सुलतानपुर: मुनि ना होई यह निश्चर घोरा मनहू सत्य वचन कपि मोरा, बिजेथुआ महावीर तेरी जय जय होय- स्वामी रामभद्राचार्य
सुलतानपुर (आरएनआई) तुलसीपीठाधीश्वर जगतगुरु श्री रामभद्राचार्य जी महाराज ने कथा के पहले दिन जनपद के प्रसिद्ध पावन धाम बिजेथुआ महाबीरन धाम और मंदिर में विराजमान दक्षिण मुखी हनुमान जी महाराज की महिमा का वर्णन किया। उन्होंने बताया कि बिजेथुआ महाबीरन धाम का नाम बिजेथुआ महाबीरन क्यों पड़ा। वास्तव में यह विजेष्ठ महावीर है। बिजेथुआ बिजेष्ठ महाबीर का अपभ्रन्स है। यहां पर पवन पुत्र हनुमान जी महाराज ने कालनेमी नामक राक्षस का बध कर विजय प्राप्त की थी, इसलिए इस धाम का नाम बिजेथुआ महावीर पड़ा। हनुमान जी महाराज मुनि वेश धारी कालनेमी राक्षस के कहने पर जब कुंड में स्नान करने गए तो मकराक्षी नामक मकरी ने उनके पैर पकड़ लिऐ तो हनुमान जी ने उसके जबड़े को चीर कर उसका बध कर दिया तो वो मकरी अपने अप्सरा स्वरूप में आकर कर हनुमान जी महाराज को प्रणाम कर कहा की हे हनुमानजी आपने मेरा उद्धार कर मुझ पर बड़ी कृपा की है अतएव हे प्रभु मेरी एक बात मानिए।
मुनि ना होई यह निशिचर घोरा। मनहू सत्य वचन कपि मोरा।। यह मुनि नही है यह तो रावण का पठाया हुआ अत्यंत मायावी कपटी राक्षस है जो कि आपके राम काज में बाधा उत्पन्न करने आया है जिससे आप समय से संजीवनी बूटी ना ले जा पाएं। इस लिऐ आप उससे सावधान रहिए। तब मकराक्षी अप्सरा की बात मान कर हनुमान जी ने कालनेमी राक्षस का बध कर दिया। और संजीवनी बूटी लेने द्रोणागिरी पर्वत पर चले गए । वहां पहुँच कर संजीवनी बूटी को ना पहचान पाने पर पर्वत को ही उठा कर लंका पहुंच गए। संजीवनी बूटी पाकर सुषेण वैद्य ने लखन जी के प्राण बचा लिया। लाय संजीवन लखन जिआए। श्री रघुवीर हरशि उर लाए।।
कथा से पूर्व सत्या माइक्रो कैपिटल के सीएमडी कार्यक्रम संयोजक विवेक तिवारी के आवास से महिलाओं ने मंच तक 1008 कलश सिर पर रख कर कथा स्थल तक कलश यात्ता निकाली।जिसकी छटा निराली रही। इससे पूर्व पूज्यपाद जगतगुरु श्री रामभद्राचार्य जी महाराज की अगवानी मे ढखवा से विजेथुआ तक शोभायात्रा सूरापुर होते हुए निकाली गई। जगतगुरु रामभद्राचार्य जी द्वारा यह कथा 30 तक कही जायेगी।आज प्रथम दिवस ही विशेष गणमान्य लोगों के साथ साथ श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ पड़ा।
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