रशीद की रिहाई से राजनीति में आ सकता है बड़ा बदलाव, उत्तरी कश्मीर में कई सीटों पर असर
लोकसभा चुनाव में किंगमेकर के रूप में उभरे रशीद की पार्टी ने विधानसभा चुनाव में न केवल उत्तरी कश्मीर बल्कि दक्षिण व मध्य कश्मीर में भी अपने प्रत्याशी खड़े किए हैं।
श्रीनगर (आरएनआई) बारामुला के सांसद तथा अवामी इत्तेहाद पार्टी (एआईपी) के प्रमुख इंजीनियर रशीद के विधानसभा चुनाव की अवधि तक जेल से रिहा होने से घाटी की राजनीति में बड़ा बदलाव आ सकता है। खासकर उत्तरी कश्मीर में उनके प्रभाव से एआईपी प्रत्याशियों को लाभ पहुंच सकता है। लोकसभा चुनाव में किंगमेकर के रूप में उभरे रशीद की पार्टी ने विधानसभा चुनाव में न केवल उत्तरी कश्मीर बल्कि दक्षिण व मध्य कश्मीर में भी अपने प्रत्याशी खड़े किए हैं।
लोकसभा चुनाव में बारामुला संसदीय क्षेत्र में आने वाले 18 में 15 विधानसभा हलके में रशीद आगे रहे थे। उनके प्रतिद्वंद्वी नेकां उपाध्यक्ष व पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला तथा पीपुल्स कांफ्रेंस प्रमुख सज्जाद गनी लोन कहीं नहीं टिक सके और निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में उन्होंने जीत दर्ज की। पार्टी के बढ़े मनोबल के बाद रशीद की पार्टी ने विधानसभा चुनाव में पूरे कश्मीर में अपने प्रत्याशी उतारे। कई उम्मीदवार तो पीडीपी व नेकां में टिकट न मिलने के बाद एआईपी का दामन थामकर चुनाव मैदान में हैं।
एआईपी ने अन्य पार्टियों की तरह अपना घोषणा पत्र भी जारी किया है। जानकार बताते हैं कि इंजीनियर रशीद जेल से छूटने के बाद पूरे कश्मीर में अपनी पार्टी के लिए प्रचार करेंगे। आम कश्मीरियों के हक की बात कर वह अपने पक्ष में लोगों को करने में सफल हो सकते हैं। इससे उत्तरी कश्मीर के साथ ही कुछ अन्य सीटों पर असर पड़ सकता है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि रशीद के जेल से छूटने का उलटा परिणाम भी सामने आ सकता है। लोकसभा चुनाव के दौरान जो लहर उसके पक्ष में थी वह कमजोर पड़ सकती है। लोकसभा चुनाव में उसे सिम्पैथी वोट मिले थे जो इस चुनाव में शायद रह पाएगा। क्योंकि रशीद के भाई ने नौकरी छोड़कर सियासत में कदम रखा।
इसके साथ ही विधानसभा चुनावों के दौरान छूटना और चुनाव प्रचार की अनुमति मिलना भी एक सवाल खड़ा करता है क्योंकि अभी भी कई ऐसे शख्स जेलों में बंद हैं जिन्होंने अपनी सजा से ज्यादा अवधि जेलों में बिताई है। ऐसे में आतंकवादी गतिविधियों में लिप्त होने जैसे गंभीर आरोपों के बावजूद रशीद को बेल मिलना लोगों के मन में सवाल खड़ा करेगा कि क्या यह कोई मिलीभगत है ? क्या रशीद ने भाजपा की विचारधारा और उनके मंसूबों को कामयाब करने के लिए उनके साथ हाथ मिला लिया है ?
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