'मुआवजा दिये बिना जायदाद से नहीं किया जा सकता बेदखल', 22 साल इंतजार के बाद भूमि मालिकों को राहत
शीर्ष अदालत ने अनुच्छेद-142 के तहत पूर्ण न्याय करने के अपने असाधारण अधिकार का प्रयोग करते हुए कर्नाटक हाईकोर्ट का वह फैसला खारिज कर दिया, जिसमें उच्च न्यायालय ने जमीन मालिकों की बाजार दर से मुआवजा तय करने की मांग खारिज कर दी थी। साथ ही, सुप्रीम कोर्ट ने विशेष भूमि अधिकारी को 22 अप्रैल, 2019 के बाजार मूल्य के हिसाब से दो महीने में नया मुआवजा पारित करने का निर्देश दिया है।
नई दिल्ली (आरएनआई) अफसरों के सुस्त रवैये के कारण 22 साल से मुआवजे का इंतजार कर रहे भूमि मालिकों से जुड़े मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अहम टिप्पणी करते हुए कहा कि कल्याणकारी राज्य में संपत्ति का अधिकार मानवाधिकार है। संविधान के अनुच्छेद 300-ए के तहत यह सांविधानिक अधिकार है और किसी व्यक्ति को तत्परता से मुआवजा दिए बिना उसकी संपत्ति से बेदखल नहीं किया जा सकता है।
शीर्ष अदालत ने 2003 के इस मामले में भूमि मालिकों को 2019 के बाजार मूल्य के हिसाब से मूल्य निर्धारित करते हुए मुआवजा देने का निर्देश देते हुए कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले को खारिज कर दिया। कर्नाटक औद्योगिक क्षेत्र विकास बोर्ड ने अपीलकर्ताओं की भूमि पर कब्जा 22 नवंबर, 2005 को ही कर लिया था, पर आज तक मुआवजा नहीं दिया।
जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन की पीठ ने कर्नाटक सरकार के प्राधिकरण की इस बात पर आलोचना - की कि अधिकारियों की गहरी नींद और सुस्त रवैये के कारण अधिग्रहित जमीन के मालिकों को इतने साल बिना मुआवजे के रहना पड़ा। अपीलकर्ताओं की भूमि पर कब्जा लेने के बाद अथॉरिटी ने इसे नंदी इन्फ्रास्ट्रक्चर कॉरिडोर एंटरप्राइजेज और उसकी सहयोगी कंपनी नंदी इकोनॉमिक कॉरिडोर एंटरप्राइजेज लि. को सौंप दिया, पर ऐसे अधिग्रहणों के लिए तत्काल कोई मुआवजा पारित नहीं किया।
यह जमीन बंगलूरू-मैसूरू को जोड़ने वाली इन्फ्रास्ट्रक्चर कॉरिडोर परियोजना के लिए अधिग्रहित की गई थी। इस मामले में अपीलकर्ताओं ने कर्नाटक हाईकोर्ट का रुख किया और तत्कालीन बाजार मूल्य के आधार पर मुआवजा निर्धारित करने की मांग की थी। हाईकोर्ट ने याचिका खारिज कर दी, तो पीड़ित सुप्रीम कोर्ट पहुंचे थे।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, राज्य 2003 से 2019 तक गहरी नींद में था। अवमानना कार्यवाही में नोटिस जारी होने के बाद पहली बार कार्रवाई की। अधिकार न होने के बावजूद विशेष भूमि अधिग्रहण अधिकारी (एसएलएओ) ने बाजार मूल्य के निर्धारण की तारीख बदली, जो सही कदम था। अगर मुआवजा 2003 के बाजार मूल्य पर देने की अनुमति दी जाती है, तो यह न्याय व अनुच्छेद 300-ए के तहत कानून के अधिकार के बिना संपत्ति से वंचित करने के हक के सांविधानिक प्रावधानों का मखौल उड़ाने के समान होगा।
इससे इन्कार नहीं किया जा सकता कि पैसा ही वह चीज है, जो पैसा खरीदता है। पैसे का मूल्य इस विचार पर आधारित है कि उसे रिटर्न कमाने के लिए निवेश किया जा सकता है और मुद्रास्फीति के कारण समय के साथ पैसे की क्रय शक्ति कम हो जाती है।
पीठ ने कहा, अपीलकर्ता 2003 में मुआवजे से जो कुछ खरीद सकते थे, वह 2025 में नहीं खरीद सकते। इसलिए यह बेहद अहम है कि भूमि अधिग्रहण में मुआवजा निर्धारण और वितरण तत्परता से किया जाना चाहिए।
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