'मृत्यु पूर्व बयान आरोपी को दोषी ठहराने के लिए पर्याप्त', सुप्रीम कोर्ट की अहम टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस उज्जल भुइयां की पीठ ने कहा कि मृत्यु पूर्व दिए गए प्रामाणिक बयान पर भरोसा किया जा सकता है । यह बिना किसी पुष्टि के आरोपी को दोषी ठहराने का एकमात्र आधार हो सकता है।
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नई दिल्ली (आरएनआई) सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि मृत्यु पूर्व दिए गए प्रामाणिक बयान पर भरोसा किया जा सकता है और यह बिना किसी पुष्टि के आरोपी को दोषी ठहराने का एकमात्र आधार हो सकता है। यह टिप्पणी करते हुए शीर्ष अदालत ने महाराष्ट्र के बीड जिले में 22 साल पहले पुलिस कांस्टेबल पत्नी की हत्या के लिए पूर्व सैन्यकर्मी की दोषसिद्धि को बरकरार रखा।
जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस उज्जल भुइयां की पीठ ने कहा कि अदालत को मृत्यु पूर्व दिए बयान की सावधानीपूर्वक जांच करनी होगी और यह सुनिश्चित करना होगा कि यह सुसंगत, विश्वसनीय व बिना किसी पूर्वधारणा के दिया गया हो। एक बार जब यह बयान प्रामाणिक पाया जाता है और अदालत को इस पर भरोसा हो जाए तो बिना किसी पुष्टि के यह दोषसिद्धि का एकमात्र आधार हो सकता है।
इस मामले में अभियोजन पक्ष का दावा था कि पीड़िता के साथ उसके पति, देवर व अन्य ससुराल वालों ने क्रूरता की थी। वारदात वाले दिन महिला को उसके पति और देवर ने पीटा। महिला का हाथ गमछे, पैर तौलिए से बांध दिए और उसका मुंह बंद कर दिया। देवर ने उस पर मिट्टी का तेल छिड़का और पति ने आग लगा दी। घटना में महिला पूरी तरह जल गई थी। उसके पड़ोसी उसे अस्पताल ले गए, जहां उसका मृत्युपूर्व बयान दर्ज किया गया था। बयान के आधार पर मामला दर्ज किया। 2008 में ट्रायल कोर्ट ने पति को हत्या का दोषी ठहराया था और उसे आजीवन कारावास व 25,000 रुपये का जुर्माना लगाया था।
महिला के मृत्यु पूर्व दिए गए बयान को एक वैध सुबूत के रूप में स्वीकार करते हुए शीर्ष अदालत ने कहा कि सुबूतों को ध्यान से गौर करने के बाद उसे कोई संकोच नहीं है कि अपीलकर्ता अपराध का दोषी है और यह अपराध सभी उचित संदेह से परे साबित हुआ है।
सुप्रीम कोर्ट ने अपनी लैंगिक संवेदनशीलता और आंतरिक शिकायत समिति का पुनर्गठन किया है। शीर्ष अदालत से जारी एक कार्यालय आदेश में कहा गया कि सुप्रीम कोर्ट में महिलाओं के प्रति लैंगिक संवेदनशीलता और यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) विनियम, 2013 के खंड 4(2) में दी शक्तियों और इस संबंध में सभी सक्षम प्रावधानों के तहत सीजेआई जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने शीर्ष अदालत लैंगिक संवेदनशीलता और आंतरिक शिकायत समिति का पुनर्गठन किया है। 12 सदस्यीय समिति की अध्यक्षता जस्टिस हिमा कोहली करेंगी। समिति में जस्टिस बीवी नागरत्ना, एडिशनल रजिस्ट्रार सुखता प्रीतम व वरिष्ठ वकील मीनाक्षी अरोड़ा और महालक्ष्मी पावनी भी शामिल हैं।
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