'रेलवे बुनियादी ढांचे का आधार, टिकट प्रणाली को खतरे में डालने पर लगे रोक', सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को टिप्पणी की कि रेलवे देश के बुनियादी ढांचे का आधार है और यह हर साल करीब 673 करोड़ यात्रियों को यात्रा कराता है। देश की अर्थव्यवस्था पर इसका काफी असर पड़ता है। कोर्ट ने कहा कि टिकट प्रणाली को बाधित करने के किसी प्रयास को रोकना चाहिए।
नई दिल्ली (आरएनआई) सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भारतीय रेलवे हमारे देश के बुनियादी ढांचे का एक आधार है। टिकट प्रणाली की पवित्रता और पारदर्शिता को बाधित करने के किसी भी कोशिश को रोका जाना चाहिए।
जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा की पीठ रेलवे टिकट धोखाधड़ी के आरोपी दो व्यक्तियों की दो अलग-अलग अपीलों पर सुनवाई कर रही थी। पीठ ने कहा कि भारतीय रेल हमारे देश के बुनियादी ढांचे का आधार है। यह हर वर्ष करीब 673 करोड़ यात्रियों को यात्रा कराता है और देश की अर्थव्यवस्था पर इसका जबरदस्त प्रभाव पड़ता है। टिकट प्रणाली की पवित्रता और पारदर्शिता को बाधित करने के किसी भी प्रयास को तुरंत रोका जाना चाहिए।
ये अपीलें रेलवे अधिनियम, 1989 की धारा 143 की व्याख्या को लेकर थीं। इसमें रेलवे टिकटों की खरीद और आपूर्ति के अनधिकृत कारोबार के लिए जुर्माना लगाने का प्रावधान है। पहली अपील में केरल हाईकोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी गई है, जिसमें मैथ्यू के. चेरियन नामक व्यक्ति के विरुद्ध अधिनियम की धारा 143 के तहत शुरू की गई आपराधिक कार्यवाही को रद्द कर दिया गया था। चेरियन पर आरोप था कि उसने बिना किसी अधिकृत एजेंट के आईआरसीटीसी पोर्टल पर फर्जी यूजर आईडी बनाकर लाभ के लिए रेलवे टिकट खरीदे और बेचे। दूसरी अपील में जे रमेश ने मद्रास हाईकोर्ट के उस फैसले को चुनौती दी जिसमें अधिनियम की धारा 143 के तहत उनके खिलाफ आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने से इन्कार कर दिया गया था। रमेश अधिकृत एजेंट था। उस पर विभिन्न ग्राहकों को कई यूजर आईडी के माध्यम से बुक किए गए ई-टिकट उपलब्ध कराने का आरोप लगाया गया था।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मैथ्यू रेलवे का अधिकृत एजेंट नहीं है, इसलिए उसे रेलवे अधिनियम, 1989 की धारा 143 के तहत कार्यवाही का सामना करना चाहिए। किसी भी उल्लंघन का निपटारा सिविल कार्रवाई से किया जाना चाहिए न कि आपराधिक कार्रवाई से। संक्षेप में मैथ्यू अधिकृत एजेंट नहीं है, इसलिए उसे अपने विरुद्ध कार्यवाही का सामना करना होगा, जबकि रमेश अधिकृत एजेंट है, इसलिए उसके विरुद्ध अनुबंध की किसी भी शर्त के कथित उल्लंघन के लिए अधिनियम की धारा 143 के अंतर्गत कार्यवाही नहीं की जा सकती। यदि ऐसा हुआ तो उसे दीवानी कार्रवाई का सामना करना पड़ेगा।
पीठ ने रमेश के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही को रद्द कर दिया और कहा कि धारा 143 कई उपयोगकर्ता आईडी बनाने पर पूरी तरह से चुप रहने के कारण, केवल अनधिकृत एजेंटों के कार्यों को दंडित करती है, न कि अधिकृत एजेंटों के अनधिकृत कार्यों को। इस प्रकार, यदि एफआईआर के तथ्यों को भी अंकित मूल्य पर लिया जाए तो भी रमेश को अपराध के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता।" पी ने धारा 143 पर अभियोजन पक्ष से सहमति जताई, जो एक दंडात्मक प्रावधान है, जिसे सामाजिक अपराध से निपटने के लिए अधिनियमित किया गया है।
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