वाह रे उत्तर प्रदेश पावर कॉरपोरेशन! फूट डालो और निजीकरण करो की नीति पर काम कर रहे भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी
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लखनऊ (आरएनआई) उत्तर प्रदेश पावर कॉरपोरेशन में अवैध रूप से विराजमान भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों द्वारा निजीकरण करने के लिए फूट डालो और निजीकरण करो की नीति पर काम किया जा रहा है .....
इस साजिश के अन्तर्गत वितरण निगमो में अवैध रूप से तैनात बड़का बाबुओं ने अभियंताओ और संविदा कर्मियों की एकता को तोड़ने के लिए श्रमशक्ति यानि कि मैनपावर उपलब्ध कराने वाली संस्थानों से वर्तमान में जो अनुबंध किया है उसमें श्रमिकों की संख्या घटकर आधी करने की शर्त है जैसे किसी जगह किसी बिजली घर पर 36 श्रमिक है तो नयी व्यवस्था के अन्तर्गत उनकी संख्या घटकर 18.5 कर दी गई है अब कोई बड़का बाबुओं से पूछे कि .5 आदमी कहां से आएगा और उसको वेतन छुट्टी बीमा व उसकी कार्याविधि कितनी होती यह कैसे स्पष्ट होगा क्या डा० आशीष गोयल साहब यह स्पष्ट करेंगे की किस आधार पर और किन शक्तियों के आधार पर वह उत्तर प्रदेश पावर कारपोरेशन में हुकूमत कर रहे हैं जबकि इनकी समस्त शक्तियों को यानी उत्तर प्रदेश पावर कॉरपोरेशन की समस्त शक्तियों को 21/01/2010 उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत नियामक आयोग ने ख़त्म कर दिया था, जिसका पूर्ण विवरण अप्रूवल का एग्रीगेट रेवेन्यू रिक्वायरमेंट्स एंड टैरिफ फाइनेंशियल ईयर 24 25 के ( ऐ आर आर ) पेज नंबर 34, 35 व 36 पर लिखा हुआ है, तो फिर वह कौन से अधिकार से उत्तर प्रदेश पावर कॉरपोरेशन के अध्यक्ष बन कर निजीकरण से ले कर पूरे प्रदेश के अभियंताओं को बुलाते हैं बेइज्जती करते हैं, निलंबित करते हैं, नीतियां बनाते हैं, निविदाओं का निस्तारण करते हैं, कैसे ऊर्जा की खरीद करते है ?
विभागीय चर्चा के अनुसार 8 जनवरी को शक्ति भवन में हुई बैठक में व इससे पूर्व हुई वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग में प्रबंध निर्देश दक्षिणांचल ने भी अभियंताओं के निलंबन/ स्थानांतरण के निर्देशों का विरोध किया था, शक्ति भवन की बैठक में भवानी सिंह खंगारौत जो की प्रबंध निदेशक मध्यांचल विद्युत वितरण निगम है ने प्रबंध निदेशक, उत्तर प्रदेश पावर कारपोरेशन को कहा कि 4 साल से आप भी तो यही कुर्सी पर बैठे हुए हैं आपने कौन सी नीतियां बनाई । चर्चा तो यहां तक है कि दोनों बड़का बाबू में गर्मा गरम बहस हो गई थी। क्या अपने अधिकारों के बारे में वितरण निगम के प्रबंध निदेशकों को मालूम होने लगा है कि उत्तर प्रदेश पावर कॉरपोरेशन नाम की जो संस्था में बैठे ये अवैध रूप से नियुक्त बड़का बाबू है इनके पास कोई भी संवैधानिक अधिकार नहीं है कि यह किसी भी प्रबंध निदेशक को कोई भी आदेश दे सके या उसको मानने के लिए बाध्य कर सके क्योंकि डिस्काम एक स्वतंत्र संस्था है । जबकि यक्ष प्रश्न यह है कि इनको यानि भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों को व इनके अधीनस्थ कार्य कर रहे कर्मचारियों को वेतन व अन्य सुविधाएं किस मद से प्रदान की जाती है ? या सरकार/मुख्य सचिव को ऐसे ही गुमराह कर के भ्रष्टाचार के लिए नियुक्ति करा ली जाती है और यहां पर तैनाती के दौरान अपनी जेब भरने के लिए वितरण निगमों को बेचने के कार्य में लग जाते हैं। वैसे पूरे ऊर्जा विभाग में चर्चा है कि इस बार उनके साथ में एक कैबिनेट मंत्री भी इस षड्यंत्र में शामिल है। उनके इस षड्यंत्र से उत्तर प्रदेश मे लाखों की संख्या में कार्य कर रहे संविदा कर्मियों के अस्तित्व पर खतरा उत्पन्न हो गया है। जबकि पूरे प्रदेश मे निर्बाध विद्युत निविदाकर्मी प्रयागराज कुंभ में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे रहे है। अब बड़का बाबू द्वारा इन्ही संविदा कर्मियों को छटनी कर हड़ताल की स्थिति पैदा कर रहे हैं तथा माननीय मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की छवि को बिगाड़ना चाहते हैं। अगर यह इस कार्य में सफल हो गए तो आने वाले समय में चुनाव के समय सरकार का सूपड़ा साफ हो जाएगा, जिसका सारा श्रेय इन अनुभवहीन भारतीय प्रशस्तिक सेवा के अधिकारियों के कंधों पर होगा क्योंकि जिस पूर्वांचल और दक्षिणांचल को यह निजी हाथों में सौपना चाहते हैं, वहां प्रदेश के बहुत ही गरीब वर्ग रहता है। इस निजीकरण से सरकार की छवि पूर्णतः धूमिल हो जाएगी और यह अपने मकसद में कामयाब हो जाएंगे । खैर युद्ध अभी शेष है ।
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