लालची दूल्हे ने मांगी महंगी कार, लड़की ने किया शादी से मना, पंचायत ने शादी खर्च दिलाया वापिस
गुरुग्राम (आरएनआई) ये वीडियो गुरुग्राम का है। दहेज मांगने पर यादव समाज की पंचायत का बहुत ही अच्छा निर्णय..... 25 फरवरी को गावं भंगरोला जिला गुडगांव (गुरुग्राम) हरियाणा की डाक्टर बिटिया का विवाह गाव जुनेला के डाक्टर MBBS के साथ होना था, विवाह मे लडकी के पिता ने एक क्रेटा कार, 21 लाख रूपये नकद 14 सोने की अंगूठी, 14 सोने की चेन, ओर अन्य सभी सामान दिया।
लेकिन लडके पक्ष ने बोला 51 लाख नकद एवं फोर्च्यूनर गाडी दे, तभी विवाह होगा, लडकी पक्ष ने मना कर दिया देने पर, विवाह नियत तिथि को नही हो पाया!
इस पर अहीर समाज के लगभग 50 गावं की सरदारी ने मिलकर निर्णय लिया की, लडके पक्ष को माफी मांगनी पडेगी, 5 लाख गौशाला मे, 73 लाख लडकी पक्ष के शादी व्यवस्था खर्च पर देना होगा, अन्यथा लड़के पक्ष को सामाजिक बहिष्कार झेलना पड़ेगा। लडके पक्ष ने समाज के दबाव मे निर्णय को स्वीकार कर माफी मांगी, बिना शादी के वापस लोटा।
दूल्हा MBBS बताया जा रहा है। दूल्हे ने ब्रेजा के बजाय देहज में फॉर्च्यूनर गाड़ी माँगी। 2 बजे का मुहूर्त था समय निकाल दिया। गाँव वालों को पता चला तो वो वधुपक्ष के साथ खड़े हो गए। उन्होंने लालची दूल्हे को दहेज और दुल्हन दोनों देने से मना कर दिया। कार्यवाही के लिए पुलिस बुलाई गई। लेकिन समाज ने इस मामले में खुद न्याय करने का फैसला लिया।
समाज की मौजूदगी में पंचायत बैठी। पूरा समाज बेटी के समर्थन में उसका पिता बनकर खड़ा हो गया। पंचायत के निर्णय पर दूल्हा और उसके बाप ने सार्वजनिक माफी मांगी। बात इतने पर ही खत्म नहीं हुई, 5 लाख रुपए गायों के लिए और 73 लाख रुपए लड़की पक्ष द्वारा शादी की तैयारियों पर खर्च और क्षतिपूर्ति के रूप में दिलाने का निर्णय हुआ। पैसे की गारंटी बतौर दूल्हा पक्ष की जमीन को तीसरे व्यक्ति के पास एग्रीमेंट के साथ गिरवी रखा गया।
आप सोचिए कि यदि दुल्हन पक्ष इस मामले में एफआईआर दर्ज कराता तो जमानती जुर्म होने से दूल्हे पक्ष के आरोपियों की गिरफ्तारी तक नहीं होती। और जितनी क्षतिपूर्ति राशि समाज की पंचायत ने शादी के मंडप के नीचे पीड़ित को तत्काल ही दिलवा दी, एफआईआर दर्ज होने की दशा में वर पक्ष उसका सिर्फ दस फीसदी पैसा भ्रष्ट सिस्टम पर खर्च कर देता तो केस की धज्जियां उड़ जाती और दुल्हन पक्ष भी परेशान हो जाता।
समाज के ऐसे फैसले बेहद प्रभावी और त्वरित न्याय की पुरातन व्यवस्था है। इसमें न तो कोर्ट कचहरी की झंझट रहती है और न ही आरोपी द्वारा गवाह सबूत को प्रभावित कर या पैसों के बूते पुलिस और न्याय को खरीदने की आशंका रहती है। न्याय के नाम पर चलने वाली नौटंकी में सालों तक का कीमती समय भी बर्बाद नहीं होता। साथ ही पीड़ित के साथ पूरा समाज होने से भविष्य में उसके साथ बदले की भावना से होने वाली घटना की आशंका भी न्यूनतम हो जाती है।
समाज में आई विकृति और गिरावट को रोकने में ऐसे सामाजिक निर्णय वाकई काबिले तारीफ है। धन के भूखे भेड़ियों के लिए बड़ा सबक है।
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