वाग्धारा साहित्य संस्था की द्वितीय काव्य गोष्ठी सम्पन्न
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गोष्ठी का शुभारम्भ कवि अवनीश यादव की सरस्वती वंदना से हुआ । इसके बाद। कार्यक्रम में उपस्थित सभी कवियों ने अपने अपने क्रम में कवितायें सुनाई।
कवि धीरू वर्मा ने पढ़ा-
संग चलते रहे हैं तुम्हारे नयन।
आसुओं से भरे हैं तुम्हारे नयन।।
कवि सतेंद्र भारद्वाज ने पढ़ा-
तेरे करम पै एतवार है मुझको।
इसलिए श्याम तेरा इंतजार है मुझको।।
कवि अवनीश यादव ने पढ़ा-
मां झांसी की रानी ने गोरों के छक्के छुड़ा दिए।
शीश काटकर शव उनके उनके ही खून में बहा दिए।।
कवि शिवम कुमार आजाद ने पढ़ा-
हम तेरे अधीन हो गए कल्पना में लीन हो गए।
जबसे तुमको देख लिया है शब्द से विहीन हो गए।।
कवि कवि ओमप्रकाश सिंह ने पढ़ा-
जब कविता हुलसी बन जाती है।
कविता तुलसी बन जाती है।।
गीतकार डॉक्टर विष्णु सक्सेना ने पढ़ा-
जाने कितने ही पनघट गया।
प्यास मेरी रही जस की तस।
न तो सरिता से शिकवा कोई,
ना ही सागर से कोई बहस।।
इसके अलावा हास्य कवि देवेंद्र दीक्षित शूल की व्यंग कविता भी खूब सराही गयी ।
चंदौसी से पधारे युवा कवि मधुकर शंखधार ने पढ़ा '-अगर भ्रम है भ्रमर तो रहने दो, कुछ देर और उसे करीब रहने दो ।हकीकत न सही फसाना ही सही, तसबीर में तो उसे अपना रहने दो।
अंत में गोष्ठी के अध्यक्ष श्री भद्पाल सिंह चौहान ने सरिता और किनारे नाम की कविता पढ़ी और गोष्ठी को अगली गोष्ठी तक के लिए स्थगित करने की घोषणा की।
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