मुस्लिम महिला की मांग- शरियत नहीं, उत्तराधिकार कानून हों लागू; सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से मांगा जवाब
याचिकाकर्ता महिला का कहना है कि वह इस्लाम को नहीं मानती, लेकिन अभी भी उसने आधिकारिक रूप से इस्लाम को नहीं छोड़ा है। वह चाहती है कि संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत उसे धर्म का अधिकार मिले और साथ ही धर्म पर विश्वास न करने का भी अधिकार मिले।
नई दिल्ली (आरएनआई) सुप्रीम कोर्ट में एक मुस्लिम महिला ने याचिका दायर कर मांग की है कि उसे शरीयत कानून में विश्वास नहीं है और वह चाहती है कि उस पर उत्तराधिकार कानून लागू हो। महिला की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है और सरकार का इस मुद्दे पर पक्ष पूछा है। केरल के अलप्पुझा की रहने वाली एक महिला साफिया पी एम ने यह याचिका दायर की है। याचिका पर सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना और जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस केवी विश्वनाथन की पीठ ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है।
याचिकाकर्ता महिला का कहना है कि वह इस्लाम को नहीं मानती, लेकिन अभी भी उसने आधिकारिक रूप से इस्लाम को नहीं छोड़ा है। वह चाहती है कि संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत उसे धर्म का अधिकार मिले और साथ ही धर्म पर विश्वास न करने का भी अधिकार मिले। महिला ने अदालत से ये भी मांग की है कि जो व्यक्ति मुस्लिम पर्सनल लॉ को नहीं मानना चाहता, उस पर देश के धर्मनिरपेक्ष कानून लागू होने चाहिए। वकील प्रशांत पद्मनाभन ने याचिकाकर्ता की तरफ से यह याचिका अपील की है। महिला ने याचिका में कहा कि शरिया कानून के तहत, अगर कोई व्यक्ति इस्लाम में विश्वास नहीं रखता है तो उसे समुदाय से बेदखल कर दिया जाता है। ऐसी स्थिति में उसे अपने पिता की संपत्ति में हिस्सा नहीं मिल पाएगा। अभी की स्थिति में महिला पर उत्तराधिकार कानून लागू नहीं हो सकता।
केंद्र सरकार की तरफ से अदालत में पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि 'याचिका में रोचक सवाल उठाया गया है।' मेहता ने कहा कि 'याचिकाकर्ता महिला एक पैदाइशी मुस्लिम है। उनका कहना है कि वे शरीयत कानून में विश्वास नहीं रखती और यह एक पिछड़ा हुआ कानून है।' पीठ ने कहा कि 'यह आस्था के खिलाफ है और आपको (केंद्र सरकार) इसके जवाब में हलफनामा दाखिल करना होगा।' इस पर सॉलिसिटर जरनल तुषार मेहता ने जवाब दाखिल करने के लिए तीन हफ्ते का समय मांगा। इस पर पीठ ने चार हफ्ते का समय देते हुए अगली सुनवाई की तारीख 5 मई तय की। इस याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने बीते साल 29 अप्रैल को भी केंद्र सरकार और राज्य सरकार से जवाब मांगा था।
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