वक्फ संशोधन कानून: क्या केंद्र मंदिरों के संचालन में गैर हिंदुओं को जगह देगा? सुनवाई के दौरान कोर्ट का सवाल
सुनवाई के आरंभ में चीफ जस्टिस खन्ना ने दो प्रश्न उठाए। उन्होंने कहा, हम दोनों पक्षों से दो पहलुओं पर बात करना चाहते हैं। पहला, क्या हमें इस कानून पर विचार करना चाहिए या इसे उच्च न्यायालय को सौंप देना चाहिए? दूसरा, संक्षेप में बताएं कि आप वास्तव में क्या आग्रह कर रहे हैं और क्या तर्क देना चाहते हैं?

नई दिल्ली (आरएनआई) वक्फ संशोधन कानून पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा कि क्या वह मंदिरों को संचालित करने वाले निकायों में गैर-हिंदुओं को शामिल करने की अनुमति देगी जैसा कि वक्फ के संबंध में वर्तमान कानून में किया गया है। चीफ जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस केवी विश्वनाथन की पीठ ने केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा, क्या आप कह रहे हैं कि अब से आप मुसलमानों को हिंदू बंदोबस्ती बोर्डों का हिस्सा बनने की अनुमति देंगे। इसे खुलकर कहें। इसपर मेहता ने कहा, मैं हलफनामा दायर कर यह बता सकता हूं कि वक्फ बोर्डों में 2 से अधिक सदस्य गैर-मुस्लिम नहीं होंगे। पीठ ने मेहता से कहा, वक्फ परिषद के 22 सदस्यों में से केवल 8 ही मुस्लिम होंगे। अधिनियम के अनुसार, 8 सदस्य मुस्लिम हैं। इस पर एसजी मेहता ने जोर देकर कहा कि बोर्ड में अधिकांश सदस्य मुस्लिम होंगे और गैर-मुस्लिमों की संख्या 2 से अधिक नहीं होगी। हालांकि, न्यायमूर्ति कुमार ने कहा, प्रावधानों में यह नहीं कहा गया है कि केवल दो सदस्य गैर-मुस्लिम होंगे। इस लिहाज से एसजी मेहता का तर्क कानून के विरुद्ध है। एसजी ने कहा कि वह एक हलफनामा दायर करेंगे कि बोर्ड की वर्तमान संरचना उनके कार्यकाल के अंत तक जारी रहेगी।
मेहता ने कानून के प्रावधानों को सामने रखते हुए कहा, यदि याचिकाकर्ताओं के तर्क पर चलें तब तो इस पीठ को भी इस मामले की सुनवाई नहीं करनी चाहिए। इस तर्क पर सीजेआई खन्ना ने तीखी प्रतिक्रिया दी और कहा, नहीं, माफ करें मिस्टर मेहता लेकिन जब हम यहां बैठते हैं तो अपना धर्म खो देते हैं। हम पूरी तरह धर्मनिरपेक्ष होते हैं। हमारे लिए दोनों पक्ष एक जैसे होते हैं। लेकिन फिर, जब हम धार्मिक मामलों की देखरेख करने वाली परिषद से निपट रहे होते हैं, तो समस्याएं पैदा हो सकती हैं। मान लीजिए, कल किसी हिंदू मंदिर में रिसीवर नियुक्त किया जाना है या कोई बंदोबस्ती ट्रस्ट है...उन सभी में हिंदू उस बोर्ड के सदस्य हैं...आप इसकी तुलना न्यायाधीशों से कैसे कर सकते हैं।
सुनवाई के आरंभ में चीफ जस्टिस खन्ना ने दो प्रश्न उठाए। उन्होंने कहा, हम दोनों पक्षों से दो पहलुओं पर बात करना चाहते हैं। पहला, क्या हमें इस कानून पर विचार करना चाहिए या इसे उच्च न्यायालय को सौंप देना चाहिए? दूसरा, संक्षेप में बताएं कि आप वास्तव में क्या आग्रह कर रहे हैं और क्या तर्क देना चाहते हैं? हम यह नहीं कह रहे हैं कि कानून के खिलाफ याचिकाओं पर सुनवाई करने या निर्णय लेने में सुप्रीम कोर्ट पर कोई रोक है।
सीजेआई खन्ना ने कहा, मैंने प्रिवी काउंसिल के फैसलों को पढ़ा है। उनमें उपयोगकर्ता की ओर से वक्फ को मान्यता दी गई है। अगर आप इसे रद्द करते हैं तो बड़ी समस्या होगी। विधायिका किसी फैसले, आदेश या डिक्री को अमान्य घोषित नहीं कर सकता। आप केवल फैसले के आधार पर काम कर सकते हैं।
याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश कपिल सिब्बल ने कहा, हम उन प्रावधानों को चुनौती दे रहे हैं जिनमें कहा गया है कि सिर्फ पांच साल का आस्थावान मुस्लिम ही वक्फ कर सकता है। सरकार यह कैसे तय कर सकती है कि मैं मुस्लिम हूं या नहीं और वक्फ कर सकता हूं या नहीं? राज्य कौन होता है जो हमें बताए कि मेरे धर्म में विरासत किस तरह होगी। एक अन्य वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा वक्फ कानून का पूरे देश पर असर होना है इसलिए हम इसे हाईकोर्ट को भेजे जाने के पक्ष में नहीं हैं। मुस्लिम पक्ष के एक वकील हुफेजा अहमदी ने कहा, उपयोगकर्ता द्वारा वक्फ, इस्लाम की स्थापित परंपरा है, जिसे छीना नहीं जा सकता।
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