यमुना एक्सप्रेस-वे के लिए भूमि अधिग्रहण की वैधता रहेगी बरकरार, सुप्रीम कोर्ट ने प्राधिकरण को दी बड़ी राहत

सुप्रीम कोर्ट से पहले इस मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दो अलग-अलग याचिकाओं पर फैसला सुनाया था। एक फैसले में हाईकोर्ट ने प्राधिकरण की ओर से किए जा रहे अधिग्रहण को बरकरार रखा था और बढ़ा हुआ मुआवजा देने के लिए कहा था। वहीं दूसरे फैसले में जमीन अधिग्रहण की राज्य सरकार की कार्रवाई को रद्द कर दिया था। 

Nov 26, 2024 - 20:00
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यमुना एक्सप्रेस-वे के लिए भूमि अधिग्रहण की वैधता रहेगी बरकरार, सुप्रीम कोर्ट ने प्राधिकरण को दी बड़ी राहत

नई दिल्ली (आरएनआई) यमुना एक्सप्रेस-वे के विकास के लिए किए गए भूमि अधिग्रहण को लेकर किसानों और यमुना एक्सप्रेस-वे औद्योगिक विकास प्राधिकरण के बीच चल रहे विवाद के बीच सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है। कोर्ट ने प्राधिकरण को बड़ी राहत देते हुए भूमि अधिग्रहण की वैधता को बरकरार रखा है। इस फैसले के बाद प्राधिकरण यमुना एक्सप्रेस-वे और उसके आसपास के क्षेत्र में विकास के लिए भूमि का अधिग्रहण कर सकेगा।

सुप्रीम कोर्ट ने जमीन मालिकों और यमुना एक्सप्रेस-वे औद्योगिक विकास प्राधिकरण (YEIDA) की अपीलों पर सुनवाई की। पहले इस मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दो अलग-अलग याचिकाओं पर फैसला सुनाया था। एक फैसले में हाईकोर्ट ने प्राधिकरण की ओर से किए जा रहे अधिग्रहण को बरकरार रखा था और बढ़ा हुआ मुआवजा देने के लिए कहा था। वहीं दूसरे फैसले में जमीन अधिग्रहण की राज्य सरकार की कार्रवाई को रद्द कर दिया था। 

सुप्रीम कोर्ट में मामले में सुनवाई करते हुए जस्टिस बीआर गवई और संदीप मेहता की पीठ ने लंबे समय से चल रहे विवाद को सुलझाते हुए यमुना एक्सप्रेस-वे औद्योगिक विकास प्राधिकरण की अपील को स्वीकार किया। जबकि जमीन मालिकों की अपील खारिज कर दी। सुप्रीम कोर्ट ने अपने 49 पेज के फैसले में कहा कि एक्सप्रेस-वे का निर्माण और आस-पास के क्षेत्रों का विकास एक एकीकृत जनहित परियोजना का हिस्सा है। इस परियोजना के तहत किया जा रहा भूमि अधिग्रहण क्षेत्र के नियोजित विकास के लिए उचित है।

कोर्ट ने कहा कि अनधिकृत अतिक्रमणों और तेजी से विकास की आवश्यकता के बारे में चिंताओं ने भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 1894 के तहत सामान्य जांच को दरकिनार कर दिया। पीठ ने माना कि अधिकांश प्रभावित भूमि मालिकों ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा दिए गए मुआवजे को स्वीकार कर लिया था। साथ ही 64.7 प्रतिशत बढ़े हुए मुआवजे का समर्थन किया। पीठ ने मामले में तीन प्रमुख प्रश्नों पर विचार किया।

पहला: क्या वर्तमान अधिग्रहण प्राधिकरण द्वारा किए गए यमुना एक्सप्रेसवे की एकीकृत विकास योजना का एक हिस्सा है? इसके जवाब में पीठ ने कहा कि वर्तमान अधिग्रहण प्राधिकरण द्वारा शुरू की गई यमुना एक्सप्रेस-वे के लिए एकीकृत विकास योजना का हिस्सा है। अधिग्रहण का उद्देश्य यमुना एक्सप्रेस-वे के निर्माण के साथ भूमि विकास करना है। 

दूसरा: क्या भूमि अधिग्रहण अधिनियम की धारा 17(1) और 17(4) का प्रयोग इस मामले में वैध और उचित था, जिससे भूमि अधिग्रहण कानून के तहत जांच से बचने के सरकार के फैसले को उचित ठहराया जा सके? इस पर पीठ ने कहा कि भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 1894 की धारा 17(1) और 17(4) का प्रयोग इस मामले में कानूनी और न्यायोचित था। 

तीसरा: क्या कमल शर्मा मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा लिया गया दृष्टिकोण कानून का सही प्रस्ताव प्रस्तुत करता है या श्योराज सिंह मामले में निर्धारित कानून न्यायोचित था। इस पर सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि कमल शर्मा मामले में निर्णय पहले के उदाहरणों पर निर्भर था। इसने कानून की सही व्याख्या की और अधिग्रहण को बरकरार रखा। जबकि श्योराज सिंह मामले में उच्च न्यायालय के विरोधाभासी निर्णय को खारिज कर दिया। इसने भूस्वामियों के पक्ष में फैसला सुनाया था।

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