राजीव गांधी हत्याकांड: न्यायालय ने उम्रकैद की सज़ा काट रहे छह दोषियों की रिहाई का आदेश दिया

उच्चतम न्यायालय ने पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी हत्याकांड में उम्रकैद की सज़ा काट रहे नलिनी श्रीहरन और आर. पी. रविचंद्रन समेत छह दोषियों को समय से पहले रिहा करने का शुक्रवार को निर्देश दिया।

Nov 11, 2022 - 23:30
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राजीव गांधी हत्याकांड: न्यायालय ने उम्रकैद की सज़ा काट रहे छह दोषियों की रिहाई का आदेश दिया
राजीव गांधी

नयी दिल्ली, 11 नवंबर 2022, (आरएनआई)। उच्चतम न्यायालय ने पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी हत्याकांड में उम्रकैद की सज़ा काट रहे नलिनी श्रीहरन और आर. पी. रविचंद्रन समेत छह दोषियों को समय से पहले रिहा करने का शुक्रवार को निर्देश दिया।

न्यायालय ने इस तथ्य पर भी गौर किया कि तमिलनाडु सरकार ने दोषियों को सजा में छूट देने की सिफारिश की है।

इस मामले में नलिनी, रविचंद्रन के अलावा चार दोषियों संतन, मुरुगन, पेरारिवलन, रॉबर्ट पायस और जयकुमार को जेल से रिहा किया गया था।

उच्चतम न्यायालय ने गौर किया कि जेल में रहने के दौरान दोषियों का आचरण संतोषजनक था और सभी ने विभिन्न विषयों के अध्ययन किए हैं।

न्यायाधीश बी. आर. गवई और न्यायाधीश बी. वी. नागरत्ना की पीठ ने कहा कि मामले के दोषियों में से एक ए. जी. पेरारिवलन के मामले में शीर्ष अदालत का पहले दिया गया फैसला इनके मामले में भी लागू होता है।

संविधान के अनुच्छेद-142 के तहत प्रदत्त शक्ति का इस्तेमाल करते हुए, उच्चतम न्यायालय ने 18 मई को पेरारिवलन को रिहा करने का आदेश दिया था, जिसने जेल में 30 साल से अधिक की सज़ा पूरी कर ली थी।

अनुच्छेद-142 के तहत, शीर्ष अदालत ‘‘पूर्ण न्याय’’ प्रदान करने के लिए आवश्यक कोई भी फैसला या आदेश जारी कर सकती है।

पीठ ने कहा, ‘‘अदालत (उच्चतम न्यायालय) ने माना कि धारा-302 के तहत दोषी ठहराए गए एक अपीलकर्ता की सज़ा में छूट के मामले में राज्यपाल राज्य मंत्रिमंडल की सलाह मानने को बाध्य है। निर्विवाद रूप से, मौजूदा मामले में मंत्रिमंडल ने सभी आवेदकों को छूट प्रदान करने का संकल्प पारित किया है।’’

पीठ ने आगे कहा, ‘‘इसलिए, हम पाते हैं कि ए. जी. पेरारिवलन की रिहाई का निर्देश देते समय जिन कारकों पर गौर किया गया, वह वर्तमान आवेदकों पर भी समान रूप से लागू होते हैं। हम निर्देश देते हैं कि यह मान लिया जाए कि सभी अपीलकर्ताओं ने अपनी सज़ा काट ली है… इस प्रकार आवेदकों को रिहा करने का निर्देश दिया जाता है, जब तक कि किसी अन्य मामले में जरूरत नहीं है।’’

तमिलनाडु सरकार ने नलिनी और रविचंद्रन की समय से पहले रिहाई का समर्थन करते हुए कहा था कि दोषियों की उम्रकैद की सज़ा माफ करने के लिए 2018 की उसकी सलाह राज्यपाल पर बाध्यकारी है।

दो अलग-अलग हलफनामों में, राज्य सरकार ने शीर्ष अदालत को बताया था कि नौ सितंबर, 2018 को हुई मंत्रिमंडल की बैठक में उसने मामले में सात दोषियों की दया याचिकाओं पर विचार किया था और राज्यपाल को संविधान के अनुच्छेद-161 के तहत प्रदत्त शक्ति के तहत उनकी उम्रकैद की सजा को माफ करने के लिए सिफारिश करने का संकल्प लिया था।

नलिनी और रविचंद्रन ने समय से पहले रिहाई की मांग को लेकर शीर्ष अदालत का दरवाज़ा खटखटाया था।

दोनों ने मद्रास उच्च न्यायालय के 17 जून के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसने उनकी समय से पूर्व रिहाई वाली याचिका खारिज कर दी थी और सह-दोषी पेरारिवलन की रिहाई का आदेश देने वाले शीर्ष अदालत के फैसले का हवाला दिया था।

नलिनी, संतन, मुरुगन, पेरारिवलन, रॉबर्ट पायस, जयकुमार और रविचंद्रन को उम्रकैद की सजा सुनाई गई और वह सभी 23 साल से अधिक समय तक जेल में रहे।

राज्य सरकार ने पहले कहा था कि वह नलिनी और रविचंद्रन द्वारा संविधान के अनुच्छेद-161 के तहत दायर याचिका पर निर्णय लेने के लिए सक्षम प्राधिकार है। उसने कहा था कि नौ सितंबर, 2018 को राज्य मंत्रिमंडल द्वारा लिया गया निर्णय अंतिम है और तमिलनाडु के राज्यपाल द्वारा इस शक्ति का इस्तेमाल मंत्रिमंडल की सहायता और सलाह के अनुसार किया जा सकता है।

नलिनी और रविचंद्रन दोनों 27 दिसंबर, 2021 से तमिलनाडु सजा निलंबन नियम, 1982 के तहत तमिलनाडु सरकार द्वारा मंजूर किए गए उनके अनुरोध के आधार पर पैरोल पर बाहर थे।

नलिनी वेल्लोर में महिलाओं के लिए बनी विशेष जेल में 30 से अधिक वर्षों तक कैद में रही, जबकि रविचंद्रन मदुरै केंद्रीय जेल में बंद रहा और वह 29 साल की वास्तविक कारावास और 37 साल कैद की सज़ा काट चुका है, जिसमें छूट भी शामिल है।

गौरतलब है कि 21 मई 1991 की रात राजीव गांधी की तमिलनाडु के श्रीपेरुंबदूर में एक चुनावी सभा के दौरान हत्या कर दी गई थी। इसके लिए धनु नाम की एक महिला आत्मघाती हमलावर का इस्तेमाल किया गया था।

मई 1999 के अपने आदेश में, उच्चतम न्यायालय ने चार दोषियों पेरारिवलन, मुरुगन, संतन और श्रीहरन के मृत्युदंड की सज़ा को बरकरार रखा था।

हालांकि, 2014 में, न्यायालय ने दया याचिकाओं पर फैसला करने में देरी के आधार पर संतन और मुरुगन के साथ पेरारिवलन की मौत की सजा को उम्रकैद में बदल दिया था।

नलिनी की मौत की सज़ा को 2001 में इस बात पर गौर करते हुए आजीवन कारावास में बदल दिया गया था कि उसे एक बेटी है।

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