माता भगवती का नवार्ण मंत्र - जानते है वास्तु शास्त्री डॉ सुमित्रा से
सेलिब्रिटी वास्तु शास्त्री डॉ सुमित्रा अग्रवाल, यूट्यूब वास्तु सुमित्रा
परम करुणामयी एवं कल्याण स्वरूपिणी भगवती महामाया की उपासना में मंत्रराज नवार्ण का स्थान अति विशिष्ट है। यह मंत्र अत्यन्त ही प्रभावशाली है और इसके अप द्वारा अनेक साधकों ने सिद्धि प्राप्त की है और अब भी साधक समुदाय सिद्धि के मार्ग पर अग्रसर है। यदि विधि-विधान, श्रद्धा और भक्तिपूर्वक नवार्ण मंत्र का जप किया जाए तब निश्वय डी अभिलाषित फल की आणि होती है।
भगवती की उपासना में यह मंत्र शक्ति उपासकों का प्रधान आलम्बन है। इसका वास्तविक स्वरूप ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे है। यह भगवती आद्या शक्ति का सर्वाधिक प्रसिद्ध मंत्र है। यह मूलतः नौ अक्षरों (नव + अर्ण) का है, यथा
ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै विच्चे १ २ ३ ५ ६ ७ ८ ९ ४
ये नौ अक्षर नौ दुर्गा का प्रतीक है। ॐ को साथ में लगा देने से यह मंत्र दशाक्षर हो जाता है, जो शक्ति तत्त्व के अनुरूप नहीं है। प्रायः उपासक जय सन्दर्भ में ॐ ऐं ह्री क्लीं चामुंडायै विच्चे जपते हैं, जो सर्वथा अनुचित है। जिन मंत्रों के आदि में ऐं क्लीं ह्रीं और श्रीं ही उन मंत्रों के आगे ॐ नहीं लगाना चाहिए क्योंकि ये गीज मंत्र भी प्रणव रूप हैं। अतः नर्वाण मंत्र में ॐ लगाने की आवश्यकता नहीं है। तंत्र शास्त्र में कहा गया
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वाक् चैव कामः शक्तिश्च प्रणवः श्रीश्च कथ्यते । तदाद्येषु च मंत्रेषु प्रणवं नैव योजयेत् ॥
पाठकों को ज्ञान पिपासा की शान्ति के लिए नवार्ण मंत्र की सविस्तार व्याख्या देना श्रेयस्कर होगा। नवार्ण का प्रथम अक्षर के संबंध में तंत्रशास्त्र का कहना है कि
सरस्वत्यर्थः ऐ शब्दों बिन्दुदुःख हरार्थकः । सरस्वत्या वीजमेतत् तेन वाणीं प्रपूजयेत् ॥
यह सरस्वती बीज है। इसमें दो अंश हैं ऐ + बिन्दु। ऐ का अर्थ सरस्वती है और बिन्दु का अर्थ है दुःखनाशक अर्थात् भगवती सरस्वती हमारे दुःखों को दूर करें।
ह्रीं हकार: शिववाची स्यात् रेफः प्रकृतिरूच्यते । महामायार्थः ई शब्दों नार्दो विश्व प्रसूः स्मृतः ॥ दुःख हरार्थको बिन्दु भुवनां तेन पूजयेत् ॥ 'ह' वर्ण का अर्थ है शिववाचीं 'ए' को प्रकृति कहा जाता है। बिन्दुका अर्थ है दुःख दूर करने वाला। यह तंत्रशास्त्र में माया बीज, लज्जाबीज के नाम से जाना जाता है। यह बीज भगवती भुवनेश्वरी का है जो तीनों लोकों की पालिका है। क्लीं
( क कामदेव उचिष्टोऽप्यथवा कृष्ण उच्यते । ''ला' इन्द्र 'ई' तुष्टिवाची सुख दुःख प्रदश्च 'अँ'। काम बीजार्थ उक्तस्ते तव स्नेहान् महेश्वरि ।
तंत्रशास्त्र में क्लीं को कृष्णबीज, कालीबीज एवं कामबीज माना गया है। इसमें 'क' 'ल' 'ई' और बिन्दु चार अंश है। 'क' कामदेव का परिचायक है अथवा कृष्ण का। 'ल' का अर्थ इन्द्र है। 'ई' का अर्थ है संतुष्टि 'अ' वह है जो सुख और दुःख देने वाला है।
ऐं ही क्लीं तीनों बीजों के मिलने पर हर्थ होगा महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती नामक तीन मूर्तियों वाली।
चामुण्डायै का अर्थ है सत्, चित्, आनन्द स्वरूपा चामुण्डा देवी को और विच्चे का अर्थ है जानते हैं। अगर क्रम बदलकर कहा जाए तो अर्थ होगा मन की शुद्धि के लिए विविध पूजनादि करें। मन की चंचलता दूर करने के लिए चिन्तन, ध्यान और उपासना करें। उपासना और ज्ञान रूपी साधनों से अपनी आत्मा रूपा आद्या शक्ति माया को अविद्या का नाश करते। हुए प्राप्त करें।
नवार्ण मंत्राक्षर ध्यान -
'वाग्' बीजं हि दीप समान दीप्तम्, 'मायाति' तेजो द्वितीयार्क बिम्बम् । कामं च वैश्वानर तुल्यरूपम्, प्रतीयमानं तु सुखाय चिंत्यम् । 'चा' शुद्ध जाम्बूनद तुल्य कान्तिम् 'मुं' पंचमम् रक्ततरं प्रकल्पम् । 'डा' षष्ठ मुग्रार्तिहरे सुनीलम् 'ये' सप्तमं कृष्णतरं रिपुहनम् । 'वि' पाण्डुरं चाष्टममादि सिद्धिच्ये धूम्रवर्ण नवमं विशालम् । एतानि वीजानि नवात्मकस्य जपात् प्रदध्यंः सकलार्थ सिद्धिम् ॥ नवार्ण मंत्र साधकों के लिए कल्पवृक्ष के समान है। इस मंत्र की एक माला जप करने वाले को आपदाओं और अभावों का शिकार नहीं होना पड़ता। अगर विद्यार्थी जपता है तो उसकी बुद्धि बढ़ती है, रोगी रोग से मुक्त हो जाता है, बंध्या को पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है और दरिद्र व्यक्ति को धन प्राप्त हो जाता है। कहने का अभिप्राय यह है कि सकल मनो कामनाओं और अभीष्टों को पूर्ति करने वाला है यह मंत्रराज नवार्ण।
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