लोकसभा चुनाव से पहले BJP-TMC में अंदरूनी कलह
चुनाव लड़ने के इच्छुक टीएमसी के कई नेताओं ने उनकी पसंदीदा सीट से टिकट नहीं दिए जाने पर खुलकर नाराजगी जाहिर की है। भाजपा में भी कुछ प्रभावशाली नेताओं में इसी तरह का असंतोष देखा गया है।
कोलकाता (आरएनआई) लोकसभा चुनाव होने में अब एक महीना का समय भी नहीं रहा है। ऐसे में सीटों के बंटवारे पर राजनीति तेजी से शुरू हो गई है।टिकट बंटवारे को लेकर पश्चिम बंगाल में सत्तारूढ़ टीएमसी और विपक्षी भाजपा दोनों में ही असंतोष है। दोनों खेमों के कई नेता चुनाव के लिए प्रत्याशियों के चयन को लेकर नाखुशी जता चुके हैं।
चुनाव लड़ने के इच्छुक टीएमसी के कई नेताओं ने उनकी पसंदीदा सीट से टिकट नहीं दिए जाने पर खुलकर नाराजगी जाहिर की है। भाजपा में भी कुछ प्रभावशाली नेताओं में इसी तरह का असंतोष देखा गया है।
राज्यसभा सदस्य मौसम बेनजीर नूर और टीएमसी प्रवक्ता शांतनु सेन सहित पार्टी के कम से कम पांच वरिष्ठ नेताओं ने टिकट नहीं देने पर नाराजगी जताई। दरअसल, नूर और सेन क्रमशः मालदा उत्तर और दमदम सीट से टिकट मांग रहे थे। यहां तक कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के छोटे भाई बाबुन बनर्जी ने भी हावड़ा सीट से टिकट नहीं देने पर नाराजगी जताई थी, जहां टीएमसी ने मौजूदा सांसद प्रसून बनर्जी को फिर से अपना उम्मीदवार बनाया है। इसके बाद मुख्यमंत्री ने अपने भाई के साथ रिश्ते तोड़ लिए हैं।
बैरकपुर से भाजपा के मौजूदा सांसद अर्जुन सिंह दो साल पहले टीएमसी में चले गए थे और टिकट नहीं मिलने के बाद भाजपा में लौट आए। इसी तरह, टीएमसी के चार बार के विधायक और कोलकाता उत्तर से टिकट के दावेदार तापस रॉय इसी सीट से पांच बार के पार्टी सांसद सुदीप बंदोपाध्याय को दोबारा मैदान में उतारने पर नाराजगी के कारण भाजपा में शामिल हो गए।
भाजपा ने राज्य की 42 सीट में से अब तक 19 सीट के लिए उम्मीदवारों की घोषणा की है। उसे तब असहज स्थिति का सामना करना पड़ा जब केंद्रीय मंत्री और अलीपुरद्वार के सांसद जॉन बारला और राज्यसभा सदस्य अनंत महाराज ने उत्तर बंगाल की कुछ सीट पर उम्मीदवारों के चयन पर असंतोष जताया। बारला का अनुसूचित जनजाति और महाराज का राजबंशी समुदाय पर खासा प्रभाव माना जाता है।
अलीपुरद्वार से भाजपा ने बारला की जगह विधानसभा में पार्टी के मुख्य सचेतक मनोज तिग्गा को टिकट दिया है जबकि भाजपा ने कूच बिहार में केंद्रीय मंत्री निसिथ प्रमाणिक को फिर से उतारा। ग्रेटर कूच बिहार राज्य आंदोलन में प्रमुख भूमिका निभाने वाले महाराज ने उनकी उम्मीदवारी का विरोध किया था।
टीएमसी और भाजपा चुनाव प्रचार के बीच नाराजगी पर ज्यादा ध्यान नहीं दे रही हैं। टीएमसी के प्रवक्ता शुखेंद्रु शेखर रे ने कहना है कि आप जिसे नाराजगी कह रहे हैं वह वास्तव में निराशा है, जो स्वाभाविक है। यह तब होती है कि जब आप किसी चीज की अपेक्षा कर रहे हैं और वह नहीं मिलती है। लेकिन अर्जुन सिंह को छोड़कर बाकी सभी लोग अब भी टीएमसी में हैं और पार्टी के लिए काम कर रहे हैं।
साल 2021 के विधानसभा चुनाव से पहले बर्धमान पूर्व से दो बार के सांसद सुनील मंडल भाजपा में चले गए थे लेकिन पार्टी की हार के बाद टीएमसी में लौट आए थे। उन्हें भी टिकट नहीं दिया गया है और सीट से राजनीति में नए चेहरे को टिकट दिया गया है। टीएमसी ने अपने मौजूदा 23 सांसदों में से 16 को फिर से मैदान में उतारा है जबकि सात मौजूदा सांसदों का टिकट काटा है। टीएमसी उम्मीदवारों की सूची में 26 नए चेहरे शामिल हैं और 11 उम्मीदवार अनुभवी हैं। 2019 के चुनावों में 18 सीटों पर हारने वाले एक भी उम्मीदवार को इस बार टिकट नहीं दिया गया है।
रे ने कहा, 'हम अर्जुन सिंह और सुनील मंडल को दोबारा उम्मीदवार बनाते ताकि वे हमारे टिकट पर जीतने के बाद फिर से हमें धोखा दें? उन्हें उम्मीदवार न बनाना पार्टी का एक सचेत निर्णय था।
कांग्रेस के गढ़ बहरामपुर सीट से पूर्व क्रिकेटर यूसुफ पठान को उतारने के बाद टीएमसी के अंदर बहस छिड़ गई और पार्टी के भरतपुर विधायक हुमायूं कबीर ने एक बाहरी व्यक्ति को टिकट देने की आलोचना की और निर्दलीय के तौर पर चुनाव लड़ने का संकेत दिया। हालांकि, टीएमसी के शीर्ष नेतृत्व के हस्तक्षेप के बाद कबीर ने अपना रुख बदल दिया और पार्टी उम्मीदवार की जीत के लिए काम करने का फैसला किया।
दूसरी ओर, राज्य में 35 से अधिक सीट जीतने का लक्ष्य तय करने वाली भाजपा भी महाराज और बारला को मनाने की कोशिश कर रही है। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सुकांत मजूमदार का कहना है कि पार्टी उनसे बात कर चुकी है और मुद्दों को सुलझा लिया जाएगा। अगर आपकी उम्मीदें पूरी नहीं हुईं तो नाराजगी व्यक्त करना काफी स्वाभाविक है। पार्टी एकजुट है।
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