यों से प्रेरित और पोषित है। इसके साथ ही उन्होंने सांस्कृतिक परंपराओं के लिए डीप स्टेट, वोकिज्म और सांस्कृतिक मार्क्सवादियों द्वारा उत्पन्न खतरों का उल्लेख करते हुए कहा कि मूल्यों और परंपराओं का विनाश इस समूह की कार्यप्रणाली का एक हिस्सा है।
इसके साथ ही उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि ऐसे समूहों का पहला कदम समाज की संस्थाओं पर कब्जा करना है। इन दिनों डीप स्टेट, वोकिज्म, कल्चरल मार्क्सिस्ट, जैसे शब्द चर्चा में हैं। वास्तव में, वे सभी सांस्कृतिक परंपराओं के घोषित दुश्मन हैं। मूल्यों, परंपराओं और जो कुछ भी पुण्य और शुभ माना जाता है, उसका पूर्ण विनाश इस समूह की कार्यप्रणाली का हिस्सा है। इस कार्यप्रणाली का पहला कदम समाज की मानसिकता को आकार देने वाली प्रणालियों और संस्थानों को अपने प्रभाव में लाना है। इसके साथ ही मोहन भागवत ने उदाहारण देते हुए कहा कि, शिक्षा प्रणाली और शैक्षणिक संस्थान, मीडिया, बौद्धिक प्रवचन आदि, और उनके माध्यम से समाज के विचारों, मूल्यों और विश्वासों को नष्ट करना है।
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