'यूपी गैंगस्टर एक्ट' के तहत एफआईआर के खिलाफ याचिका पर सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट सहमत
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता गौरव अग्रवाल और अधिवक्ता तन्वी दुबे के जरिए याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि यूपी गैंगस्टर्स एक्ट के तहत उनके खिलाफ दर्ज प्राथमिकी निराधार है और पिछली प्राथमिकी से उपजी है।
नई दिल्ली (आरएनआई) सुप्रीम कोर्ट इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई के लिए सहमत हो गया है जिसमें उत्तर प्रदेश गैंगस्टर्स और असामाजिक गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम के तहत आरोपपत्र और कार्यवाही को रद्द करने की अपील वाली अर्जी को खारिज कर दिया गया था। मामले में न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की पीठ ने दो दिसंबर को याचिकाकर्ता राज खान की तरफ से दायर विशेष अनुमति याचिका पर सुनवाई करने की अनुमति दी और दोनों पक्षों को सुनने के बाद मामले को अंतिम बहस के लिए स्थगित कर दिया।
सुनवाई के दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता गौरव अग्रवाल और अधिवक्ता तन्वी दुबे के जरिए याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि यूपी गैंगस्टर्स एक्ट के तहत उनके खिलाफ दर्ज प्राथमिकी निराधार है और पिछली प्राथमिकी से उपजी है। याचिका में कहा गया है कि यह प्राथमिकी दर्ज करना कानूनी प्रक्रिया का घोर दुरुपयोग है। इसमें तर्क दिया गया कि याचिकाकर्ता के खिलाफ गैंगस्टर्स एक्ट लगाना पक्षपातपूर्ण है और यह पुलिस एवं न्यायिक मशीनरी का दुरुपयोग है।
याचिका में आरोप लगाया गया कि कथित वित्तीय अनियमितताओं को लेकर याचिकाकर्ता की तरफ से सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष के समक्ष शिकायत दर्ज कराए जाने के बाद व्यक्तिगत प्रतिशोध के कारण कार्यवाही शुरू की गई। याचिका में कहा गया है, आरोपपत्र दाखिल करना और याचिकाकर्ता के खिलाफ कार्यवाही शुरू करना प्रथम दृष्टया दुर्भावनापूर्ण है जिसका उद्देश्य व्यक्तिगत रंजिश के कारण प्रतिशोध लेना है।
याचिका में इस बात पर जोर दिया गया कि याचिकाकर्ता का संबंधित मामले के अलावा कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं है और गैंगस्टर अधिनियम के तहत कार्यवाही संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत गारंटीकृत जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के उसके अधिकार का उल्लंघन करती है। याचिका में अदालत से आरोपपत्र और सभी संबंधित कार्यवाही को रद्द करने का आग्रह किया गया है। इसमें दावा किया गया है कि उसके खिलाफ मामला वक्फ प्रशासन के भीतर भ्रष्टाचार के खिलाफ उसकी असहमति को दबाने की एक चाल है।
पीठ ने कहा, उच्च न्यायालय यह विचार करने में विफल रहा कि याचिकाकर्ता जो एक निर्दोष नागरिक है, वह धोखाधड़ी, कदाचार और वक्फ संपत्तियों से उत्पन्न आय के दुरुपयोग के खिलाफ आवाज उठाने के कारण शरारती तत्वों का शिकार हो गया है। अंतिम बहस के दौरान न्यायालय याचिका के गुण-दोष पर विचार-विमर्श करेगी।
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