रंग डाल गयौ रसिया...बरसाने में छाया उल्लास, ऊंचा गांव में सुरभि होली प्रारंभ
कान्हा की नगरी में होली का उल्लास छाया हुआ है। मथुरा, वृंदावन, बरसाना और दाऊजी में भक्तों की भीड़ उमड़ रही है। बरसाने की लट्ठमार और लड्डूमार होली के बीच अब यहां हर ओर गुलाल बरस रहा है। वहीं आज गोकुल में छड़ीमार होली का आयोजन होगा।

मथुरा (आरएनआई) मैं न-न करती हार गई, रंग डाल गयौ रसिया, सुरभि होली में होत यहां रंगन की भरमार, आगे-आगे ग्वाल पीछे-पीछे ब्रजनार। इसी भाव से साढ़े पांच सौ वर्ष पहले श्रील नारायण भट्ट ने राधारानी की प्रधान सखी ललिताजी के गांव ऊंचागांव में सुरभि होली प्रारंभ कराई थी। श्रील नारायण भट्ट की समाधि स्थल पर इस होली का मंचन किया गया। इसमें ग्रामीण मद मस्त होकर नाच उठे। इस दौरान श्रील नारायण के वशंजों द्वारा उनकी समाधि पर गुलाल अर्पित कर होली प्रांम्भ की। रसियाओं की थाप पर गुर्जर समाज के महिला-पुरुषों ने लोकनृत्य किया। उड़ाए जा रहे अबीर-गुलाल में सराबोर श्रद्धालु अपने आपको धन्य मान रहे थे।
वृंदावन के ऐतिहासिक गोपीनाथ मंदिर में बुधवार को विधवा माताओं के लिए होली का आयोजन हुआ। रंगोत्सव के माताओं के चेहरे खिल उठे। इस दौरान उनकी खुशी देखते ही बन रही थी। वर्षों के एकाकीपन और सामाजिक तिरस्कार को पीछे छोड़ते हुए इन महिलाओं ने गुलाल, फूलों की पंखुड़ियों और कृष्ण भजनों के साथ अपनी नई पहचान का उत्सव मनाया। वर्ष 2013 में स्वर्गीय डॉ. बिंदेश्वर पाठक की पहल से इस परंपरा की शुरूआत हुई थी। विरासत को आगे बढ़ाते हुए सुलभ इंटरनेशनल के अध्यक्ष कुमार दिलीप ने विधवाओं के उत्थान के प्रति अपनी प्रतिबद्धता जताई। उन्होंने कहा कि होली का यह उत्सव हमारी सामाजिक सोच में बदलाव का प्रमाण है।
मैं न-न करती हार गई, रंग डाल गयौ रसिया, सुरभि होली में होत यहां रंगन की भरमार, आगे-आगे ग्वाल पीछे-पीछे ब्रजनार। इसी भाव से साढ़े पांच सौ वर्ष पहले श्रील नारायण भट्ट ने राधारानी की प्रधान सखी ललिताजी के गांव ऊंचागांव में सुरभि होली प्रारंभ कराई थी। बुधवार को श्रील नारायण भट्ट की समाधि स्थल पर इस होली का मंचन किया गया। इसमें ग्रामीण मद मस्त होकर नाच उठे। इस दौरान श्रील नारायण के वशंजों द्वारा उनकी समाधि पर गुलाल अर्पित कर होली प्रांम्भ की। रसियाओं की थाप पर गुर्जर समाज के महिला-पुरुषों ने लोकनृत्य किया। उड़ाए जा रहे अबीर-गुलाल में सराबोर श्रद्धालु अपने आपको धन्य मान रहे थे। ब्रजाचार्य पीठ के प्रवक्ता घनश्यामराज भट्ट ने बताया कि लठामार होली से पहले श्रील नारायण भट्ट ने सुरभि होली की शुरूआत कराई थी। जब गोपियों के मना करने के बावजूद कृष्ण व उनके सखाओं ने उन पर रंग डाल दिया तो बदला लेने लिए सखियां राधारानी के पास गयीं और उनसे डंडा लेकर होली खेलने को कहा। एक सुर में सखियों ने कान्हा से हास-परिहास किया, इसलिए इसे सुरभि होली कहा जाता है।
मथुरा के बलदेव में श्रीदाऊजी महाराज का हुरंगा 15 मार्च को है। इसके लिए हुरियारिनें तैयारियों में जुट गई हैं। वह प्रतिदिन मंदिर प्रांगण में नृत्य महारास कर हुरंगा का पूर्वाभ्यास कर रही हैं। बैंड-बाजे की धुन पर सैकड़ों महिलाएं होली के रसिया पर परंपरागत लहंगा-फरिया व स्वर्ण आभूषण पहन कर नाच-गा रही हैं। नृत्य महारास देख श्रद्धालु आनंदित हो रहे हैं। इस समय मंदिर प्रांगण में साक्षात देवलोक दिखाई दे रहा है। श्रीकृष्ण-बलराम स्वरूपों के साथ हुरियारिनें नृत्य कर हुरंगा की तैयारी कर रही हैं। बालिका जयश्री पांडेय श्रीकृष्ण स्वरूप में आकर्षक का केंद्र बनी हुई हैं। महिलाएं श्रीकृष्ण-बलराम के स्वरूप को घेर कर नाच रही हैं। साथ ही गा रही हैं। मेरो खोए गयो बाजू बंद, रसिया होरी में, जि होरी नाय दाऊजी का हुरंगा है। सुखदेव पांडेय, भगवत पांडेय, मदन मोहन पांडेय, ब्रजवासी पांडेय, रजत पांडेय ने बताया हुरंगा से पूर्व सैकड़ों हुरियारिनें निरंतर अभ्यास कर रही हैं।
नंदगांव में लठामार होली के साथ हुरंगे का आयोजन भी होता है। हुरंगा में हुरियारों पर हुरियारिनें लाठियां बरसाती हैं। गांव गिडोह में हुरंगा का आयोजन फाल्गुन मास की समाप्ति के बाद किया जाता है। नंदगांव में 15 मार्च तथा गिडोह में 16 मार्च को हुरंगे का आयोजन किया जाएगा। दोनों गांव के लोगों ने तैयारियां शुरू कर दी हैं। वहीं वसंत के आगमन से नंदबाबा मंदिर में समाज गायन की शुरूआत हो जाती है। करीब सवा माह तक चलने वाले समाज गायन का धूलहोली के दिन विराम हो जाता है। गोस्वामी समाज के मुखिया छैलबिहारी गोस्वामी ने बताया कि ने बताया कि नंदबाबा मंदिर में फाल्गुन मास की समाज का अंतिम गायन धूलहोली तक होता है। इस दिन पद ढप धर दै यार का भी गायन होता है।
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