मुमुक्षु आश्रम में 400 कारसेवकों का हुआ सम्मान, राम जन्मभूमि आंदोलन में शाहजहांपुर ने निभाई थी अग्रणी भूमिका: राजेन्द्र सिंह ’पंकज’
शाहजहांपुर (आरएनआई) लगभग पांच सौ वर्षो के संघर्ष और साधना के बाद अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि पर विगत 22 जनवरी को रामलला की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा के द्वारा विश्व में सनातन संस्कृति के नवजागरण का शुभारंभ हुआ। राम जन्मभूमि मुक्ति आंदोलन में वर्ष 1990 और 1992 में देष के लाखों कार सेवकों ने कारसेवा की। जिसमें तत्कालीन शासन और सत्ता के दमन और उत्पीड़न के चलते सैकड़ों कारसेवकों को अपने प्राणों की आहुति देनी पड़ीं, हजारों कारसेवक घायल हुए। जनपद शाहजहांपुर में भी सैकड़ों कारसेवकों ने राम जन्मभूमि आंदोलन में हिस्सा लेकर राम मंदिर निर्माण की अलख जगाई। इस दौरान वे जेलों में रहे, यातनाएं सही और पुलिस और प्रशासन की लाठियां भी खायी। राम जन्मभूमि आंदोलन के संयोजक रहे पूर्व केन्द्रीय गृहराज्यमंत्री व मुमुक्षु आश्रम के मुख्य अधिष्ठाता स्वामी चिन्मयानंद के द्वारा जनपद के ऐसे कारसेवकों को सम्मानित किये जाने के लिए मुमुक्षु आश्रम में एक भव्य कारसेवक सम्मान समारोह का आयोजन किया गया। एसएस कालेज के स्वामी शुकदेवानंद स्मृति सभागार में आयोजित सम्मान समारोह का शुभारंभ स्वामी चिन्मयानंद सरस्वती, महामण्डलेश्वर स्वामी चिदंबरानंद जी महाराज मुम्बई, साध्वी भक्ति प्रभा, साध्वी अनादि सरस्वती, स्वामी सर्वेष्वरानंद जी, स्वामी अभेदानंद जी, स्वामी पूर्णानंद जी तथा राम जन्मभूमि आंदोलन में प्रमुख भूमिका निभाने वाले विश्व हिन्दू परिषद के केन्द्रीय मंत्री राजेन्द्र सिंह ’पंकज’ ने दीप प्रज्जवलित कर किया। डा. आलोक कुमार सिंह ने सभी अतिथियों का चंदन तिलक लगाकर स्वागत किया। डा. कविता भटनागर ने गुरू वंदना प्रस्तुत की। इस मौके पर शाहजहांपुर जनपद के करीब चार सौ कारसेवकों और उस दौरान अपनी लेखनी के माध्यम से राम जन्मभूमि आंदोलन को सहयोग करने वाले पत्रकारों को सम्मानित किया गया। इस मौके पर विश्व हिन्दू परिषद के केन्द्रीय मंत्री राजेन्द्र सिंह पंकज ने कहा कि राम जन्मभूमि आंदोलन मे शाहजहांपुर जनपद के करीब 3500 कारसेवकों ने हिस्सा लिया था। उन्होंने कहा कि 1528 में प्रभु श्रीराम का मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाई गई थी। उसके ठीक चार सौ वर्षो के बाद देष के संतों, नवयुवकों और महिलाओं ने आंदोलन कर राम जन्मभूमि को मुक्त कराने का संघर्ष किया। 1980 तक करीब 76 संघर्ष हुए जिसमें करीब साढ़े तीन लाख राम भक्तों ने अपने प्राण न्यौछावर कर दिए। 07 अक्टूबर 1984 को अयोध्या में एक संकल्प सभा व 08 अक्टूबर को अयोध्या से एक यात्रा निकाली गई थी। तब से लेकर न्यायालय के आदेश से करीब दो वर्ष पूर्व राम मंदिर निर्माण की प्रक्रिया शुरू हुई और 22 जनवरी को रामलला की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा हुई। स्वामी पूर्णानंद सरस्वती ने शाहजहांपुर जिले का नाम बदलने की मांग की। राजस्थान से आयी साध्वी अनादि सरस्वती ने कहा कि शाहजहांपुर के मुमुक्षु आश्रम में हमेशा रामभक्तों का जमावड़ा रहता है। शिक्षा और धर्म के माध्यम से स्वामी चिन्मयांनद जी देश और समाज की सेवा कर रहे है वो अतुलनीय है। छिंदबाड़ा से आयी साध्वी सरस्वती ने राम मंदिर संघर्ष में कारसेवकों के योगदान और संघर्ष को ऐतिहासिक बताते हुए कहा कि शाहजहांपुर के कारसेवकों का नाम इतिहास में हमेशा स्वर्ण अक्षरों में लिखा जायेगा। स्वामी सर्वानंद सरस्वती ने कहा कि जब शिक्षा और संस्कृति का प्रसार होगा तब शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार होगा।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए मुमुक्षु आश्रम के अधिष्ठाता स्वामी चिन्मयानंद सरस्वती ने कहा कि वर्ष 1984 से 2019 तक राम मंदिर आंदोलन की हर घटना का र्मैं गवाह रहा हॅू इस आंदोलन को आगे बढ़ाने में राजेन्द्र सिंह ’पंकज’ का योगदान कभी भुलाया नहीं जा सकेगा। उन्होंने कहा कि जो राम का नाम लेता है उसका कोई काम नहीं रूकता। शाहजहांपुर शहीदों की धरा है और जब देश और समाज को जरूरत होगी तो यहां के लोग तन, मन, धन से अपना सहयोग करने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं। इस दौरान अतिथियों ने कारसेवक जगतबंधु रघुवंशी, बाबूराम गुप्ता, आनंद सक्सेना, नरेश अग्रवाल, हरगोविन्द, सत्यदेव शर्मा, जगदीश प्रसाद, जागरन लाल, रघुनंदन गुप्ता, सुचित सेठ, रामकिशोर, रामबहादुर, विजय पाल, शशिकला गुप्ता सहित करीब चार सौ कारसेवकों को सम्मानित किया गया। इस मौके पर राम मंदिर आन्दोलन में अपनी लेखनी के माध्यम से आंदोलन को सहयोग करने वाले पत्रकार ओंकार मनीषी, सरदार शर्मा, कुलदीप दीपक, राकेश श्रीवास्तव आदि पत्रकारों को भी सम्मानित किया गया। इस मौके पर एक विशाल भंडारे का आयोजन भी किया गया। कार्यक्रम का संचालन डा0 अनुराग अग्र्रवाल ने किया।
आयोजन में डॉ अवनीश मिश्र, प्रो आर के आजाद, प्रो अनुराग अग्रवाल, डा. जेएस ओझा, सुयश सिन्हा, डा. शिशिर शुक्ल, राम निवास गुप्ता, एस पी डबराल, प्रो प्रभात् शुक्ला, प्रो मीना शर्मा, प्रो आदित्य कुमार सिंह, डॉ आलोक सिंह, डॉ शालीन सिंह, डॉ संदीप अवस्थी, डॉ अंकित अवस्थी, डॉ श्रीकांत मिश्र, चंदन गोस्वामी, अवनीष कुमार सिंह, चंद्रभान त्रिपाठी आदि का विशेष सहयोग रहा।
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