मोक्ष प्रदाता का हुआ अभिषेक और वाराह भगवान के जयघोषों से गूंजा माहौल, हर्ष और आनंद के साथ मनाया गया वाराह जन्मोत्सव और हुई प्रसादी वितरण
हाथरस (आरएनआई) जब-जब होई धरम की हानी, बाढ़हि असुर अधम अभिमानी। तब-तब धरि प्रभु विविध शरीरा, हरहि दयानिधि सज्जन पीरा।। अर्थात जब-जब पृथ्वी पर धर्म की हानि होती है, दुष्टों का प्रभाव बढ़ने लगता है, तब सज्जनों की पीड़ा हरने के लिए प्रभु का अवतार होता है। पृथ्वी के लिए भगवान ने वाराह रूप में अवतार लिया और दैत्य हिरण्याक्ष का वध कर पृथ्वी को स्थापित किया।
यह उद्गार आचार्य सनत गोपाल दीक्षित ने मोक्षदा एकादशी के अवसर पर डिब्बा गली स्थित भगवान वाराह मंदिर पर अभिषेक-पूजन के उपरांत व्यक्त किए। उन्होंने बातया कि पुरातन समय में दैत्य हिरण्याक्ष ने जब पृथ्वी को ले जाकर समुद्र में छिपा दिया तब ब्रह्मा की नाक से भगवान विष्णु वराह रूप में प्रकट हुए। ऋषि-मुनियों की स्तुति पर भगवान वराह ने अपनी थूथनी की सहायता से पृथ्वी का पता लगा लिया और समुद्र के अंदर जाकर अपने दांतों पर रखकर वे पृथ्वी को बाहर ले आए। इस दौरान दैत्य हिरण्याक्ष व भगवान वराह के बीच भीषण युद्ध हुआ और हिरण्याक्ष का वध किया। दिया।
इससे पूर्व रविवार को जब ब्रह्म महूर्त में घंटा, घडिय़ाल व शंखनाद गूंज उच्चरित हुई तो एक बार फिर पृथ्वी के मोक्ष प्रदाता भगवान वाराह का गुणगान हुआ। डिब्बा गली स्थित भगवान वाराह मंदिर में सुबह भगवान का मंत्रोच्चारण के साथ अभिषेक-पूजन सनत गोपाल दीक्षित के आचारियुत्व में हुआ। इस अवसर पर सेवायत राजू चक्रपाणी, बौबी गौतम, गौरव शर्मा, वंशी वार्ष्णेय, टीकूं शर्मा, पंकज अग्रवाल, राम अग्रवाल, नीरज चक्रपाणि, विशाल सारस्वत, संजय केशव दीक्षित, प्रशांत शर्मा इत्यादि उपस्थित थे।
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